- जाय । भूलाल मूभिपित मूर्छाल-वि० [स० ] मूच्छित । मू युक्त । सशाहीन [को॰] । मूर्तिपूजक--सज्ञा पुं० [सं० ] वह जो मूत्ति या प्रतिमा की पूजा मूर्छित, मूर्छित-वि० [म० , जिसे मूर्छा पाई हो। बेसुध । करता हो । मूर्ति पूजनेवाला। वेहोश । अचेत । उ०—(क ) सुनत गदाधर भट्ट तहाँ ही। मूर्तिपूजा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] मूत्ति मे ईश्वर या देवता की भावना मूक्ति गिरत भए महि माही।-रघुराज (शब्द॰) । (ख) यह करके उसकी पूजा करना । सुन कस मूच्छित हो गिरा। - लल्वूलाल (शब्द०) । २ मारा मूर्तिमजक-वि० [स० मूर्तिभञ्जफ] मूर्तियो को तोडनेवाला (को॰] । हुआ (पारे आदि धातुप्रो के लिये) । ३ दे० 'उच्छ्रिय' (को०)। मूर्तिमान्'–वि० [सं० मूर्तिमत् ] [ वि० सी० मूर्तिमती ] १ जो ४ मूट (को०)। ५ वृद्ध । ६. व्याप्त । रूप धारण किए हो। शरीरधारी। २ साक्षात् । गोचर । मून्छित'- नक्षा पुं० [म०] एक प्रकार की स्वरलहरी या वायु [को०] | प्रत्यक्ष । ३ ठोम (को०)। मूर्ण-दि० [ स०] बद्ध । बंधा या कमा हुया [को०] । मूर्त्तिमान् २-सज्ञा पु० शरीर । जिस्म । देह [को०] । मत-वि. [ न० ] १. जिमका कुछ रूप या आकार हो। साकार । मूर्तिविद्या-सशा स्त्री॰ [ सं० ] १ प्रतिमा गढने की कला । २ चित्रकारी। विशेप-नैयायिक के मत से पृथ्वी, जल, तेज, वायु और मन मूर्त पदार्प है इनके गुण रूप, रस, गध, स्पर्श, परन्व, अपरत्व, -सज्ञा पुं० [सं० मूर्छन् ] मस्तक । सिर । गुरुत्व, स्नेह और वेग है। मूद्धक-सज्ञा पुं॰ [ स० ] क्षत्रिय । २ कठिन । ठोस । ३ मूच्चित । मूद्धकपारी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मूर्द्धकर्परी ] दे॰ 'मूर्द्धकर्णो' । मतता-मझा सी० [ म० ] मूर्त होने का भाव । मूदकर्णी -सञ्ज्ञा सी० [सं०] छाता या और कोई वस्तु ( जैसे टोकरा )जा वूर, पानी ग्रादि से बचने के लिये सिर पर रखा मत्तत्व-सशा पु० [स० ) मूर्त होने की क्रिया या भाव । मूर्तता । मत प्रत्यक्षीकरण-तज्ञा पु० [०] अमूर्त को मूर्त रूप देना । अगोचर पदार्थ को गोचर रूप देना। रूपरहित भावनायो और मूद्ध कर्परी-सा स्त्री॰ [ स० ] छतरी । छाता (को॰] । विचारा को वस्तुरूप में व्यक्त करना । ठोम रूप देना। उ०- मूदखोल--सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० मूर्द्ध + हिं० खोल ] दे० 'मूर्द्धकर्णी' । तीव्र अतरदृष्टिवाले कवि अपने सूक्ष्म विचारो का वडा ही मूर्द्धज'-वि० [ स० ] सिर से उत्पन्न होनेवाला। रमणीय मूत प्रत्यक्षीकरण करते है ।—चितामाण, भा० २, मूज'-सशा पुं० केश । बाल । मूद्ध ज्योति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मूद्ध ज्योतिम् ] ब्रह्मरध्र । ( योग ) । मत्ति-सचा स्त्री० [सं०] १. कठिनता । ठोमपन । २ शरीर । देह । मूद न्य-वि० [ स० ] १ मी से सवध रखनेवाला। मूर्द्धा सवधी । ३ प्राकृति । शकल । स्वरूप । मूरत । जैसे,—उस मनुष्य की २ जिमका उच्चारण मूद्धो से हो। ३ सिर या मस्तक मे भयकर मूत्ति देखकर वह डर गया। ४. किमी के रूप या स्थित । ४ सर्वोच्च । सर्वश्रेष्ठ । प्राकृति क सदृश गढी हुई वस्तु । प्रतिमा । विग्रह । जैसे, वृष्ण मूर्धन्य वण-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] वे वर्ण जिनका उच्चारण मूर्द्धा से की मूत्ति, देवी की मूति । होता है । मुहा०-मूर्ति के समान = ठक । स्तब्ध । निश्चल । विशप-मूर्द्धन्य वर्ण ये हैं,-, ऋ, ट, ठ, ड, ढ ण, र और प । ५ रग या रेखा द्वारा बनी हुई प्राति । चित्र । तम्बीर । ६ ब्रह्म मूद्ध न्वान्–सञ्चा पुं० [ स०] १ एक गधर्व का नाम २ वामदेव सावरिण के एक पुत्र का नाम । ७ व्यक्ति। मनुष्य (विशेषत ऋप जो ऋग्वेद के दशम म डल क अष्टम भूक्त के द्रष्टा थे। साधुममाज में प्रयुक्त) । उ०-अाजकल दा मूत्ति निवास करते मूर्ख पिंड-भञ्ज्ञा पुं॰ [ मं० मूद्ध.पण्ड ] गजकु भ । हाथो का मस्तक । है। किन्नर०, पृ० १८ । मूर्तिकला -सशा स्त्री० [सं० ] मूति गढने या निर्माण करने की मूर्द्ध पुष्प-सञ्ज्ञा पु० [ सं० ] शिरीप पुष्प । मूद्धरस-सज्ञा पुं० [ ] भात का फेन । कला । मूतिविद्या । मूद्धेवेष्ठन -सञ्ज्ञा पुं०॥ स० ] शिरोवेष्टन । पगडो । साफा (को०] । मतिकार-सव पुं० [ स० ] १ मूत्ति बनानेवाला । २ तसवीर मुर्दा-सच्चा पुं० [ सं० मूछन् ] १ मस्तक । सिर । २ मुंह के भातर तालु क और कठ क वाच का उठा हुमा भाग जहा से मूर्तित-वि० [ ] मूर्त । साकार । उ० -मन से प्राणो मे, प्राणो मूद्ध'न्य वर्ण का उच्चारण होता है। से जीवन मे कर मूर्तित । शोभा प्राकृति मे जन भू का स्वर्ग मूभिपिक्त–वि० [सं०] १. जिसक सिर पर अभिषक किया गया करो नव निर्मित ।-प्रतिमा, पृ०७ । हा । २. सवस श्रष्ठ । सर्वमान्य (को॰) । मूर्तिधर-वि० [सं० ] मूर्ति को धारण करनेवाला। विग्रहवान । मूर्खाभिषिक-सञ्चा पुं० १. क्षत्रिय । २. राजा । ३ एक मित्र जाति उ०-याकाश मे शब्द के अनुरणन स्पद से ही अमूर्त मूत्ति जिसकी उत्पत्ति ब्राह्मण से विवाही क्षत्रिय स्त्री के गर्भ से कहो घर होता है। -सपूर्णा० अभि० म०, पृ० ११४ । गई है। इस जाति की वृत्ति हायो, घाड़े और रय को शिक्षा मूर्तिप-तशा पुं० [ स० ] पुजारी । तथा शस्त्रधारण है। स० बनानेवाला। मुमविर । स० - ---
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२३६
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