मानवर्जित ३६०५ मानसरोवर मानसपु४ उ०- मनोभव । मानवर्जित-वि० [ म.] निरभिमान । गर्ग या मानहीन । नीच । मग मानस हू पावो पहुंचाइ तर तुम पर रोझिए।-प्रियादाम अप्रतिष्ठित । (शब्द०)। ६ गोस्वामी तुलमोदाा रत रामावरण । रामचरित- मानवतिक-सा पुं० [ म० मानवतिक ] पुराणानुसार एक प्राचीन मानस । १० विरणु का एक रूप (को०) । ११ एक प्रकार का देश का नाम जो पूर्व दिशा मे था। जैनो के हरिवश के नमक (को०)। अनुसार यह देश वर्तमान मानभूमि है। मानस- वि०१ मन में उत्पन्न । मनाभव । २ मन का विचारा मानवशास्त्र-संशा पु० [] म० ] वह शास्त्र जिसमे गाना जाति की हुया । उ०-कलि कर एक पुनीत प्रतापा। मानग पुन्य होर उत्पत्ति और विकास प्रादि का विवेचन होता है। नहिं पापा ।—तुलसी (शब्द०)। विशेप-इम शास्त्र से यह मी जाना जाता है कि समार के भिन्न मानस-क्रि० वि० मन के द्वारा। उ०-है गडको मुत मुस वीचा । भिन्न भागो मे मनुष्यो की कितनी जातियाँ है, सृष्टि के अन्यान्य पूज्यो मानम शिर करि नीचा ।-विश्राम (शब्द॰) । जोवा मे मनुप्य का क्या म्यान है, मनुष्यो की सृष्टि कब और सज्ञा पुं० [सं० मानुप] मनुष्य । प्रादमी। कैसे हुई, उसकी मभ्यता का कने विकास हुआ, इत्यादि इत्यादि । कोमल मृणालिका मी मल्लिका को मालिका मी वालिका जु मानवाल-शा पु० [स० मानवा ] मानव । मनुष्य । उ०-मपने डारी भाउ मानस कं पशु है। - केशव (शब्द॰) । सोया मानवा, खोल देखि जो नैन। जीवपग बहु लूट मे, यौ०-मानसदेव । ना कछु लेन न देन । - कबीर मा० स०, पृ० ६५ । मानसकोश-सशा पु० [सं०] मन रूपी कोण या समभ। उ०-मेरे मानवाचल-सज्ञा पुं॰ [ म० ] पुराणानुसार एक पर्वत का नाम । मानसकोश मे दोनो (पेमभाव या लोभ ) का अर्थ प्राय मानवास्त्र-राज्ञा पुं० [ 10 ] प्राचीन काल का एक प्रकार एक ही निकलता है।-रम०, पृ० ११३ । का अस्त्र। मानसचारी-सशा पु० सं० मानस पारिन् ] एक प्रकार का हरा जो मानवी-- माझा ररी [ स०] १ स्त्री। नारी । औरत । २ पुगणा मानसरोवर मे होता है। नुमार स्वायभुव मनु की कन्या का नाम । मानसजन्मा-सज्ञा पुं० [सं० मानसजन्मन् ] १ मानवी-वि. [ मं० मानवीय ] मानव मवधी । मनुष्य का । कामदेव । २ हस । मानवीकरण-वि० [सं० मानवी + करण ] किसी सूक्ष्म वस्तु मे मानसजप-सज्ञा पुं० [सं० ] जप का एक प्रकार । वह जप जो मन मानवता के गुणधर्म या मानवता का प्रारोप या स्थापन ही मन किया जाय। करना। उ०—'हरिऔध' जी ने पवन द्वारा रावा का संदेश मानसतीर्थ-सञ्चा पु० सं० ] वह मन जो राग द्वेप आदि मे नितात भिजवाने के लिये मानवीकरण का ही प्रयोग किया है। - रहित हो गया हो। हिंदी प्रेमा०, पृ०६४। मानसदेव-सज्ञा पु० [० मानुप+ देव ] राजा । नरेश । मानवीय-वि० [ म० ] मानव सवघी । मानव का । मानसपुत्र-मशा पु० [स० ] पुराणानुसार वह पुत्र या सतान जिगकी मानवीयता - सशा झी० [सं० मानवीय + हिं० ता ] द० 'मानवता' । उत्पत्ति इच्छामान मे ही हुई हो। जैसे,-मनक, मनदन प्रादि उ०-गतलब यह कि मानवीयता की व्याप भूमि पर ही ब्रह्मा के मानसपुत्र है। काई अनुभूति गहरी ही मकतो है ।-इति०, पृ. ९ । मानसपूजा-सज्ञा सी० [ म० ] पूजा के दो प्रकारो मे मे एक । यह मानवंद्र - सज्ञा पुं० [ म० मानवेन्द्र ] राजा । पूजा जो मन ही मन की जाय और जिसमे अर्थ, पाद्य प्रादि पाह्य उपकरणो की आवश्यकता न रहे। मानवेश-सा पुं० [ स०] मानवेंद्र। मानव्य--शा पु० [ ] दे० 'मानव'। मानसर-सगा पुं० [ मं० मानससर ] दे० 'मानसरोवर' । उ०- दुरे न मानमर ताहि मैं कलानघर, सुधा मरबर गोक छोटि मानस'-~-सक्षा पुं० [ म० ] १ मन । हृदय । उ०-मगित तुलसिदाम गयो दुनिय । -भूपण ग्र०, १० ३२ । कर जोरे । वसहिं राम मिय मानम मोरे । —तुलसी (शब्द॰) । २ मानसरोवर । उ.-रोप महामारी परतोप महतारी मानसरोदक-मज्ञा पुं० [हिं० मानसर + उदधि ] मानसरोवर दुनी दखिए दुवारी मुनि माम मरालिके-तुलनी (शब्द॰) । क ममान मुदर सगेवर। उ०—-मानगरोदक वरना पाहा। ३ कामदेव । ४ माप विकल्प। ५.एक नाग का नाम । -जायसी ग्र०, पृ० १२ । ६ शाल्मली द्वीप के एक वर्ष का नाम । ७ पुप्पर द्वीप क एक मानसरोवर-सा पुं० [ स० मानस+ सरोवर ] हिमालय के उत्तर पवन का नाम । ८. दूत । चर। उ०—(क) मानम पठाए की एक प्रसिद्ध वदो झील । गुधि गो लाग साच पांच लोग फरी साष्टाग बात मानी भाग विशेप-इम भील के विषय में यह प्रसिद्ध है कि ब्रह्मा ने अपनी फले है ।-प्रयादाग (शन्द०)। (स) देव या भाति मा पठाए इच्छा मात्र से ही एमरा निमारण किया था। इस मावर का ८-१५ म०
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