भोल्यि ३६३६ भीशी' माली। म० 0 नाम। माल्य-सज्ञा पु० [ स०] १ फूल । २ माला। ३ वह माला जो ये। उ०-मावन भादो की भारी कुहू की अंध्यारी चढि दुग्ग सिर पर धारण की जाय । पर जात मावली दल मचेत हैं।- भूपण (शब्द॰) । माल्यक-सज्ञा पु० [स०] १ दमनक दौना । २ माला । मावली-सशा स्त्री० [हिं० मयार, मयालु ] प्रेमल । स्नेहपूर्ण । उ०- माल्यजीवक-मज्ञा पुं० [ म० ] मालाकार । माला बनानेवाला। सोदा हुई एक दाई भली, मेहरबान होर गुन मरी मावली। -दक्सिनी०, पृ० १६१ । माल्यपुष्प-सज्ञा पुं० [ मन का पेड । मनई मावस-मज्ञा स्त्री० [सं० अमावस्या ] द° 'अमावस' । उ०- माल्यवत-सज्ञा पु० [ सं० माल्यवत् >मात्यवान् ] एक राक्षम । दुमह दुराज प्रजानु की क्यो न वढं दुरा ददु । अधिक अवेरी दे० 'माल्यवान्' । उ०-माल्यवर अति सचिव सयाना । जग करत मिलि मावस रवि चदु ।-विहारी र०, दो० ३५७ । -मानस,६४० मावा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मण्ड, हिं० मांढ ] १ मांड। पीच | २. माल्यवत्' '-सज्ञा पुं० [ ] दे० 'माल्यवान् । सत्त । निष्कर्प। माल्यवत् -वि॰ [ खी० माल्यवती ] जो माला पहने हो । मुहा०-मावा निकालना = खूब पीटना । कचूमर निकालना। माल्यवती'-सञ्ज्ञा ली० [स० ] पुराणानुमार एक प्राचीन नदी का ३ वह दूध जो गेहूं आदि को भिगोकर वा कच्चा मलकर निचोडने से निकलता है। प्रकृति । ५ सोया। ६. अडे माल्यवती' -वि० स्त्री० जो माला पहने हो। के भीतर का पीला रस । जग्दी। ७ चदन का इन जिसे माल्यवान् - मन्ना पुं० [ स०] १ पुराणानुसार एक पर्वत का नाम । आधार बनाकर फूलो और गवद्रव्यो का इत्र उतारा जाता है। विशेप-सिद्धातशिरोमणि मे इसे केतुमाल और इलावृत वर्ष के जमीन । ८ वह गाढा लसदार मुगचित द्रव्य जिमे तमाकू में बीच का सीमापर्वत लिखा है और नील पर्वत से निपथ पर्वत डालकर उसे सुगधित करते हैं । खमीर । ६ ममाला । सामान । तक इसका विस्तार कहा है । १० हीरे की बुकनी जिससे मलकर सोने चांदी को चमकाते हैं या उनपर कुदन या जिला करते हैं। २ एक राक्षस जो मुकेश का पुत्र था। विशेष—यह गर्व की कन्या देववती से उत्पन्न हुअा था । इसके मावा -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मातृ ] माता। मां । भाई का नाम सुमाली या जिसकी कन्या ककसी से रावण को मावा-सज्ञा पु० [अ० ] रक्षास्थल । पाश्रय स्थान । (को०] । उत्पत्ति हुई थी। मावासी-मशा स्त्री॰ [हिं० मवास ] दे० 'मवासी' । ३ वबई प्रात मे रत्नगिरि जिले के अतर्गत एक परगने का नाम । माश-सज्ञा पुं० [फा० मि० स० माप ] दे० 'माप'। माल्यवान-वि० [ स० माल्यवत् ] [ वि० सी० माल्यवती ] जो माशा'-मशा पुं० [ स० माप, जद० मप माइ, फा० मागह् ] माला पहने हो। पाठ रत्ती का एक प्रकार का बाट या मान । माल्यवृत्ति-सञ्ज्ञा पुं० [०] मालाकार । माली । विशप-इसका व्यवहार सोने, चांदी, रत्नो और प्रोपधियो के माल्या-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक प्रकार को घास । तौलने मे होता है । यह पाठ रत्ती के वरावर होता है और एक तोले का बारहवां भाग होता है । माल्ल-सज्ञा पु० [स०] एक वर्णमकर जाति जो ब्रह्मवैवर्त मे लेट पिता और वीवरी माता से उत्पन्न कही गई है। २ दे० माशा-सशा पुं० [ मं० महाशय, बैंग० मोशाय ] १ भला प्रादमा । 'मल्ल'। सज्जन । शरीफ। (वंगाली) । २ वग देश का निवासी। माल्लवी-मज्ञा स्त्री० [म०] मल्लो की विद्या या कला । माशाअल्लाह-पद [अ० ] एक प्रशसासूचक पद । वहुत अच्छा है । माल्द' - सज्ञा सी० [हिं० ] दे० 'माल' । क्या कहना है। माल्ह-सज्ञा पुं० [ म० मल्ल, हिं० माल ] दे० 'मल्ल' । विशेप-इस पद का प्रयोग दो प्रकार से होता है। एक तो किसी मावडिया- सज्ञा पुं० [7] जनखा। मौगा। स्त्रियों के सपर्क में अच्छी चीज को देखकर उसकी प्रशसा के लिये, और दूसरे अधिक रहनेवाला । स्त्री स्वभाववाला। उ०-मेछा हदा मुलक किसी अक्छी चीज का जिक्र करते हुए यह भाव प्रकट करने के मे जो मावडियो जाय । महबूबा री मिसल में किल सरदार लिये कि ईश्वर करे, इसे नजर न लगे । पहाय । बाँकी० ग्र०, भा॰ २, पृ० १३ । माशी'-संशा पुं० [हिं० माप (= उड़द)] १ एक रग जो कालापन मावत-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'महावत'। उ०—दियो पठाय श्याम लिए हरा हाता है। निज पुर को मावत सह गजराज । आगे चले सभा में पहुचे जह विशेप-कपडे पर यह रग कई पदार्थों मे रंगने से आता है नृप सकल समाज ।-मूर (शब्द॰) । जिनमे हह का पानी कसीस, हलदी और अनार की छाल प्रधान मावली-मज्ञा पुं॰ [देश॰] दक्षिण भारत की एक पहाडी वीर जाति है। इनमे रंगे जाने के बाद कपड़े को फिटकरी के पानी मे का नाम । इस जाति के लोग शिवाजी की सेना में अधिकता से डुवाना पड़ता है। वगाली।
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