पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१९८

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मुखबंधन मुखलेप ao मुखवंचन-सज्ञा पुं॰ [ स० मुखबन्धन ] १ मुखवध । प्रस्तावना । मुखयंत्रण-सञ्चा पु० [ स० मुखयन्त्रण ] वल्गा । लगाम [को०] । २. पाच्छादन । पिघान (को॰) । मुखर'-वि० [सं०] १ जो अप्रिय बोलता । कटुभापी। २. मुखविर-सञ्ज्ञा पुं० [ अ० मुखबिर ] १ खवर देनेवाला । जासूस । बहुत बोलनेवाला । वकवादी । ३ प्रधान । अयगण्य । गोइदा। २. वह अपराधी जो अपराध को स्वीकार कर सबूत मुखर-सञ्ज्ञा पु० १. कोया । २ शख । का या सरकारी गवाह बन जाय और जिसे माफी दे दी जाय। मुखरज्जु-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] अश्ववल्गा । लगाम [को०] । मुसविरी सज्ञा सी० [हिं० मुखबिर + ई (प्रत्य॰)] १ खबर देने मुखरता-सञ्ज्ञा सी० [ स०] मुखर वा वाचाल होने का भाव । का काम । मुखविर का काम । २ मुखविर का पद । वाचालता [को०) । मुखभग-सज्ञा पु० [सं० मुखभङ्ग ] १ मुख पर का आघात या मुखरस-सज्ञा पुं० [ स० ] वातचीत वार्तालाप [को०] । प्रहार । २ मुख की वक्रता। चेहरा टेढा या तिरछा होना । मुखरा-सझा पु० [हिं० मुख + रा (प्रत्य॰)] दे॰ 'मुखडा'। उ०- ३ खिलना । विकास । प्रस्फुटन [को०] | मुहि चाव सो बारहि बार लख्यो मुख मोरि मनो मुखरा पिय मुखभगा-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] वह स्त्री जो अपने मुख का योनि को।-शंकुतला, पृ० ४६ । जैसा व्यवहार करे । मुख के प्रति योनि जैसा व्यवहार चाहने- मुखराग सज्ञा पुं० [ स० ] १ मुख का वर्ण। चेहरे का रग । २. वाली औरत [को०] । चेहरे का आकार प्रकार । मुखभूपण-सज्ञा पु० [ स० ] तावूल । पान । मुखराना-क्रि० अ० [ स० मुखर से नामिक० ] मुखर होना । मुखभेडg -सज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे॰ 'मुठभेड' । मुख से बोलना । कहना । उ०-एक एक के बरनहु, वह मालति मुखभेद-सज्ञा पु० [ स० ] मुंह का विकृत या टेढा होना [को॰] । की बात । सुनउ जीउ सरवन दै, हो पडित मुखरात ।-इद्रा०, मुखमडनक- संज्ञा पुं॰ [ म० मुखमण्डनक ] १ तिल का पौधा । पृ०१०३ । २ तिलक का वृक्ष (को०)। ३. मुख का प्रसाधन या भूषण। मुखरिका-सज्ञा स्त्री॰ [ मं० ] लगाम । मुखरी [को०) । मुख की शोभा वढानेवाली वस्तु । मुखरित-वि० [ ] गुजरित । ध्वनित । रवयुक्त । शब्दायमान । मुखमडल-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मुखमण्डल ] चेहरा । उ०-अधकार के अट्टहास सी, मुखरित मतत चिरतन मुखमडिका-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० मुखमण्डिका ] १. वैद्यक के अनुसार सत्य । -कामायनी, पृ० १६ । एक प्रकार का रोग । २ इस रोग की अधिष्ठात्री देवी। मुखरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] लगाम । मोहरी । मुँहडी [को॰] । मुखमडितिका-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मुखमण्डितिका ] वालको का एक मुखरुचि-सज्ञा स्त्री० [सं०] मुखकाति। उ०-नैनन तें नीर, प्रकार का रोग। धीर छूटघो एक सग छूटयो सुखरुचि मुखरुचि त्योंही विन रग ही।-भूषण ग्र०, पृ० १०८ । मुखमधु-वि० [ स. ] मधु सदृश मीठे अर्थात् सुदर मुंह का। सलोनी सूरत का । मीठे अवरवाला। मुखरोग-सज्ञा पु० [सं०] अोठ, मसूडे, दाँत, जीभ, तालु या गले मुसमसा-सञ्ज्ञा पु० [अ० मुखमसा (= विकलता या कठिनता)] अादि मे होनेवाले रोग। झगडा । झमेला । झझट | बखेडा । विशेष-वैद्यक के अनुसार इस प्रकार के रोग सब मिलाकर ६७ क्रि० प्र०-में पडना । प्रकार के माने गए हैं। इनसे पोठो मे होनेवाले ८ प्रकार के, मुखमाधुर्य-सञ्ज्ञा पुं० [स०] भावप्रकाश के अनुसार श्लेष्मा के विकार मसूढो मे होनेवाले १६ प्रकार के, दाँतो मे होनेवाले ८ प्रकार के जीभ मे होनेवाले ५ प्रकार के, तालु मे होनेवाले ६ प्रकार से होनेवाला एक प्रकार का रोग जिसमे मुंह मीठा सा बना के, कठ मे होनेवाले १८ प्रकार के और सारे मुख मे होनेवाले रहता है। ३ प्रकार के हैं। मुखमारुत-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] साम । श्वास (को०] । मुखलागल-सञ्ज्ञा पुं० स० मुखलागल ] सूअर । मुखमार्जन-सज्ञा पुं॰ [ स० ] दे॰ 'मुखप्रक्षालन' । मुखमोट-सज्ञा पु० [सं०] १ सलई का वृक्ष । शल्लकी । २ काला मुखलिसी-सज्ञा स्त्री० [अ० मुखलिसी ] छुटकारा । रिहाई । क्रि० प्र०—करना ।—देना ।-पाना ।—मिलना । —होना । मुखम्मस'-वि० [अ० मुखम्मस ] जिसमें पांच कोने या अग मुखलूक- सज्ञा पुं० [अ० मुखलूक ] जगत् । दुनियां । ससार । मादि हो। खुदाई। उ०-पुरुष ने इसे पहले ज्ञानी कहा। व मुखलूक पर हुक्मोरानी कहा । —कबीर म०, पृ० ३८६ । मुखम्मस--सञ्ज्ञा पुं० उर्दू या फारसी की एक प्रकार की कविता जिसमे एक साथ पांच चरण या पद होते हैं । उदा० मुखलेप-सज्ञा पु० [सं०] १ एक प्रकार का मुखरोग। मुंह का मुखम्मस को पंचकडी समझिए ।-कविता को० (भू०), भा० ४, चट चट करना। २ वह लेप जो मुंह पर शोभा या सुगध या पृ० २७ । विशिष्टता के लिये लगाया जाय । सहिजन ।