पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२८४

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मौजूदा ४०४३ मौन मौजूदा--वि० [अ० मौजूद ] वर्तमान काल का । जो इस समय मौदकिक-सज्ञा पुं० [सं० ] हलवाई (को०] । मौजूद हो । प्रस्तुत । उ०--चूंकि उर्दू की एक बेनजीर तारीख मौद्गल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] मुद्गल ऋपि के गोत्र मे उत्पन्न पुरुष । (आवे हयात) मुल्क मे मौजूद है, लेहाजा किताब का जियादह मौद्गल्य । हिस्सा सस्कृत, हिंदी और मौजूदा हिंदो के जिक्र खैर से मामूर मौद्गलि-सज्ञा पुं॰ [ म० काक । कोप्रा [को०] । होगा। -जमाना (शब्द०)। मौद्गल्य-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ मुद्गल ऋषि के पुत्र का नाम । मौजूदात-मशा स्त्री० [अ० मौजूदा का बहु च० ] संसार की सभी ये एक गोत्रकार ऋषि थे । २ मुद्गल ऋपि के गोत्र मे उत्पन्न चीजें । सृष्टि । चराचर जगत् । पुरुष । मौठल-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मकुष्ठ, प्रा० मठह ] दे० 'मोठ'। उ -- मौद्गल्यायन-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] गौतम बुद्ध के एक प्रधान शिष्य वहु गोधूम चनक तदुल अति । राहर ज्वार मसूर लेह रति । का नाम। मूंग मोठ वटुरा वह ल्यावहु । राजभाष अरु माप मंगावहु ।- प० रासो, पृ० १७। मौद्गीन-सज्ञा पुं० [सं० ] वह खेत जिसमे मूग उत्पन्न होता हो । मौडा--सज्ञा पुं० [सं० माणवक ] दे० 'मोडा'। मौन-सज्ञा पुं० [सं०] १. न बोलने की क्रिया या भाव । चुप मौत-सञ्ज्ञा स्त्री० [ अ०] १. मरने का भाव । मरण । मृत्यु । विशेष रहना । चुप्पी । उ०-सपति अरु विपति को मिलि चले प्रभु दे० 'मृत्यु' । उ०-अरे कस ! जिसे तू पहुंचाने चला तिसका तहाँ जहाँ नहिं होइ सुमिरन तिहारो। करत दहवत मैं तुमहिं करुणाकरन कृपा करि ओर मेरे निहारो। सुनत यह वचन आठवाँ लडका तेरा काल उपजेगा । उसके हाथ तेरी मौत है। हरि करयो अब मौन करि कृपा तोहिं पर बीर धारी। सपति -लल्लू (शब्द॰) । २. वह देवता जो मनुष्यो या प्राणियो के प्राण निकालता है । मृत्यु । उ०-विरह तेज तन मे तप अरु विपति को भय न होइहै तिस सुनै जो यह कथा चित्त मग सर्व अकुलाय । घट सूना जिव पीव मे, मौति दूढ फिर धारी।-सूर (शब्द०)। जाय |-कवीर (शब्द०)। क्रि० प्र०-करना।-रहना । मुहा०-मौत आना = मरने को होना । मौत का पसीना मुहा०-मौन गहना या ग्रहण करना = चुप रहना । चुप्पी श्राना = आसन्नमरण होना। मरने के लक्षण दिखाई देना । साधना । न बोलना। उ०—(क) देखत ही जेहि मौन गही मौत का सिर पर खेलना = (१) मरने को होना। मरने पर अरु मौन तजे कटु बोल उचारे ।-केशव (शब्द०)। (ख) मौन होना । (२) दुर्दिन श्राने को होना । आपत्ति काल समीप होना। गहों मन मारि रहो निज पीतम की कहो कौन कहानी।- (३) प्राण जाने का भय होना । जान जोखा होना । मौत का व्यग्यार्थ (शब्द०)। मौन खोलना = चुप रहने के उपरात तमाचा मृत्यु का स्मरण दिलानेवाला कार्य या घटना। बोलना । उ०-खिनक मौन बाँध खिन खोला। गहेसि जीभ अपनी मौत मरना = स्वाभाविक ढग से मरना। प्राकृतिक मुख जाइ न बाला । - जायसी (शब्द॰) । मौन तजना = चुप्पी छोडना। नियम के अनुसार मरना। मौत बुलाना = ऐसा काम करना बोलने लगना। उ०-देखत ही जेहिं मौन जिससे मौत निश्चित हो। गही अरु मौन तजे कटु बोल उचारे । -केशव (शब्द॰) । ३ मरने का समय । काल । मौत की धुडी । मृत्युकाल । मौन धरना या धारण करना = न बोलना। चुा होना। मौन होना। उ०-जंह बैठी वृषभानु नदिनी तंह आए धार मौन । मुहा०-मौत मांगना = कष्ट, कठिनाइयो से स्वकर मौत मनाना। पडे पाय हरि चरण परसि कर छिन अपराध सलोन ।-सूर मौत के दिन पूरे होना = किसी प्रकार प्रायु विताना । कठिनता (शब्द०)। मौन बांधना = चुप्पी साधना । चुप हो जाना । से कालक्षेप करना । ऐसे दु ख मे दिन विताना जिसमे बहुत उ० - जो बोले सो मानिक मूंगा । नाहिं तो मौन वांघु होइ दिन जीना असभव हो गूगा ।—जायसी (शब्द०)। मौन लेना या साधना = मौन ४ अत्यत कष्ट । अापत्ति । जैसे,—वहां जाना तो हमारे लिये धारण करना । चुप होना । न बोलना। उ०-जिय में न क्रोध मोताज-सज्ञा पुं० [अ० मुहताज ] दे० 'मुहताज' । करु जाहि अब केहू ठौर नगर जरावे जिन साध्यो हम मौन उ०-जभी हैं। हनुमन्नाटक (शब्द०)। मौन संभारना = मौन साधना । दाने दाने को मौताज हो।-गोदान, पृ० १८३ । चुप होना। मौताद-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० ] मात्रा। उ०-चग जो होता वंद को २. मुनियो का व्रत । मुनिव्रत । ३ फागुन महीने का पहला पक्ष । दिए दवा मौताद। क्यो नहिं सिर के दरद मे सिर देता फिर- ४. उदासीनता । खिन्नता । अप्रफुल्लता (को॰) । हाद ।- रसनिधि (शब्द॰) । मौन-वि[सं० मौनो ] जो न बोले । चुप । मौनी । उ०—(क) मौती@t-सच्चा पुं० [सं० मौक्तिक ] दे० 'मोती'। उ०-नासिका हमहूं कहब अव ठकुर सुहाती। नहिं त मौन रहब दिन राती। को मौती देखि उडगन सकुचाह ।-नद० ग्र०, पृ० ३७० । —तुलसी (शब्द०)। (ख) इतनी मुनन नैन भरि पाए प्रेम मोदक-वि० [सं०] १ मिठाई सवधी । २. (भाव) मिठाई के प्रय नद के लालहि । सूरदास प्रभु रहे मीन ब घोप वात जनि विक्रय का? [को॰] । चालहि । —सूर (शब्द॰) । मौत है।