पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१७३

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मिस्तर' ३६३२ मिहचना जिससे राज लोग छन या पलस्तर प्रादि पीटते हैं। पिटना । इमारतो के जितने प्राचीन खंडहर इस देश मे मिलते हैं। २ वह कल जिममे नोल की टिकियां बनाई जाती हैं। उतने और कही नहीं पाए जाते। पिरामिडो के लिये भी यह मिस्तर'-मज्ञा पुं० [अ० ] दफ्नी का वह बडा टुकडा जिसपर देश अत्यत प्रसिद्ध है अग्रेजो का मरक्षण और उनकी समानातर पर डोरे लपेट या सी लेते हैं और जो लिखने के इजारेदारी कर्नल नासिर के नेतृत्व मे ममाप्त करने के बाद अब समय लकारें सीवी रखने के लिये लिखे जानेवाले कागज के मिस्र एक म्पतत्र देश है। नोचे रख लिया जाता है, अथवा जिसपर रखकर कागज दवा मिस्रा-सज्ञा पु० [अ० ] ० 'मिमरा' । लिया जाता है। मिस्री-सज्ञा स्त्री० [हिं 1१ दे० 'मिसरी' । मिरतर३-सज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'मेहतर'। मिस्ल-वि० [अ० ] ममान । तुल्य । बराचर । जैसे,—यह घोडा मिस्तरी--सज्ञा पुं० [अ० मास्टर (= उस्ताद)] वह जो हाथ का मिस्त्र तीर के जाता है। बहुत अच्छा कारीगर हो । चतुर शिल्पकार । मिस्सर -सज्ञा पुं० [ R० मिश्र ] पूज्य । अादरणीय । उ०-पांवे विशष-इस शब्द का प्रयोग बहुधा लोहारो, बढइयो, राजगीरों मिस्मर अधुले, काजी मुल्ला को । तिनों पाम न भिटीय जो और कल पेंच प्रादि का काम करनवालो के लिये हो होता है। सवदे दे चोरु । - सतवारणी०, पृ० ७० । मिस्तरोखाना-सज्ञा पु० [हि० मिस्तरी + फा० खाना ] वह स्थान मिस्सा - मचा पु० [ म० मिश्रण, हि. मिपना( = मिन्नना) या जहां लोहार, बढई या कल पेंच आदि का काम जाननेवाले मीसना (= मलना)] १. मूग, मोठ आदि का भूसा जो मेडो वठकर काम करते हैं। और ऊंटो के लिये बहुत अच्छा समझा जाता है। २ कई मिस्ता-सञ्ज्ञा पु० [ श० ] १ वह मैदान जिसमे किमी प्रकार की तरह की दालो आदि को पीसकर तैयार किया हुआ भाटा हरियानी न हो । बजर । २ अनाज दाने के लिये तैयार को जिसको रोटी गरीव लोग वनाकर खाया करते है। ३ किमी हुई मम भूमि । प्रकार की दाल को पीसकर तैयार किया हुआ मोटा आटा जिमको रोटी बनाकर गरीब लोग खाते है। मिस्त्री- सज्ञा पुं० [हिं०] ० मिस्तरी'। उ०-ग्राप अपने मिस्त्री. खाने जाकर मिस्त्री को समझा रहे है।-प्रेमघन०, भा० २, यो०-मिस्सा कुस्सा = (१) बहुत ही मोटा अनाज या उमका वना पृ० ४२। खाद्यपदार्थ । (२) मोटा अन्न । क्दन्न।। मिस्सी-सज्ञा स्त्री० [फा० मिसी (= तांबे का) १ एक प्रकार का यौ०-मिस्रोखाना = दे० 'मिस्तरीखाना' । प्रसिद्ध मजन जो माजूफल, लोहचून और तूतिए प्रादि से तैयार मिस्मार-वि० [अ० ] स्वस्त । नष्ट । उ०-वहिर घाव दीख नही किया जाता है और जिसे सघवा स्त्रियाँ दांतो मे लगाती हैं। भीतर भया मिस्मार।-दरिया०, पृ० १० । इसमे दाँत काले हो जाते और मुंदर जान पडते है। उ०-पान मिस्र-सञ्ज्ञा पु० [अ० । एक प्रसिद्ध देश जो अफ्रिका के उत्तर पूर्वी भी खाया है मिस्सी भी जमाई हैगो।-भारतेंदु ग्र०, भा० २, भाग मे ममुद्र के तट पर है और जो बहुत प्राचीन काल मे पृ० ७६० । अपनी सभ्यता और उन्नति के लिये बहुत विख्यात था। क्रि० प्र०-मलना ।—लगाना । विशेप - इसके उत्तर मे भूमध्यसागर, पूर्व मे स्वेज की खाडी और मुहा०-मिस्सो काजल करना=पियो का बनाव सिंगार करना। पश्चिम मे सहारा का रेगिस्तान है। दक्षिण मे यह नील नदी मिस्सी और काजल आदि लगाना। के उद्गम तक चला गया है । नील नदी में प्रतिवर्प बहुत बडी यौ० -मिस्सीदान या मिस्सीदानी% मिस्सी रखने का पात्र या वाढ़ पाती है जिसके कारण उसके आस पास का प्रदेश डिविया। बहुत अधिक उपजाक है। इसके अतगत चौदह प्रात हैं। इसकी २ किसी वेश्या का पहले पहल किसी पुरुष से समागम होना, जिसके राजनगरी वा राजधानी काहिरा है और इसका सबसे वहा उपलक्ष मे प्राय कुछ गाना बजाना और जलमा भी होता है। बदरगाह अस्कदरिया है । इवर बहुत दिनो से यह देश तुर्की सिर ढकाई ( मुसलमान वेश्या )। के अधीन था और वही का राजप्रतिनिधि इसका शासन करता था, पर अब इसे अंगरेजो ने अपने सरक्षण मे ले लिया। मिहताना -सज्ञा पु० [हिं० ] २० 'मेहनताना' । उ० - बहुत अधिक इस देश के विशुद्ध प्राचीन निवासी अब यहा नहीं रह गए हैं मिहताना लेकर ।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ७५।। और उनकी वर्णमकर सतान बचा हैं, जिसका धर्म प्राय मिहेंदी - सज्ञा स्त्री० [सं० मेन्धिका ] २० 'मेहंदी'। उ०-बिरी इस्लाम और भापा अरबी से उत्पन्न है। किसी समय में इस अधर, अजन नयन, मिहंदी पग अरु पानि । - मति० ग्र०, देश के निवासी उन्नति और सभ्यता की चरम सीमा पर पहुंच पृ० ३४६ । गए थे, और यह देश रोम, भारत, चीन आदि का समकक्ष मिह-सज्ञा पुं० [स० ] वरसता हुमा बादल । मेह । माना जाता था, पर अब इसका पतन हो गया है। कहते हैं मिहचना- क्रि स० [हिं० मीचना ] दे० 'मीचना' । उ०-प्रीतम कि नह के पुत्र मित्र ने अपने नाम पर एक नगर बसाया था, हग मिहचत प्रिया पानि परस सुखु पाइ। जानि पिछानि मजान जिसके नाम पर इस देश का नाम पहा। बडे बडे भवनो और लौ नकुं न होति जनाइ ।-विहारी (शब्द॰) ।