पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१८३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुँहासा मुद्रा।-सज्ञा सी० [ काम या पद। मुंदित ३६४२ मु दिती वि० [न० मुद्रित, प्रा० मुह ( = बद करना)] मुदा हुपा। मुंगरा।'-TA पुं० [Fि० मोगरा ] नाकीन बुदियां । वद । उ०---अध मुदित ननन न पा । मृगछौनहिं मनो मुगवन-शा पुं० [ मं० मुद्ग ] मोठ या उनमूंग नान या पदन । ग्राँघ सी पावै। नद० ग्र० पृ० १४६ । मुगिया - मा पुं० [हिं० ग+या (प्रत्य॰) Jएक प्रगर का स० मुद्रा ] दे० मुंदरा'। उ०-मुद्रा स्रवन धारीदार या पापानेदार कपमा । वि020 'मुंगिया' । कठ जप माला। जायमी ग्र० ( गुप्त ), पृ० २.५ । मुगीछी- बी० [म० मुद्गपथ्या, प्रा० गुग्गपच्छा>हि. मुवा-वि० [स० मुग, पा०, मुध्ध, अप० गु ध] गागक्त । मोहित । मुंगारी, पपमा गि+श्रीसी (प्रत्य॰)] मुंग यो बनी लुभाया हुया । मुग्ध । उ०-दिमि चाहती मज्जणा नेहालदी दुई बरी । मुंगारी । उ० - मई मुंगोली मिर्च परी। नायमी मुच । - ढोला०, दू २०४। (770) मुशियाना-वि० [अ० मुशी--हिं० इयाना (प्रत्य०) या फा० म गौरा मा . [१० मंग+वरा ] ग रे बने हुए है। मूंग मु शियानह ] मुशियो का सा । मुशियो की तरह का । का वग। उ० बीन्ह मुंगौरा श्री बटु परी । - जायनी मुश-सज्ञा ० [अ० } # लेप या निवध ग्रादि लिसनेवाला । लेगक । (गन्द०)। लिखापढी का काम या प्रतिलिपि प्रादि करनेवाला । मुंगौरी-गारी० [हिं० मग + यगे ] मूंग सी बनी हुई बरी। मुहरिर । लेखक । ३ वह जो बहुत नुदर अक्षर, विशेपत मुंडकरी-पग पी० [हिं० + करी (प्रत्य॰)] घुटनों में मिर फार पी प्रादि के प्रक्षर, लिसता हो। देकर ना या पीना, गा प्राय रहत दुम्ब के ममय होता है। म शीखाना-मज्ञा पुं० [अ० मुशी+फा० खाना ] वह स्थान जहां गुहा-मुंद माना = तुटनों मे मिर देकर, बहुत दुबी हो मु शी या मुहरिर आदि बैठकर काम करते हो । दफ्तर । कर बैठना। मु शीगिरी-सज्ञा सो श० मु शी+ फा० गिरी (प्रत्य॰)] मुशी का मॅडचिरा-या पुं० [हिं० + बोरना ?] एक प्रकार के फकीर । विशेप- फकीर प्राय प्रपा मि श्राप या नाय पादि हुने मु सरिम-सज्ञा ० [अ.] १ प्रवध या व्यवस्था करनेवाला । या नुकीने हथियार ने घायल करके भिक्षा मांगते हैं और भित्ता इतजाम करनेवाला । २ कचहरी का वह कर्मचारी जो दफ्तर न मिलने पर पटफर बैठ जाते है और अपने अगो को और भी का प्रधान होता है और जिसके सुपुर्द मिसले प्रादि ठीक करना अधिक घायत करते हैं। ऐसे फोर प्राय मुमनमान और ठिकाने से रखना होता है। ही होते है। मु सरिमी-सज्ञा स्त्री० [अ० मु सरिम + ई (प्रत्य॰)] मु मरिम का २ वह जो लेन देन में बहुत हुन और हठ क । काम या पद। मु सलिक - वि० [अ० साथ मे बांधा या नयी किया हुअा। मॅडचिरापन-शा पु० [हिं० मुंगचिरा+पन(प्रत्य॰)] लेनदेन (कच०)। यादि मे बहुत दुजत और छ । सिफ-सज्ञा पु० [अ० मुसिफ ] १ वह जो न्याय करता हो। मुंडना-ग्रि० स० [अ० मुण्टन ] १. मूटा जाना । तिर के वालों की इन्साफ करनेवाला । २ दीवानी विभाग का एक न्यायाधीश जो मफाई होना । २ लूटा जाना | लुटना । ३ ठगा जाना । धावे छोटे छोटे मुकदमो का निर्णय करता है और जो सब जज से में माना। ४ हानि उठाना । छोटा होता है। सयो० कि०-जाना। यौ०-मु सिफमिजाज = जिसके स्वभाव में न्यायशीलता हो। मुंडला-सज्ञा पुं० [हिं० ] नरमे का वह भाा जिसपर माल न्यायनिष्ठ । इमाफपसद । रहती है। मु सिफाना-वि० [ फा० मु मिफानइ, ] मु सिफो जैसा । न्यायपूर्ण । गुड्वाना -क्रि० स० [हिं० मू] दे॰ 'मुडाना' । न्यायोचित (को॰] । मुंडाई -मग मी० [हिं० मुंटना+ णाई (प्रत्य॰)] १ मू डने या म सिफी-सञ्ज्ञा सी० [अ० मु सिफ़+ई (प्रत्य॰)] १ न्याय करने का मुंठाने की क्रिया अथवा भान । २ मूडने या मुडाने के काम | २ मु सिफ का काम या पद । ३ मुसिफ की अदालत । वदले मे मिला हुमा धन । मुसिफ की कचहरी। मॅगना -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मुनगा ] सहिजन । मुनगा । मुंडाना-क्रि० ग० [ स० मुण्डन ] ३० 'मुडाना' । मुंडावलि-वि० [ म० मुण्ड + गवति ] मुडमाल | मुंडा की मुंगरा-सज्ञा पुं० [म० मुगदर, प्रा० मुग्गर, मोग्गर ] [ सी० मुंगरी] माला । उ०-फरत कुसुम गयनग, धरत गर ईन मुडावलि । हथौडे के आकार का काठ का बना हुआ वह अौजार जो किसी -पृ० रा०, ६१।१६०० । प्रकार का आघात करने या किसी चीज के पीटने ठोवान आदि के काम आता है। जैसे, खूटा गाडने का मुंगरा, घंटा वजाने मुंडासा-संज्ञा पुं० [हिं० मुण्ड (= सिर) + श्रासा (प्रत्य॰)] सिर पर बाँधने का माफा। को मुंगरी, रंगरेजो की मुंगरी प्रादि । उ०-कहै कबीर नर उ०—बैठे हरा मुंडामा वा पति बांधार पर्वत ।-हस०, पृ० ६२ । अजहुँ न जागा । जम को मुंगरा बरसन लागा । —कबीर० श०, भा० २, पृ०४३ ॥ कि०प्र०-सना ।-बांधना।