मुरहा ३६७५ मुरझना 60 स० २ कथा- मुरहा -सज्ञा पुं० [ ] मुर को मारनेवाले, विष्णु या श्रीकृष्ण । मुरायठा -सज्ञा पुं० [हिं० मुरेठा ] दे॰ 'मुरेठा' । मुरहा। - वि० [ स० मुल ( नक्षत्र )+ हा (प्रत्य॰)] [वि॰ स्त्री० मुरार'-सज्ञा पु० [ स० मृणाल ] कमल की जड। कमलनाल । मुरही ] १ ( बालक ) जो मूल नक्षत्र मे उत्पन्न हुआ हो, उ.-छीनी तार मुरार सी तिहिं दीनी समुझाय । चोखी (ऐमा बालक माता पिता के लिये दोपी माना जाता है । चितवनि यार की कटि न कहू कटि जाय । - स. सप्तक, २ जिसके माता पिता मर गए हो। अनाथ । यतीम । ३. पृ०२४४। नटखट । उपद्रवी । शरारती। मुरार-सज्ञा पुं० [ स० मुरारि । दे० 'मुरारि'। मुरहा-सज्ञा पुं० [हिं० मुराना ] वह जो चलते हुए कोल्हू मे मुरारि-सज्ञा पुं० [ स० ] १ मुर दैत्य के शत्रु, विष्णु या श्रीकृष्ण । गडेरियां डालता है। २ डगण के तीसरे भेद (Isi) की सञ्चा । ( पिंगल )। मुरहारी--सञ्ज्ञा पुं० [ ] मुर दैत्य को मारनेवाले विष्णु या श्री- मुरारी- महा पु० सं० मुरारि ] दे॰ 'मुरारि'। कृष्ण । उ०--थके जगत समुझाय सब, निपट पुराण पुकारि । मरे मन वे चुभि रहे, मधुमर्दन मुरहारि ।-केशव (शब्द॰) । मुरारे-सञ्ज्ञा पुं० [ मं० ] मुरारि का सबोधन । उ० - बालसखा की विपत विहडन सकट हरन मुरारे ।—सूर (शब्द॰) । मुरा-तज्ञा स्त्री० [स० ] १ एक प्रसिद्ध गधद्रव्य जिसे 'एकागी' या मुरासा- सज्ञा पुं० [हिं० मुरना, मुरका ] तरकी। कर्णफून । 'मुरामासी' भी कहते हैं। दे० 'एकागी-३' । उ० - लस मुरासा तिय स्रवन यो मुकुतनि दुति पाइ । मानो सरित्सागर के अनुसार उस नाहन का नाम जिसके गर्भ से परस कपोल के रहे स्वेद कन छाइ। -विहारी (शब्द॰) । महानद का पुत्र चद्र गुप्त उत्पन्न हुआ था। मुराकया-सशा पु० [अ० मुराकवह ] समाधि । योग । धारणा। मुरासा-सशा पु० [हिं० ] दे० 'मुंडासा'। मुरिझाना@f-क्रि० अ० [ स० मूर्छन ] दे० 'मुरझाना' । उ० - उ.- गूमठ मे जब जाय लगा मुराकबे नजरि मे प्रावता है। मन हरि लीनो स्याम, परी राधे मुरिझाई ।-नद० प्र०, --पलटू०, पृ०५१ । पृ० १६६। मुराड़ा-सज्ञा पुं॰ [देश॰] जलती हुई लकडी । लुाठा । उ०-हम घर जारा मापना लिया मुराड़ा हाथ । अब घर जारौं तासु का जो मुरिता-वि० [हिं० मुडना ? ] विलासयुक्त। चचल । उ०-जु चल हमारे साथ ।--कवीर (शब्द०)। चले मुरि मारुत झकुरिता। सु मनो मुरवेस मुरी मुरिता । -पृ० रा०, २५/६३। मुराद-सज्ञा स्त्री० [अ०] १ अभिलापा । इच्छा । लालसा । कामना उ०-सव की मिल मुराद गैब की नौवत बाजी। इक दुनियां मुरीद- सज्ञा पुं० [अ० ] १. शिष्य । चेला । २ वह जो किसी का अनुकरण करता या उसके आज्ञानुसार चलता हो। अनुगामी । इक दीन दोऊ को रास्त्र राजी ।-पलटू०, पृ० ६३ । अनुयायी। उ०-मम्मा मन मुरीद होइ नही आपुर्व पीर कहावै । क्रि० प्र०—पूरी करना या होना। -हासिल होना, आदि । -पलटू, पृ० ७६ । मुहा०-मुराद आना-प्राभलापा पूरी होना। मुराद पाना% मनोरथ पूर्ण होना। मुराद वर थाना = मुराद पाना । मुराद मुरु-सज्ञा पुं० [ स० सुर ] २० 'मुर' । मांगना = मनोरथ पूरा हाने की प्राथना करना । मुराद मुरुग्रा-मज्ञा पु० [ देश० ] एडी के ऊपर का घेरा । पैर का गट्टा । मानना = मन्नत मानना। मनौती करना । मुरादा मुरवा। उ०—जो पाँव के मुरुप्रो मे होता है। - नूतना- युवावस्था । जवानी। मृतसागर (शब्द०)। २ माभप्राय । आशय । मतलब । मुरुकुटिया-वि० [हिं० मरकट + इया (प्रत्य॰)] दे० 'मरकट' । क्रि० प्र०--रखना ।-जना । मुरुख-वि० [ स० मूर्ख ] दे॰ 'मूर्ख'। उ०—दिसिटिवत कह यौ --मुराद दावा = नालिश करने का अभिप्राय । दावा करने नीअरे अध मुरुख कह दूरि । —जायसी (शब्द०) । का मसलन या उद्देश्य । मुल्खाई- सज्ञा स्त्री० [हिं० मुरुख + पाई ( प्रत्य० ) ] मूर्खना । मुरादी-सशा पु० [फा०] वह जो कोई कामना रखता हो । मौर्य । अभिलापी। श्राकाक्षी। मुरुछना-क्रि० अ० [ स० मूर्च्छन ] दे० 'मुरछना' । उ०--परेउ मुरुछि महि लागत सायक -मानस, ६१५८ । मुराना'-क्रि० स० [अनु॰ मुरमुर (= चबाने का शब्द) ] मुंह में कोई चीज डालकर उसे मुलायम करना। चुभलाना । उ० - मुरुछना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० मूर्च्छना ] दे॰ 'मूर्च्छना' । सोइ वीरी मुख मेलियो लगे मुरावन सोय । गोइ वीरी को राग मुम्छा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० मूर्छा ] दे॰ 'मूर्छा' । उ०-गइ मुरछा मुख प्रगट लख्यो सब कोय । -रघ्राज (शब्द०)। रामहि सुमिरि नृप फिरि करवट लीन्ह । मानम, २।४३ । मुराना-क्रि० स० [हिं० मोडना ] दे॰ 'मोडना' । मुरझना@-कि० अ० [ स० मूर्छन, हिं० मुरझाना ] मूच्छित होना । दे० 'मुरझाना' । उ०-सांम भरै उर पाते मताप । मुराफा- सज्ञा पुं० [अ० मुराफश्र ] छोटी अदालत मे हार जाने पर वडी अदालत मे फिर से दावा पेश करना । अपील । अरुझे मुरझे कर प्रलाप।-नद ग्र०, पृ० १५१ । ८-२६ के दिन%3
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