म० मूलहर'-वि० दिया हो। मूलस्थनी ६५८ ईश्वर । ५ मुलतान नगर जहां भास्कर तीर्थ था। ६ कौटिल्य विशेष-मूली साल में दो बार बोई जाती है, इसने प्राय सब के अनुसार राजधानी । शासन का मुख्य केंद्र । मिलती है। मूली की जड नीचे की ओर पतली और ऊपर मूलस्थानी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० ] गौरी। पोर मोटी होती जाती है। इसकी Tई जातियां होती है। मूलस्थायी सज्ञा पुं॰ [ स० मूलस्थायिन् ] शिव । रगत मूली एक वालिश्त लवी गौ-दोढाई अगुत मोटी होनी पर वडी मूली हाय हाय भर नी गौर चार पाँच प्रगुत मूलस्रोत-सज्ञा पु० [ स० मूलस्रोतस, J झरना, नदी आदि की मोटी होती है । नेपाल देश मे उत्पन्न होने के रण इसे ने मुख्य धारा या उद्गम स्थान [को०] । या नेवार भी कहते हैं। यह खाने मे मीठी होती है और : ] समूल उन्मूलन करनेवाला। जड मे उखाट देने कडु वापन या चरपराहट नहीं होती। मूली का रग र वाला [को०] । होता है, पर लाल रग की मूली भी 'प्रय हिंदुम्नान ने मूलहर - मज्ञा पुं॰ [स०] को टल्य के अनुसार वह राजा जो फजून जान लगी है, जिसे विलायनी मूली व्हते हैं। इसकी ज खर्च करता हो। वह जिसने अपना संपूर्ण धन नष्ट कर सरसो के में नवे लये पत्ते कार की ओर निकलते है। छोटे और काले होते है। इन बीजो मे मे एक प्रकार का दुः मूला-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] १ सतावर । २ मूल नक्षत्र । ३ पृथ्वी । युक्त तेल निकलना है, जिसमे गधक का बहुत कुर मग र (हिं० )। है। मूली अधिकतर कच्ची या शाक के रूप ने पकाकर मूला - सज्ञा स्रो॰ [ देश० ] मौला नाम की वेल जो वृक्षी पर चढकर उन्हें बहुत हानि पहुचाती है । विशेप ८० 'मौला' । जाती है। बीज दग के काम मे जाते है । मूली माधारर उत्तेजक, मूत्रकारक और अश्मरीनाशक होती है। मून मूलाधार-सज्ञा पुं० [ स०] योग मे माने हुए मानव शरीर के भीतर आदि रोगो मे इसका सेवन हितकर है। चक्रो मे से एक चक्र जिमका स्थान गुदा शिश्न के मध्य मे है । इसका रग लाल और देवता गणेश मान गए हैं। इसके भावप्रकाश के अनुसार छोटी मूली कटुग्म, उगवीर्य, रचिका दलो की संख्या ४ और अक्षर व, श, ष, तथा स हैं। लघु, पाचक, त्रिदोषनागक, म्बरप्रमादक तथा ज्वर, * नासारोग, कठरोग और चक्ष गेग को दूर करनेवाली है। मूलाभ- सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० ] मूली [को०) । मूली या नेवाड रूखी, उणवीर्य, गुरु और श्रिदोपनाशक है मूलामना-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का रोग जिसमे वायु के कुपित होने पर हाथ और पैरो मे कपन होता है। उ०—जो पर्या०-(छोटी मूली ) शालाक। फटुक । मिश्र । वाले मरुमभव । चाणक्पमूलक । मूलकपोतिका । वायु पैर, जघा, उरु और हाथ के मूल मे कपन करे उसको मूलामना रोग कहते है।-माधव०, पृ० १४६ । मुहा०-(किसी को) मूली गाजर समझना = अति तुच्छ समझ नाचीज गिनना। मूलायतन-सञ्ज्ञा पुं० [ सं०] मूल पायतन । मूल स्थान या गृह । २ एक प्रकार का वास । ३ जडी बूटो । मूलिफा । मूलावाधक- सञ्चा पुं० [ स०] कौटिल्य के अनुसार राष्ट्रशक्ति के केंद्र को घेरनेवाला। मूली-सञ्ज्ञा सी० [सं०] १ ज्येष्ठी । २ मन्स्यपुराण के अनु मूलिक'-वि० [सं०] १ मूल सवधी । मूल का । २ मुख्य । प्रधान । एक नदी का नाम । ३ छोटो छिपकली (को०)। मूलिक'-सज्ञा पु० कदमूल खाकर रहनेवाला सन्यासी । मूली- 3-मज्ञा पुं॰ [ मूलिन् ] वृक्ष । पेड (को०] । मूलिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] प्रोपधियो को जड । जडी । उ० - वैदिक मूलुवका -सरा पुं० [ अ. मुल्क ] दे० 'मुल्क' । उ०-प्रावता तु विधान अनेक लोकिक आचरत सुनि जानि के पाण मुलुका, पय भरे पथर चूरीया ।-कीर्ति०, पृ० ४६ मूलिका मनि साधि राखी पानि के !-तुलसी (शब्द०)। मूलेर-सज्ञा पुं० [ स० ] १ राजा। नरेश । २ भारतीय लोमः (ख) पायो सदन सहित सोवत ही जो लौ पलक परं न । जटामासी [को०] । जिसे कुवेर निसि मिलै मूलिका कीन्ही विनय सुखेन ।—तुलसी मूलोदय-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] व्याज का मूलयन के बराबर हो जा (शब्द०)। मूलिन'–वि० [ स०] मूल से उत्पन्न । मूल्य'-सञ्ज्ञा पुं० ] १ किसी वस्तु के बदले मे मिलनेव धन । दाम । कीमत आदि । जैसे,—एक सर चाय का : मूलिन- -सज्ञा पुं० वृक्ष (को०] । दस रुपए। उ० वास्तव में अर्थ प्राय सर्वदा द्रव्य के मूलिनीवर्ग-सज्ञा पुं० [सं० ] सुश्रुत के अनुसार ये मोलह प्रकार के मे ही व्यक्त किया जाता है। और तब उसे मूत्य कहते मूल (जड)-नागदती, श्वेतवचा, श्यामा, निवृत्, वृद्धदारका, अर्थ. (व०), पृ० १८ । २ वेतन । भृति (को०)। सप्तला, श्वेतापराजिता, मूपकपर्णी, गोडु वा, ज्योतिष्मती, मूल । मूलवन (को०)। ४ लाभ । प्रर्जन। विवी, क्षणपुप्पी, विपारिणका, अश्वगंधा, द्रवती और क्षी,रणी। उपयो गता (को०)। मूली - सञ्चा सी० [स० मूलक ] १ एक पौवा जो अपनी लवी यो०- मूल्यरहित = (१) बिना मूल्य का । जिसका कुछ : मुलायम जड के लिये बोया जाता है । यह जह खाने मे भीठो, न हो। निकम्मा (२) व्यर्थ । बेकार । मूल्यवृद= वाजा चपरी और तीक्ष्ण होती है। वस्तुनो का दाम बढ जाना । मूल्यहीन = दे० 'मूल्यरहित' । - TO व लदान पूजा HO प्राप्ति ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२३९
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