मार्बल माल मार्वल-सञ्ज्ञा पुं० [अं० ] संगमरमर । मार्मिक-वि० [सं०] १ मर्म को जाननेवाला । मर्मज्ञ । २ मर्म- स्थान पर प्रभाव डालनेवाला। जिमका प्रभाव मर्म पर पड़े। विशेष प्रभावशाली । जैसे, मार्मिक व्याख्यान । मार्मिक कवित्त । उ०-किसी अर्थपिशाच कृपण को देखिए जिसने केवल अर्थ- लोभ के वशीभूत होकर क्रोध, दया, श्रद्धा, भक्ति, पात्माभिमान आदि भावो को एकदम दबा दिया है और ससार के मार्मिक पक्ष से मुंह मोड लिया है।-रस०, पृ० २४ । मार्मिकता-संज्ञा स्त्री० [सं०] १ मार्मिक होने का भाव । २ किसी वस्तु के मर्म तक पहुंचने का भाव । पूर्ण अभिज्ञता। जैमे,- सगीत के सबध मे पापकी मार्मिकता प्रसिद्ध है। मार्मिकपक्ष-सज्ञा पुं० [स० ] मर्मस्पर्शी अश। हृदय को प्रभावित करनेवाला भाग मन को द्रवित करनेवाला अग। उ०-और ससार के मार्मिक पक्ष से मुंह मोड लिया है। -रस०, पृ० २४ । मार्शल-सञ्ज्ञा पु० [अं० ] सेना का एक बहुत वडा अफपर जो प्रधान सेनापति या समरसचिव के अधीन होता है । मार्शल ला-सञ्ज्ञा पुं[अ० ] सैनिक व्यवस्था या शासन । फौजी कानून या हुकूमत । विशेप-समर, विद्रोह या इसी प्रकार के आपत्काल मे साधारण कानून या दडविधान से काम चलता न देखकर देश का शासन- सूत्र सैनिक अधिकारियो के हाथ मे दे दिया जाता है और इसकी घोपणा कर दी जाती है। सैनिक अधिकारी इस सकट काल मे, विद्रोह श्रादि दमन करने मे, कठोर से कठोर उपायो का अवलवन करते हैं। मार्ष-सज्ञा पुं॰ [ स०] दे० 'मारिप'। मार्षिक-सञ्ज्ञा पुं० [म.] मरसा का साग । मारिप शाक [को०] । माष्टि-सचा स्त्री० [सं०] १ मार्जन । शोधन । २ शरीर मे तेल लगाना (को०] । माल-सज्ञा पु० [ स० ] १ क्षेत्र । ऊंचा क्षेत्र । ऊंचा भूखड । २ कपट । ३ वन । जगल | उ-चकित चहूं दिसि चहति, विधुर जनु मृगी माल तै ।-नद० ग्र०, पृ० २७०। ४ हरताल । ५ विष्णु। ६ एक प्राचीन अनार्य जाति । भागवत मे इमे म्लेच्छ लिखा है। ७ एक देश का नाम जो वगाल के पश्चिम वा दक्षिणपश्चिम की पोर है। इसे मेदिनी- पुर कहते हैं। माल-सञ्ज्ञा पु० [ म० मल्ल ] कुश्ती लडनेवाला । दे० 'मल्ल' । उ०—(क) कहूं माल देह विसाल सैल समान अति बल गर्जही।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) योगी घर मेले सब पाछे । उतरे माल पाए रन काछे । —जायसी (शब्द०)। १२ राजपथ या सडक के आस पास की वह भूमि जो कच्चा हो। माल-सञ्चा स्त्री० [सं० माला ] १ माला। हार । उ०—(क) विनय प्रेम बस भई भवानो। खसी माल मूरति मुसुकानी।- तुलसी (शब्द॰) । (ख) पहिर लियो छन माँझ असुर वल नौरउ नखन विदारी । रुधिर पान करि प्रांत माल घरि जय जय शब्द पुकारी।—सूर (शब्द०)। (ग) चदन चित्रित रग, सिंधु राज यह जानिए। बहुत वाहिनी सग मुकुता माल विसाल उर । -केशव (शब्द॰) । (घ) कितने काज चलाइयतु चतुराई की चाल कहे देत गुन रावरे सब गुन निर्गुन माल ।—बिहारी (शब्द०)। २ वह रस्सी वा सूत की डोरी जो चरखे मे मूडी वा वेलन पर से होकर जाती है और टेकुए को घुमाती है । १२ चौडा मार्ग। चौडी सडक । ४ पक्ति । पाँती। उ०- (क) सेवक मन मानस मराल से । पावन गग तरग माल से।- तुलसी (शब्द॰) । (ख) वालधी विमाल विकराल ज्वाल माल मानो लक लीलिवे को काल रसान पसारी है। तुलसी (शब्द॰) । (ग) धाम धामनि आगि की बहु ज्याल माल बिरा- जही । पवन के झकझोर ते झंझरी झरोखे बाजही। केशव (शब्द०)। (घ) गीधन की माल कहुं जबुक कराल कहुं नाचत बैताल ले कपाल जाल जात से । -हनुमन्नाटक (शब्द०)। माल-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] १ सपत्ति । धन । उ०—(क) भली करी उन श्माम बंचाएं । बरज्यो नही कह्यो उन मेरी अति प्रातुर उठि धाए । अल्प चोर बहु माल लुभाने सगी सवन पराए । निदरि गए तैमो फल पायो अब वे भए पराए । —सूर (शब्द॰) । (ख) धाम औ वरा को माल वाल अबला को असि तजत परान राह चहत परान की । -गुमान (शब्द०) । (ग) माखन चोरी सो परी परकि रहेउ नंदलाल । चोरन लागे श्रव लखौ नेहिन को मन माल ।-रसनिधि (शब्द॰) । यौ०-मालखाना । मालगाड़ी । माल गोदाम । मालजामिन, माल मनकूला । माल गैरमनकूला । मालदार श्रादि । मुहा०—माल उडाना = (१) बहुत रुपया खर्च करना। धन का अपव्यय करना । (२) किमी की सपत्ति को हडप लेना । दूसरे का माल अनुचित रूप से ले लेना। माल काटना = किसी के वन को अनुचित रूप से अधिकार मे लाना । माल उडाना । माल चीरना = पराया धन हडपना। माल उडाना। माल मारना । माल मारना = अनुचित रूप से पराए धन पर अधि- कार करना। पराया धन हडपना । दूसरे की सपत्ति दवा बैठना। २ सामग्री । सामान । असवाब । उ०—(क) कहो तुमहिं हम को का बूझति । लै लै नाम सुनावहु तुम ही मो सो कहा अरूझति । तुम जानति मैं हूँ कछु जानत जा जो माल तुम्हारे । डार देहु जा पर जो लागं मारग चलो हमारे । —सूर (शब्द०) (ख) मिती ज्वार भाटा हू की शीघ्र ही निकारै । लोग कहत है भर माल कू कूति हु डार ।-श्रीधर (शब्द॰) । मुहा०-माल काटना = चलती रेल गाडी मे से या मालगुदाम आदि मे से माल चुराना । माल टाल = धन मपत्ति । माल असवाब माल मता= माल असवाव । माल मस्ती =वन का मद । माल की मस्ती। माल महकमा = माल का महकमा या विभाग । राजस्व सवधी विभाग। ३ क्रय विक्रय का पदार्थ । ४ वह धन जो कर मे मिलता है। ५ फसल को उपज । ६. उत्तम और सुस्वादु भोजन ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१४२
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