पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२५४

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मेटा' ४०१५ मेढ़ा मेट । श्र० मेटा-सा पुं० [हिं०, स० मृद्भा द्ध] भांडा। मिट्टी का बना भांडा हो उसयो उतना वटा मेटल और सितार दो ।-भारतें? या वर्तन। ग्र०, भा० १, पृ. ४७४। मेटिया -नशा स्री० [सं० मृत्कांस्य, हिं० मटका ] घडे से छोटा मेडिकल-वि० [अ० ] पाश्चत्य प्रौपध और चिकित्सा मे नबध सने- मिट्टी का वर्तन जिसमे दूध, दही श्रादि रखते हैं । मटकी । वाला । डाक्टरी सधा । जैसे, मेडिकल कालेज, मेडिकल डिपार्ट- मेटी--सज्ञा स्त्री॰ [हि० ] दे० 'मेटिया' । मेटीरियलिस्ट-सज्ञा पुं० [अ० ] भौतिकवादी । मेडिया-रा स्रो॰ [सं० मण्डप, हिं० मढ़ी ] मढी । मडप । छोटा मेटुकिया+-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'मटको'। उ० –भम मेटुकिया घर । उ०—कहा सुनावं मेठिया, चूना माटी लाय । मीच सिर के ऊपर सो मेटुकी पटकी।-कवीर श० भा०, ३, पृ०७। चुनगी पापिनी, दोरि के लैंगी साय । -कवीर (इ.ब्द०)। मेटुको-सशा स्त्री० [हिं० ] दे० 'मटको' । मेडिसिन-संज्ञा स्त्री॰ [ ] १ दवा । श्रौषध । जैसे,—डाक्टर ने बहुत तेज मेडिसिन दे दा है। २ चिकित्सा विज्ञान । मेटुला-सशक्षा स्त्री॰ [ सं०] श्रामलकी । प्रामला। मेटुवा - वि० [हिं० मेटना ] किए हुए उपकार को न माननेवाला । मेडा-राश लो० [सं० मण्डप या मदो ] प्रागाद वा मकान को कृतघ्न। ऊपरी मजिल । अट्टालिका । दे० 'मेडी' । उ०-ऊन मियउ उत्तर दिसई मेडी ऊपर मेह । ते विरहिरिण किम जीवसे, ज्यारा मेठ'- ससा पुं० [स०] १ हाथावान । फीलवान | २ मेप । मेढा (को०)। दूर सनेह ।--ढीला०, दू०४२ । मेठ-सज्ञा पुं० [अ० मेट ] ३० 'मेट' । मेढक-सा पुं० [सं० म हक] एक जल न्यल-वारी जतु जो तीन चार मेड़- सज्ञा पुं० [स० मण्डल या मिति (= इयत्ता, सोमा ) या मृद्वन्ध अगुल से लेकर एक या लश्त तक लबा होता है। यह पानी में या मृद्दण्ड ] १. मिट्टी डालकर बनाया हुधा खेत या जमीन का तरता है और जमीन पर फूद कूदकर चलता है। इसके चार घेरा ।२ दो सेतो के बीच में हद या सामा के रूप में बना हुग्रा पर होते हैं जिनमे जालीदार पजे होते हैं। यह फेफटो से सांस रास्ता। उ०-धन सपत्ति सबस गेह नसो नहिं प्रम का मेड लेता है, मछलियो की तरह गलफडो मे नही । सो एड टलं ।-भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० २३८ । पर्या०-महक । ददुर । क्रि० प्र०-डालना।-बाँधना । विशेप-विकासक्रम में यह जलचारी और स्थलचारी जतुप्रो के यौ०-मेडयदी। बीच का माना जाता है। मछलियो मे ही क्रमश विकास ३ ऊंची लहर या तरग । (लश०) । परपरानुसार जल-स्थल-चारी जंतुप्रो की उत्पत्ति हुई है, जिनमें क्रि० प्र०-परना। सवमे अधिक ध्यान देने योग्य मेढक है। रीठनाले जतुनो मे मेडक-सरा पुं० [सं० मण्डूक ] दे० मेढक' । जो उन्नत कोटि के हैं, वे फेफडो से साम लेते हैं। पर जिनका मंडवदी-राज्ञा स्त्री० [हिं० मेड + फा० वद, या हिं० देवना] १ मिट्टी ढांचा सादा है और जिन्हे जल ही मे रहना पडना है, वे गलफडो से सांस लेते है। मछली के ढांचे से उन्नति करके डालकर बनाया हुप्रा घेरा। २ इस प्रकार घेरा बनाने का किया। हदबदी। मेढक का ढांचा बना है, इसका प्राभाम मेढक की वृद्धि को मेडर- सशा पु० ] स० मण्डद्ध ] चक्कर । मंडल । घेरा। उ०-~ देसने से मिलता है। अंडे के फूटने पर भेढ : 6T डिभकीट मछली के रूप में प्रार ही में रहता है, गनफा एक कहा रजनीपति बाही। मेटर प्रर्वाह न उका ताही । से सांस लेता है और घामपान खाता है। उसे लगी पूछ -इद्रा०, पृ० १२७ । होती है, पर नहीं होते। कही कही उमे 'घुछमधनी' नी मेहरा सा पुं० [सं० मण्डल, हिं० मडग ] [ सी० अरूपा० मेडरी ] कहते हैं। धीरे धीरे कायाकल्प करता हुआ वह उभयचारी १ किसी गोल वस्तु का उभरा हुआ किनारा । २ किसी वस्तु जतु का रूप प्राप्त करता है भौर जानीदार पजो से युक्त का महलाकार ढांचा । जैसे, छलनी या खंजरी का मेडरा। परवाला, फेफडे से सांस लेनवाला पौर को पतिंग गानयाला मेडराना-फि० म० [सं० मण्डल ] दे० 'मंडराना' । मेढक हो जाता है। मंडरी-सश सी० [हिं० मेहरा ] १ किसी गोल या मठलाकार यस्तु मेटकी-सशा स्रो० [सं० मराढूकी ] महकी । मैटक को माया । का उभरा हुमा किनारा । २ महलाकार वस्तु का ढांचा । ३ मुहा०-मेढपी को जुकाम होना = छोटे प्रादमी म यदा की चक्की के चारो प्रोर फा वह स्थान जहाँ पाटा पिसफर बराबरी करने का हौसला होना। मेढा-मसा पुं० [सं० नेतू मेएन, मेरऽ ] [ मी० ट] नीगाना मंडल-मझा पुं० [५० ] चांदी सोने प्रादि की यह विशेष प्रकार की एक चौपाया दो लगभग टेद हाय ऊना मोर घने नेपामका मुद्रा जो कोई प्रच्या या बड़ा काम करने प्रया दिशेप निपुणता होता है । मेप। रिमाने पर किसी को दी जाय पोर निमपर देनेवाले का माम विशप-इनका रोया यात गुनायम होता पौरन पर नाग सुदा हो, तथा जिस वारा ये लिये यह दी गई हो उमफा भी है। इनका माया पोः गीग बन जा हाने है। ये माग उल्लेख हो । तमगा । पदक । उ०-जितना जो बड़ा मेग मित्र मे बड़े बैग से लटते , हमने बहुत से गौन इन्हें लाने के गिरता है।