पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१७७

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मीठी मार ३६३६ मीनहा भीतरी मार। बहत जल्द ऐसी मीठो नीद सोएंगे कि हर्श (हत्र ) तक न विनीत, सगीतपेमी, कन्या सततिवाला, कीर्तिशाली, विश्वासी जागेंगे।-फिगाना०, भा० ३, पृ० ८७ । और धीर होता है और इसकी मृत्यु मूत्रकृच्छ, गुह्य रोग या उपवास आदि से होती है । मीठी मार-मशा सी० [हिं० मीठी+मार] ऐसी मार जिसकी चोट प्रदर हो और जिसका ऊपर से कोई चिह्न न दिखाई दे। मीनक-मज्ञा पुं० [ स० ] एक प्रकार का नयनाजन । एक तरह का सुरमा। मीठी लफडी-सज्ञा सी० [हिं० मीठी+ लकड़ी ] मुलेठी । मीनकाक्ष-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] सफेद कनेर । मीड-सश सी० [हिं० मीड ] दे० 'मीड' । उ०-भावती मीठ मीनकेत-सज्ञा पुं० [सं० मीनकेतु ] दे० 'मीनकेतन'। उ० तेरी ये मरोर दिए धन प्रानंद सौगुने रग सो गाज ।-घनानंद, वमी लगे मीनकेत को वान । -म० मतक, पृ० १८७ । पृ०४४। मीनकेतन'-वि० [ म० ] जिमकी पताका मे मीन का चिह्न हो। मीडका-सज्ञा पुं० [हिं० मेढक ] [ स्त्री० मीडकी ] मंडूक । मेढक । उ०—हुआ होगा बनना सफल जिसे देखकर मजु मीनकेतन मीडना-क्रि० स० [हिं० महिना (= मींजना) सं० मर्दन] मलना। अनग का ।-लहर, पृ ३ । दे० 'मीडना"। उ०-गजराज इंद्र दिप्ष न तथ्थ । मीडत मीनकेतन-मज्ञा पु० [सं०] कामदेव । मष्पिका जेम हथ्य ।-पृ० रा०, २।३६७। मीनकेतु -सज्ञा पुं० [सं० ] कामदेव [को०] । मीढ़-~वि० [सं०] १ पेशाव किया हुआ। मूत्र के मार्ग से निकला मीनगधा-सज्ञा सी० [सं० मीनगन्धा ] मत्स्यगधा या मत्यवती का या निकाला हुश्रा । २ मूत्र के समान । मूत्र का सा । एक नाम । मीदुप'- मशा पुं० [ मं० ] इद्र के एक पुत्र का नाम । मीनगधिका-सज्ञा स्त्री॰ [सं० मीनगन्धिका] दे० 'मीनगोधिका' । [को०] । मीदुप-वि० दया । रहमदिल । मीनगोधिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] जलाशय, तालाव या झील आदि । मीढुष्टम- सज्ञा पुं॰ [ R०] १ शिव । महादेव । २ सूर्य । ३ चोर । मीनघाती'-सज्ञा पुं॰ [ स० मीनघातिन् ] वगला । मीदवा- सञ्चा पु० [सं० मीदवस ] दे० 'मीढुष्टम' [को०] । मीनघाती-वि० मछली मारनेवाला । मीत-सज्ञा ० [सं० मिन, प्रा० मित्त ] मित्र । दोस्त । उ०- मीनतिg+-सज्ञा स्त्री० [सं० विनती ] दे० 'विनती'। उ०-पुन (क) मीत में मांगा वेगि विवानू । चला सूर संवरा अस्थानू । सराहिय सुंदरि मीनति जाहीरे । -विद्यापति, पृ० २२० । -जायसी (शब्द॰) । (ख) हम ही नर के मीत सदा सांचे मीनध्वज-सज्ञा पुं॰ [सं० कामदेव को०] । हितकारी। इक हमहीं संग नात तजत जब पितु सुत नारी। -भारतेंदु (शब्द०)। मीननाथ-सज्ञा पुं॰ [सं० ] गोरखनाथ के गुरु मत्त्येंद्रनाथ का एक नाम । मर्छदरनाय। मीन-मज्ञा पुं० [ सं०] १ मछली । उ०—(क) कहि न सकत कछु चितवत ठाढे । मीन दीन जनु जल ते काठे-मानस, २७०। मीननेत्रा-सज्ञा स्त्री० [ मं० ] गाउर दूब । (ख) विरच महादेव से मीन वहत जहाँ होय परगट कभी जोत मीनपित्त-संज्ञा पुं॰ [ सं० ] कुटकी नामक प्रोपधि । मारा।-चरण० वानी, पृ० १३० । २. मेप आदि राशियो मे मीनमेख-सचा पुं० [ स० मीन+मेप ] सोच विचार । प्रागा- से प्रतिम या बारहवीं राशि । पीछा । असमजम । उ०—(क) मीनमेख भा नारि के लेखे । विशेष- इस राशि मे पूर्वभाद्रपद नक्षत्र का प्रतिम पद और कस पिउ पीठि दोन्हि मोहिं देते ।-जायसी (शब्द॰) । (ख) उत्तर भाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र हैं । इस राशि की प्रविष्ठात्री मीनमेख विनु वात करत तुम मिथुन ललचाने ।-भारतेंदु० देवियां दो मछलियां हैं और यह चरणरहित, कफ- ग्र०, भा०२, पृ०४५६ । प्रति, जनचारी, नि शब्द, पिंगलवर्ण, स्निग्ध, बहुत सतानवाली मुहा०-मीममेख निकालना = (१ गुणदोप निकालना। और नाहाण वर्ण की मानी गई है। कहते हैं, इस राशि मे गुणदोप देखना । उ--तुम उसमे खामख्वाह मीनमेख निकालने जो जन्म लेता है, वह क्रोवी, तेज चलनेवाला, अपवित्र और लगते हो।-रगभूमि, भा॰ २, पृ० ६३३ । (२) सोचविचार अनेक विवाह करनेवाला होता है । या भागापीछा। पर्या०-कीट । जलज। सौम्य | अगन । युग्म । सय । भक्ष्य । मीनरक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० मीनरक ] जलकौवा । मुरगावी । मीनरग | गुरक्षेत्र । दीनारमक। मीनरग-सशा पु० [सं० मीनरम ] १ मछरग नामक पक्षी जो ३ मेप आदि वारह लग्नो मे से अतिम लग्न । मछली खाता है । २ जलकौया । विगेप-फलित ज्योतिष के अनुसार इस लग्न मे जन्म लेनेवाला मीनर-सज्ञा पुं० [ स० ] शाखोट वृक्ष। सहोरा । कार्यदक्ष, अल्पभोजी, स्त्री का बहुत कम साथ करनेवाला, चचल, घडियाल (को०)। अनेक प्रकार की बातें करनेवाला, धूर्त, तेजस्वी, बलवान्, मीनहाल-सज्ञा पुं० [ स० मीन + हा (प्रत्य॰)] वंशी जिससे धनवान्, चर्मरोगी, विकृतमुख, पराक्रमी, मछली पकढी जाती है। उ.-बडिस कुवेनी मीनहा पविनतापूर्वक और शास्त्रानुकूल प्राचार आदि से रहनेवाला, मत्स्यावानी नाम 1-अनेकार्थ०, पृ० ६२ । २ मकर। विद्वान्, !