भुवना R जी०), किसी को मुकदमा आदि लडने के लिये अपना वकील नियुक्त मुशाहदा-सज्ञा पुं० [अ० मुशाहदह, ] निरीक्षण । देखना। करता हो । वकील करने या रखनेवाला । अवलोकन [को॰] । मुवना-क्रि० प्र० [ म० मृत, प्रा० मुश्र+हिं० ना (प्रत्य॰)] मुशाहरा-रज्ञा पुं० [अ० मुशाहर६, ] दरमाहा । मासिक वेतन [को०) । मरना । मृत होना । उ०—(क) गइ तजि लहरै पुरइन पाता । मुश्क'- सज्ञा पु० [फा०] १. कस्तूरो। मृगमद । मृगनाभि । १२. मुवउं धूप सिर अहा न छाता ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) गव । वू। जैसे पतंग आगि धंसि लीन्ही। एक मुवै दूसर जिउ दीन्ही । मुश्क'-सज्ञा स्त्री० [ देश०] कवे और कोहनी के बीच का भाग । —जायसी (शब्द॰) । (ग) नारि मुई, घर सपति नासी। भुजा। वाह। —तुलसी (शब्द०)। मुहा०—मुकें फसना या वांधना = ( अपराधी ग्रादि की ) दोनो मुवहिद-सज्ञा पु० [अ० मुवहिद मुवहिद ] वह जो ईश्वर को भुजानो को पीठ को प्रोर करके बॉघ देना। (इससे आदमी एक माने । वह जो एकेश्वरवाद को मानता हो। एकेश्वरवादी। वेबस हो जाता है।) उ.-उनके कवित्त पौर सवैया और वनावटै पूरा यकीन मुश्काहू-मज्ञा पु० [ फा०] कस्तूरीमृग को०] । दिलानेवाले उनके मुवहिद होने के है । -सुदर० ग्र० मुश्कदाना-सञ्ज्ञा पु० [ फा०] ओषधि के काम आनेवाला एक भा० १, पृ०५३ । प्रकार की लता का वीज । मुवा -वि॰ [हिं० मुघना ] मृत । मरा हुप्रा । विशेष—यह इलायची के दाने के समान कुछ चिपटापन लिए मुवाना-क्रि० स० [हिं० मुचना का स० रूप ] हत्या करना होता है और इसके टूटन पर कस्तूरी को सी मुगध निकलती प्राण लेना। मार डालना। उ०-इक सखी मिलि हंसति है। संस्कृत मे इसे 'लताकस्तूरी' कहते है। वैद्यक मे इमे पूछति बँचि कर की अोर । तजि मुवाइ सुभसत नाही निरखि स्वादिष्ट, वीर्यजनक, शीतल, कटु, नेत्रो के लिये हितकारी, उनकी ओर । —सूर (शब्द॰) । कफ, तृपा, मुखरोग और दुर्गंध आदि का नाश करनेवाला मुवाफिक-वि० [अ० मुसाफ़िक ] दे॰ 'माफिक' । माना है। मुशज्जर'-सज्ञा पुं० [अ० ] एक प्रकार का छपा हुआ कपडा । मुश्कनाफा-तशा पुं० [ फा० मुश्कयाफट् ] कस्तूरी का नाफा जिसके बूटेदार कपडा। अदर कस्तूरी रहती है। मुशज्जर-वि• बूटेदार । वेलबूटेवाला । उ.-क्या बकचे ताश मुश्कनाभ-सज्ञा पुं० [फा० मुश्क + २० नाभ ] वह मृग जिमकी मुशज्जर के क्या तस्ते साल दुसालो के । सब ठाठ पड़ा रह नाभि मे कस्तूरी होती है। कस्तुरीमृग । विशेप दे० जाएगा जब लाद चलेगा बजारा - कविता को०, भा० ४, 'कस्तूरीमृग' । पृ० ३१०। मुश्कवार-वि० [फा० ] सुगध वर्पक । बहुत खुशबूदार (को०) । मुशटी-सञ्ज्ञा सी० [सं०] श्वेत ककुनी । श्वेत कंगु [को०) । मुश्क बिलाई-सञ्ज्ञा सी० [ फा० मुश्क + हिं० बिलाई (= बिल्ली)] मुशफिक--वि० [अ० मुशफिक ] १. कृपालु । दयालु । २ मित्र । एक प्रकार का जगली विलाव जिसके अडकाशो का पसीना दोस्त । ३ तरस खानेवाला । दयावान् । रहम दिल । बहुत सुगधित होता है । गघ विलाव । मुशरव-सज्ञा पुं० [अ० ] वह स्थान जहाँ पानी पीया जाय । विशेष-परवी मे इसे जुबाद और संस्कृत में गधमार्जार कहते झरना । २. सप्रदाय । मजहब । ३. ढग । तौर तरीका [को०] । है । इसके कान गोल और छोटे होते है और रग भूरा होता मुशरिक-सज्ञा पुं० [अ० मुशरिक ] ईश्वर का छोडकर दूसरे की है । दुम काली होती है, पर उसपर सफेद छल्ले पड़े रहते है। भक्ति करनेवाला। उ०-गैर हक के सिजदा किसको कर न लवाई प्रायः ४० इंच होती है। यह जतु राजपूताने और को। काफिर मुशरिक जो हा कर मर न को।—दक्खिनी०, पजाब के सिवा बाकी सारे हिंदुस्तान में पाया जाता है । यह पृ० १५३ । विलो मे रहता है, शिकारी होता है और पाला भी जा सकता मुशल-सज्ञा पुं० [स०] धान आदि कूटने का डडा । मूसल । है। यह चूहे, गिलहरी आदि खाकर रहता है। इसकी कई मुशली'-संज्ञा पुं० [ स० मुशलिन् ] मूसल धारण करनेवाले, श्री- जातियां होती है। जैसे, भोडर, लकाटी इत्यादि । मुश्कवेद-सा पुं० [ फा० ] एक प्रकार का वेत जो बहुत सुगघित मुशली-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] गृहगोधा । छिपकिली [को०) । होता है । विशेप दे० 'बदमुश्क' । मुशायरा-मशा पु० [अ० मुशाअरह, ] १. बहुत से कवियो, शायरो मुश्कमेहदी-सज्ञा स्त्री० [फा० मुश्क + मेंहदी ] एक प्रकार का छोटा का एक जगह एकत्र होकर परस्पर अपनी कविता सुनाना । पौधा जो बागो मे शोभा के लिये लगाया जाता है। कविगोष्ठो । २ उपन्थित जनसमूह के सामने कवियो द्वारा मुश्किल'-वि० [अ० ] १. कठिन । दुष्कर । दुस्साव्य । २ जटिल । अपनी कविता सुनाना । कविसमेलन । पेचीदा (को०) । ३ वारीक । सूक्ष्म (को०)। मुशावरत-तशा स्त्री० [अ० ] विचार विनिमय । मत्रणा । परामर्श । मुश्किल-संज्ञा स्त्री० १. कठिनता । दिक्कत । कठिनाई । २ मुसीवत । मशविरा [को०] । विपत्ति । सकट । बलदेव ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२२०
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