पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१९५

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मुक्तपुरुष ३६५४ मुक्ति मुक्तपुरुप-सज्ञा पुं० [सं० ] वह जिसकी आत्मा मुक्त हो। वह मुक्ताकेशी --सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का बहुत बढिया वैगन । जिसका मोक्ष हो गया हो। मुक्तागार-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] सीप । शुक्ति । मुक्तफला-मञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश० १] माधवी । उ०-वासती पुनि पुडका, मुक्तागुण-संशा पुं० [ स० ] मोतियो की लटी या माला । मुक्तफला अरु नाऊं।-नद न , पृ० १०६ । मुक्तागृह-सज्ञा पुं॰ [ म० ] मीप । शुक्ति । भुक्तवधन-वि• [ स० मुक्तवन्धन ] प्रतिबंध या बधन से मुक्त (को०] । मुक्तात्मा-वि० [सं० मुक्तात्मन् ] वह जिसकी प्रात्मा मुक्त हो । मुक्तबधना-सज्ञा स्त्री० [सं० मुक्त बन्धना] १ एक प्रकार का मोक्षप्राप्त । वधनमुक्त । निरासक्त । मोतिया । २ बेला। मुक्ताना@-क्रि० स० [सं० मुक्त + हिं० श्राना (प्रत्य०) ] वचन मुक्तबुद्धि -सज्ञा पुं० [सं०] वह जिसमे मुक्ति प्राप्त करने के योग्य मे छुडाना । मुक्त करना । मुक्ति दिलाना । उ०—गुरु है श्राप बुद्धि आ गई हो। मुक्तचेता। करम के माई । चेला को कैमे मुक्ताई।-घट०, पृ० २५२ । मुक्तमाता-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] सीप । शुक्ति । मुक्तापात-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मुक्ता + हिं० पात (= पत्ता)] एक मुक्तमाल-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मुक्ता+माल ] मुक्ता की माला । प्रकार की माडी जिमके इठलो से मीतलपाटी नामक चटाई मोतियो की माला । उ०—लिए सु दोय वज्र लाल एक बनाई जाती है। मुक्तमालयं ।-ह. रासो, पृ० ५१ । विशेष—यह झाडी पूर्व वगाल, आसाम और बरमा की नीची मुक्तरसा -सधा स्त्री० [स० ] रासना। तर भूमि मे अधिकता ने होती है और प्राय इसकी पनीरी मुक्कलज्ज-वि० [सं०] १ जिसने लज्जा का परित्याग कर दिया लगाई जाती है। हो । २ निर्लज । वेहया । मुक्तापुष्प-सञ्चा पुं० [स० ] कुद का पौवा या फूल । मुक्तवर्चा -सज्ञा सी० [ सं० ] अदितमजरी । रुद्रा । मुक्ताप्रसू-सा पुं० [सं०] नीप । शुक्ति । मुक्तवीय-सज्ञा पुं० [ मं० ] कुप्पा । मुक्ताप्रालब-सज्ञा पुं॰ [ स० मुक्ताप्रालम्ब ] मोतियो का हार । मुक्तवसन-सा पुं० [ स०] १. वह जिसके शरीर पर कोई वस्त्र मुक्ताफल-सशा पु० [म०] १ मोती। २ कपूर । ३ हरफा- न हो । २ वह जिसने वस्त्र पहनकर छोड दिया हो। नगा रेवरी। लवनी फल । लवली फल । ४. एक प्रकार का छोटा रहनवाला । ३ जैन यतियो या सन्यासियो का एक भेद । लिसोडा । मुक्तवास-सज्ञा पुं० [ ] सीप । शक्ति । ] मोतियो की तरह चमकदार । मुक्तवेणी- सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ द्रौपदी का एक नाम । २ प्रयाग मुक्ताभा-मशा स्त्री॰ [ स० ] त्रिपुरमल्लिका । त्रिपुरमाली । का त्रिवेणी मगम । मुक्तामणि-मज्ञा पु० [सं० ] मोती। मुक्तवेणी'-वि० स्त्री० जिमकी वेणी बंधी न हो [को॰] । यो०-मुक्तामणिसर = मोतियो का हार। मुक्तव्यापार-सशा पु० [सं० ] वह जिसका ससार के कार्यों या मुक्तामय-वि० [सं० ] मोतियो से युक्त । मोती का । उ.- तुम्हारा व्यापारो स कोई सवध न रह गया हो । ससारत्यागी। मुक्तामय उपहार, हो रहा अथकरणो का हार ।-झग्ना, मुक्तशिव-वि० [ स० ] युवक । युवा। जो शिणुता की अवस्था को पृ० २२। पार कर गया हो [को०] । मुक्तामाता-सशा स्त्री॰ [ स० मुक्तामात ] सीप । शुक्ति । मुक्तशृग-सञ्चा पुं० [ स० मुक्तङ्ग ] रोहू मछली । मुक्तामोदक-सज्ञा पुं० [ ] मोतीचूर का लड्डू। मुक्तसग-सज्ञा पुं॰ [ स० मुक्तसग ] १ वह जो विषय वासना से मुक्तालता-संज्ञा स्त्री॰ [ ] मोतियो का कठा। रहित हो गया हो। २ परिव्राजक । मुक्तावली-सहा स्त्री॰ [ सं० ] मोतियो को लडी । मुक्तामान (को०] । मुक्तसार-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] केले का पेड। मुक्तावास-सशा पुं० [ मं० ] सीप । शुक्ति । मुक्तहरत-वि० [सं० ] [ सज्ञा मुक्तहस्तता ] जो खुले हायो दान मुक्ताशुक्ति-सशा स्त्री० [ ] वह सीपी या शुक्ति जिसमे मुक्ता करता हो । बहुत बडा दानी । होती है। मुक्तहृदय-वि० [ स० ] राग द्वप के वधन से छूटा हुआ । स्थितप्रज्ञ । मुक्तासन-वि॰ [ स० ] वह जो अपने आसन से उठ खडा हो। २. सत्वस्थ । उ०- जब कभी वह अपनी पृथक् सत्ता की धारणा योग प्रक्रिया का एक आसन । से छूटकर अपने आपको विलकुल भूलकर विशुद्ध अनुभूति मात्र मुक्तास्फोट-सञ्ज्ञा पुं० सं०] सीप । शुक्ति । रह जाता है तब वह मुक्तहृदय हो जाता है।-रस०, पृ० ५। मुक्ताहल-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० मुक्ताफल ] मुक्ताफल । मोती। उ०- मुक्ताबर-सज्ञा पुं० [ सं० मुक्ताम्बर ] दे० 'मुक्तवसन' [को॰] । सहहिं जानहु मेहदी रची। मुक्ताहल लीन्हें जनु धुंधची।- मुक्ता-मज्ञा स्त्री॰ [ सं०] १ मोती । २ रासना । ३ वेश्या (को॰) । जायसी (शब्द०)। मुक्ताकलाप-मशा पु० [ स० ] मोतियो का हार । मुक्ताहार [को॰] । मुक्ति-सज्ञा सी० [सं०] १ छुटकारा । २ आजादी। स्वतत्रता । स० मुक्ताभ-वि० [ स० 50 स० स०