मुड़ना ३९६४ 'मुतमीवल पोर फिरना। दवाव या प्राघात से चलना या भुक जाना । मुतगा-श पुं० [१०] १ गाग माटी परधरी, गिने मायु घुमाव लेना । जैसे,--(क) छड पर दाब पडी, इमने वह गोग परिनते है । मुगगा। 3०--मेहर की अपनी श्री युनाइ मुड गई। (ख) यह तार तो गुन्ता ही नहीं है, इसे कमे भी मेहर का, मेहर का मुनगा नरम में लगाए।--मलूर लपेटें। २. किमी धारदार किनारे या नोक का इस प्रकार बानी, पृ००।२ गोटी । कापीन । झुक जाना कि वह आगे को अोर न रह जाय । जैसे, बुरी की मुतजन- Y० [फा० ] माग पुतार, गि ने पटाई भी धार या मुई का नोक मुन्ना । लफोर को तरह मीये न पटनी। जाकर घूमकर किसी प्रोर झुकना । वक्र होकर भिन दिशा में मुतअढी-fi० [अ०] १. गोमा या अतिक्रमण पारन्दाग । ' प्रवृत्त होना । जैसे,—प्राग चलकर यह नदी ( या नक) गतामा राग। दायरसन की ओर मुड गई है। ४ नलते चन्नत मागने मामी दूसरी ओर फिर जाना । दाए प्रया पाएं घम जाना । जैन,- मुतअल्लिक' -वि० [अ० मुनगनिजम ] " - पनवाला। कुछ दूर जाकर दाहिनी योर मुड जाना, तो उसका घर मिल रागार रराना ना । बद्ध । २ मिना रना । समितित । जायगा। ५ घूमकर फिर से पोछे की पार चल पड़ना। मुतअल्लिम-निवि 74 में। विषय म।न-के मुनु- लौटना। अल्निय गुमे गुछ नहीं करना है। सयो क्रि०--जाना। मुतअल्लिग-TI पु० [अ० मीचनेसासका मुड़ना --मि० अ० [हिं० मूहना ] दे० 'मुन्ना'। मुतअस्सिव वि० [१०] र पराया। घम, जाति पा मुडला. --वि० [ स० मुण्ड ] [ वि खा० मुडली ] जिसके मिर पक्षपात रिवाना। हर । 30--गाए । हा पार पर वाल न हो। विना वालवाला । मुडा। उ०—कच दिल और मुतनिक गुवापरन -प्रमधन खुवित्रा धर काजर कानी नकटी पहर वेमरि । मुख्ती पटिया भा०२, पृ०६०। पार मंवार कोढी लावै केसरि ।--सुर (ग-द०)। मुता-पु. [हिं० मुंह+टेक (फा के घर या चार के मुड़वरिया --सझा की० [हिं० मुड़वार +इया (प्रत्य॰) ] दे० ऊपर पाटन के बिना नही । दुपाच्या या नीना दीवार 'मुड़वारी'। जो गिरने ने रोन के तिहा। २ उभा । ३ नानार । मुड़वाना'---क्रि० स० [हिं० गुड़ना का प्रे० रूप ] १ किसी का लाटा मू डने मे प्रवृत्त करना । उस्तरे से बाल या रोएं दूर पाराना। मुत्तगेयर-० [अ० मुतगय्यिर ] परिवर्तित । यदला दृया । ८०- २ मुडवाना'। या बदहाल मतगयर मारा सबर लेन का पाए पाप मुड़वाना-क्रि० स० [हिं० मूडना का प्र० रूप ] मुटने या पूमन करतार ।-पीर म०, पृ०१८ । मे प्रवृत्त करना। मुतदायरा-पि. [अ०] (मा ) जो दायर किया गया मुडवारी-संशा सी० [स० मुण्ड + हिं० वारी (प्रत्य॰)] १. अटारी की हा (उच०)। दीवार का मिरा । मुंडेरा। उ०--मुवारी रविमणिनि मुतफन्नी-वि० [ T० मुनफन्नी ] मत का पूर्त। धावाज | संवारी । अनल झार छूटो छविवारी |---गुमान (श-द०)। " चालाक। लेटे हुए मनुष्य का वह पार्थ जिधर सिर हो । मिरहाना । ३ वह पार्श्व जियर किमी पदार्थ का सिरा अथवा परी मुतनफ्फिर-पि० [अ० मुतनक्रि] दृग्णा करनेवाला । भागने वाला । पलग रहनेगाना। उ.--चुनाचे मैं खुद गौर करता भाग हा। हूं तो मुझे रणधीर गिह का तरियत नरार मार रडो से मुड़हरा-सशा पुं० [हिं० मूंद+हर (प्रत्य० )] १. स्त्रिया की निहायत मुतनाफ्फर मालूम देती है। श्रीनिवास प्र, साडी वा चादर का वह भाग जो ठीक सिर पर रहता है। गृ० ३२॥ उ० -मुख पखारि मुडहर भिजे सीस सजल कर छ्वाइ । -विहारी (शब्द०)। २. सिर का अगला भाग । गुतफरकात-ज्ञा सी० [ य. नुतपरिमात ] १ त्रि भित्र पदाप । मुड़ाना-क्रि० स० [सं० मुराउन ] सिर के सव वात वनवाना । मुडन फुटकर चीजे। २ फुटकर व्यय को मद। .. जमीन के वे कराना । मुंडाना। प्रलापला टुरु जो किमी एक ही गाव के पता हो । भिर निन। अलग अलग। मुडिया' '-सज्ञा पुं० [हिं० मूड़ना + इया (प्रत्य॰)] वह जिसका मुतफरिक-वि० [अ० मुतपरिफ़ ] सिर मुंदा हुअा हो । ( विशेपत कोई सन्यासी, साघु या वैरागी २. विविध । पाई प्रकार का । आदि ) । उ०—यह निर्गुण लै तिनहि सुनावहु जे मुडिया वसे मुतवन्ना--सज्ञा पुं॰ [१०] गोद लिया हुया पुत्र । २. दत्तक पुत्र । काशी ।--सूर (शब्द०)। विशेप दे० 'मुंडिया'। मुतमादी-वि० [१०] जिसका नियत नमय बीत चुका हो [को०] । मुड़िया- 'सुशा स्त्री॰ [ देश० ] एक प्रकार की मछली । मुतमीवल-वि० [अ० ] धनवान् । सपत्तिशाली। अमीर । धना- मुडेरा-सरा पु० [हिं० भूद + एरा (प्रत्य॰) ] दे० 'मुंडेरा' । भिमानी।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/२०५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।