पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१५०

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माशी' ३६२७ मासक GO २ जमीन की एक नाप जो २४० वर्ग गज की होती है । माशी २–2 उडद के रग का। कालापन लिए हरा रग का। माशी रग का। माशूक-सज्ञा पु० [अ०] [स्त्री० माशूका ] वह जिसके साथ प्रेम किया जाय । प्रियतम । प्रेमपात्र । यौ-माशूके हकीकी : परमात्मा । ईश्वर । माशूका-सञ्ज्ञा सी[अ० माशूकड् ] प्रेमास्पदा । प्रेयसी । प्रेमिका । माशूकाना वि० [फा०] नाज नखरे से भरा हुया । माशूको जैसा । माशूकी-सञ्ज्ञा सी० [फा० माशूकी ] माशूक होने का भाव । प्रेम- पात्रता । हाव भाव । यौ०- to-श्राशिकी माशूकी। माष-सञ्ज्ञा पु० [ म० ] १ उडद । २ पाठ रत्ती के बराबर का वाट या मान। माशा। शरीर के ऊपर काले रंग का उभरा हुमा दाग या दाना । मसा। माष-वि० मूर्ख । माषर-सज्ञा स्त्री० दे० [हिं०] माख' । माषक-सञ्ज्ञा पुं० [ स० ] १ माशा । ( तौल ) । २ उडद । माषकलाय-मञ्ज्ञा पु० [ सं० ] उरद । मापतैल 1-सज्ञा पुं० [सं० ] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का तेल जो अधीग, कप आदि रोगो मे उपयोगी माना जाता है। माषना-क्रि० स० [हिं० माख ] दे० 'माखना' । माषपत्रिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] दे० 'मापपर्णी' । माषपर्णी f-सज्ञा स्त्री० [सं०] वनमाप । जंगली उडद । विशेष--वैद्यक मे इसको वृष्य, बलकारक, शीतल और पुष्टिवर्धक माना है। पर्या-सिहपुच्छी । ऋषिप्रोक्ता । कृप्णवृ ता | पाटु । लोमपर्णी । माषवटी-सज्ञा बी० [ ] उडद की बनी हुई वडी। २० 'बडी' । मापभक्तवलि-मज्ञा स्त्री० [ स० ] तात्रिको के अनुसार एक प्रकार की बलि जो दुर्गा, काली आदि को चढाई जाती है। इसमे उडद, भात, दही आदि कई पदार्थ होते हैं। मापयोनि–क्षा स्वी० [सं० ] पापड । मापरा-सञ्ज्ञा सी० [ ] मांड | पीच । मापरावि-राज्ञा पुं० [स० ] लाट्यायन सूत्रानुसार एक ऋपि का नाम । ये मापराविन् ऋपि के गोत्र मे थे मापवर्द्धक सम्ञा पु० [ स० ] स्वर्णकार । सुनार। मापाज्य-सज्ञा पुं० [सं० ] घृत के योग से पकाई हुई उरद । एक विशिष्ट भोज्य वस्तु [को॰] । मापाद-सा पुं० [ ] कछुआ। मापाश-सज्ञा पुं० [ स०] अश्व । घोडा। मापाशी-सज्ञा पु० [सं० मापाशिन् ] [ सी० मापाशिनी ] घोडा । - सज्ञा पुं॰ [ म० ] उडद का खेत । माप का खेत । माष्य-सहा पुं० [ ] माप वोने योग्य खेत । मशार | मास-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ चद्रमा। २. महीना । माम । मास-सज्ञा पुं० [सं०] काल के एक विभाग का नाम जो वर्ष के वारहवें भाग के बराबर होता है । महीना। विशेष-मास (क) मौर, (ख) चाद्र, (ग) नाक्षत्र या वार्हस्पत्य और (घ) सावन भेद से चार प्रकार का होता है। (क) सौर मास उतने काल को कहते हैं जितने काल तक सूर्य का उदय किसो एक राशि मे हो, अर्थात् सूर्य की एक सक्राति ने दूसरी सक्राति तक का समय सौर मास कहलाता है। यह मास प्राय तीस, इकतीस और कभी कभी उनतीस और बत्तीस दिन का भी होता है। (ख) चाद्र मास चद्रमा की कला की वृद्धि और ह्रासवाले दो पक्षो का होता है जिन्हे शुक्ल और कृष्ण कहते हैं। यह मास दो प्रकार का होता है—एक मुख्य और दूसरा गौण । जो मास शुक्ल प्रतिपदा से प्रारभ होकर अमावस्या को समाप्त होता है, उमे मुख्य चाद्र मास कहते हैं । इसका दूसरा नाम अमात भी है। गौण चाद्र मास कृष्ण प्रतिपदा से प्रारभ होता है और पूर्णिमा को समाप्त होता है इसे पूणिमात भी कहते हैं । दोनो प्रकार के मास अट्ठाइस दिन के और कभी कभी घट बढकर उन्तीस, तीस और सत्ताइस दिन के भी होते है। (ग) नाक्षत्र मास उतना काल है जितने मे चद्रमा सत्ताइस नक्षत्रो मे भ्रमण करता है। यह मास लगभग २७ दिन का होता है और उस दिन से प्रारभ होता है जिम दिन चद्रमा अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है, और उस दिन ममाप्त होता है, जिस दिन वह रेवती नक्षय से निकलता है। (घ) सावन माम का व्यवहार व्यापार आदि व्यावहारिक कामो मे होता है और यह तीम दिन का होता है। यह किमी दिन मे प्रारभ होकर तीसवें दिन समाप्त होता है। सौर और चाद्र भेद से इसके भी दो भेद सौर सावन माम सौर मास की किमी तिथि से और चाद्र सावन मास चाद्र मास की किसी तिथि या दिन से प्रारंभ होकर उसके तीसवें दिन सप्ताह होता है। प्रत्येक मंवत्सर में वारह सौर और वारह ही चाद्र मास होते हैं, पर मौर वर्ष ३६५ दिनो का और चाद्र वर्ष ३५५ दिनो का होता है, जिससे दोनो मे प्रतिवर्ष १० दिन का अतर पड़ता है। इन वपम्य को दूर करने के लिये प्रति तीसरे वर्ष बारह के स्थान मे तेरह चाद्र माम होते हैं। ऐसे बढे हुए मास को अधिमास या मलमास कहते हैं। विशेप दे० 'अधिमान' और 'मलमास' । वैदिक काल मे मास शन्द का व्यवहार चाद्र मास के लिये ही होता था। इसी से सहितायो और ब्राह्मण मे कही बारह महीने का सवत्सर और कही तेरह महीने का सदसर मिलता है। २ चद्रमा (को०) । ३ एक मख्या । १२ की मग्या। मास-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० मास ] 'माम । उ०-बक न यहि वहनापरे जव तव वीर विनाम । वर्च न बढी मवीन्हू चोन्ह घोमुग्रा मास ।-विहारी (जन्द०)। मासक - सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] महीना। माम । उ०-भेद की बात मुने 1 स० सव HO मापोण