मूगफला । उ० आए तेरे HO सुहासिरा ३.६७ मुहासिरा-सज्ञा पुं० [अ०] १ युद्ध आदि के ममय किले या शत्रुमेना मुहूर्तक-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ क्षण । काल । समय । २ ४८ मिनट को चारो ओर घेरने का काम । धेरा । २ घेरा । हदवदी। का काल [को०] । मुहासिल-सज्ञा पुं० [अ०] १ प्राय | यामदनी । २ लाम। मुहैया-वि० [अ० ] १. तैयार । तत्पर । प्रस्तुत । २ उपस्थित । मुनाफा | नफा । ३ विक्री आदि से होनेवाली प्राय । मौजूद । ३ उपलब्ध [को०] । मुहि-सर्व० [हिं० मुझ ] दे० 'मोहि'। उ० --तिनमे इक मुह्यमान-वि० [सं०] मूर्छित । जो मोहित हो रहा या हुया हो। सिसुपाल, ताहि मुहिं देत रकम सठ ।-- नद० ग्र०, पृ० २०५ । मर्छायुक्त। मोहयुक्त [को०] । Di- सज्ञा पु० [ स० मुस्व, प्रा० मुह ] दे० 'मुह' । उ०—वो शारूं मुहिव्व-सज्ञा पु० [ अ.] प्रेम रखनेवाला। दोस्ती रखनेवाला । के मूं ते मुने यो बैन । नमीहत पर उसकी गजब मे हो ऐन ।- दोरत । मित्र । मोहवत रखनेवाला। दक्खिनी०, पृ० १० । मुहिम - मज्ञा स्त्री० [अ० ] १ कोई कठिन या वडा काम । भारी, मू-सर्व० [हिं० मुझ का सबध कारक का रूप] मेरा । मेरी। मारके का या जान जोखो का काम । २ लडाई । युद्ध । समर । उ०-करहा देस मुहामणउ, जे मूसासरिवाडि । प्राँव मरीखउ जग। ३ फीज की चढाई। प्राक्रमरण । आंब गिणि, जालि करीरां झाडि ।-ढोला०, दू० ४३२ । दृगन पं जे मुहीम अखत्यार । कितने मनसूबा गए इन सौं जुरके मूंग-मञ्ज्ञा स्त्री०, पु० [ स० मुद्ग ] एक अन्न जिसकी दाल वनती है । हार ।-रसनिधि (शब्द०)। विशेष-मूग भादो मे प्राय साँवाँ प्रादि और अन्नो के साथ मुहिर' -सज्ञा पु० [ ] कामदेव । बोई जाती है और अगहन मे कटती है। इसके पौधे की मुहिर-वि० मूर्स । जब्बुद्धि । टहनियाँ लता के रूप मे इधर उधर फैली होती है। एक एक मुहिर ३–बझा पु० [ स० मुदिर, प्रा० मुहर ] मेघ । वादल । उ०- सीके मे सेम की तरह तीन तान पत्तियाँ होती है। फूल नीले मुहिर बलाहक तडित पति, कामुक धूमसपूत ।-नद० ग्र०, या वैगनी होते है। फ.लयाँ ढाई तीन अगुल को पतली पृ० ८८ । पतली होती है और गुच्छा मे लगती है। फलियो के मुहिम-राज्ञा स्त्री० [अ० मुहिम, मुहिम्म ] 'मुहिम'। उ०—कवीर भीतर ५-६ लवे गोल दान होते है, जिनके मुंह पर की विदी तोडा मान गढ, मारे पांच गनीम | सीस नवाया धनी को, उर्द की तरह स्पष्ट नही होती। मूग के लिये बलुई मिट्टी और साजी बडी मुहीम । -कवीर सा० स०, पृ० २७ । थोडी वर्पा चाहिए । मूग कई प्रकार की होती है-हरी, काली, मुहु.-अव्य० [म० मुहु ।] वार वार । फिर फिर । पीली। हरी या पीली मूग अच्छी समझी जाती है और सोना यौ०-मुहर्मुहु । मूग' कहलाती है। वद्यक मे मूग रूखी, लघु, धारक, कफन, मुहु :-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे॰ 'मुह'। पित्तनाशक, कुछ वायुवधक, नेत्रा के लिये हितकर और ज्वरनाशक कही गई है । वनमूग के भी प्राय यही गुण है। मूग का दाल मुहुक-मचा पुं० [ स० ] एक पल । एक क्षण [को०] । बहुत हलकी और पथ्य समझा जाती है, इसी से रागियो को मुहुपुची-मशा स्त्री॰ [ देश० ] काले रंग का एक प्रकार का छोटा प्राय. दी जाती है। इससे दही, पापड, लड्डू प्रा।द भा वनते ह । कीटा जो मूंगफली की फसल को नष्ट कर देता है । खुरल | पर्या॰—सूपश्रेष्ठ । वर्णाहं । रसोत्तम। भुक्किप्रद । हयानद। विशेप-ये कीडे रात को अधिक उडते हैं । पत्तियो पर अडे सुफल । वाजिभाजन । देते हैं जिससे पत्तियां सूख जाती है। ये कोडे धूप और साफ मुहा०-छाती पर मूग दलना = दे० 'छाती' का मुहा० । मूग को दिनो मे बहुत हानि पहुँचाते हैं । इनसे खेत की फसल काली हो दाल खानेवाला = पुरुपाथहान । निवल । डरपोक । जाती है। पानी बरसने पर ये कीडे नष्ट हो जाते है। मूंगफली-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० मूग+ फला या म० भूमि + हिं० फली] मुहुर्भुक्-मा पु० [ मुहुर्भुज् ] घोडा । अश्व (को०] । १ एक प्रकार का क्षु। जिसका खेता फला क लये प्राय सारे मुहूरत@f- सज्ञा पु० [ सं० मुहूर्त ] १ दे० 'मुहूर्त' । उ०—ब्रह्म भारत म की जाती है। मुहूरति कुश्रर कान्ह निज घर पाए तब। गोपनि अपनी गोपी विशेप-यह क्षुप तीन चार फुट तक ऊंचा होकर पृथ्वी पर अपने ढिग पाई सव। - नद० ग्र०, पृ० ३६ । २ सिनेमा की चारो ओर फैल जाता है। इसके डठल रोएँदार होते है और फिल्मो के प्रारभ का मुहूर्त । सीको पर दो दो जोडे पत्ते होते हैं जो आकार मे चकवंड के मुहूर्त-सरा पु० [ स० मुहूर्त ] १ काल का एक नाम । दिन रात का पत्तो के समान अहाकार, पर कुछ लबाई लिए होते हैं। सूर्यास्त तीसवां भाग । २ निर्दिष्ट क्षण या काल । ममय । जैसे, शुभ होने पर इसके पत्तो के जोडे आपस में मिल जाते हैं और मुहूर्त । ३ १२ क्षण का समय (को०)। ५. दो घटी का काल सूर्योदय होने पर फिर अलग हो जाते हैं। इसमे अरहर के ५ ज्योतिपी (को०)। ६ फलित ज्योतिष के अनुसार गणना फूलो के से चमकीले पीले रग के २-३ फूल एक साथ और एक करके निकाला हुआ कोई समय जिसपर कोई शुभ काम (यात्रा, जगह लगते हैं। इसको जड में मिट्टी के प्रदर फल लगते हैं विवाह ) आदि किया जाय । जिनके ऊपर कडा और खुरदुरा छिलका होता है तथा प्रदर क्रि० प्र०—निकलना ।-निफालना ।-देखना ।—दिखवाना । गोल, कुछ लबोतरा और पतले लाल छिलकेवाला फल होता स० .
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२२८
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