माननि, माननी ३६०४ मानवपन RO मानमान्यता- सज्ञा सी० [ ] इज्जत । प्रतिष्ठा। मानमोचन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० ] माहित्य के अनुसार रूठे हुए प्रिय को मनाना जो नीचे लिखे छह उपायो के द्वारा बतलाया गया है,-(१) साम, (२) दाम, (३) भेद, (४) प्रणति, (५) उपेक्षा, और ( ६ ) प्रसगचिवम । मानयोग-सज्ञा पु० [ ] नाप और तीन की ठीक ठीक विधि या म० रीति किो०] । मध मे भी इस शब्द का इस अर्थ मे प्रयोग होता है। जमे,-उनका गाना बजाना अच्छ अच्छे उस्ताद मानते थे। ३ दक्ष ममझना। पारगत समझना । उस्ताद समझना। ४ वार्मिक दृष्टि से श्रद्धा या विश्वास करना । जैसे,--शिव को माननवाले शव कहलाते ह । ५ देवता आदि की भेंट करने का प्रण करना । चढापा नहाने प्रादि का दृट सकप करना । मन्नत करना । जंस,--११) के लड्डू गणेश जी को मानो ता इम्तहान मे पास हो जानोगे। ६ ध्यान मे लाना । समझना । जमे,--यह ता कमी को कुछ भी नहीं मानता । ७ स्वीकृत करके अनुकूल कार्य करना । जैसे,--शिवरात्रि किसी ने आज माना है और किसी न कल । ८ किमी पर बहुत अनुरक्त होना । किमी के साथ बहुत प्रेम करना ( बाजार )। माननि, माननी - सञ्ज्ञा पी० [म० मानिनी] दे॰ 'मानिनी' । उ० - क) नददास प्रभु कहाँ लौं वरनू वेदहु आपुन मुख कह्या यह माननि वड भाग ।-नद० ग्र०, पृ० ३६७ । (ख) मान मति कर माननी पिय संग करहु विलास ।-व्रज० ग्र०, पृ० ६ । माननीय-वि० [सं० ] [वि० झरी माननीया ] जो मान करने योग्य हो । पूजनीय । अादरणीय । मान्य । मानपत्र-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० मान + पन्न । ८० 'याभनदनपत्र' । मानपरिखडन-सशा पु० [ स० मानपरिखण्डन] १ अपमान । तिरस्कार । २ ० 'मानभग'। मानपरेखा-सज्ञा पुं० [ स० मान + परीक्षा ] आशा । विश्वास । भरोसा । मानरध्रा-मशा मी० म० मानरन्ध्रा ] जनघडी जिसका व्यवहार प्राचीन काल मे तमय जानने के । तो होता या । विशप - इसम एक छोटा कटोरा होता था जिसके पेंदे मे एक छोटा मा छेद होता था। वह कटोग किमी बडे जलपात्र मे छोड़ दिया जाता था और उम छेद के द्वारा धीर धीरे कटोरे मे पाना भरने लगता था। वह कटोग ठोक एक दट या घटी मे भर जाता था और पानी मे डूब जाता था। फिर उसे निकालकर खाली करके उसी प्रकार पानी मे छाड देते ये पौर इस प्रकार समय का निरूपण करते थे। मानरध्री-मश पी० [ म० मानरन्ध्री ] द० 'मानरधा'। मानर-TI पु० [ स० मल, हिं० मादल ] मादल बाजा । उ.- मानर की मद अावाज रिंग रिग ता विन ता।-मैला०, पृ० १२६ । मानव'-मग पु० [सं०] १ मनु मे उत्पन्न, मनुष्य । अादी । मनुज । २ वालक । वच्चा (को०) । ३ एक प्रकार के छद का नाम । १४ मात्रायो के छदो की सशा। इनके ६१० भेद है। " मनुकथिन एक उपपुराण [को०] । ५ मनुष्य को माप (लवाई)। मानव-वि० [वि०सी० मानवी ] १ मनु का। मनु ने सवद्ध । २ मनुष्योचिन । मानवोचित । मानवक-सा पु० [म० मानव ] १ छोटे कद का आदमी। वामन । वौना । २ तुच्छ आदमी । मानवत-सज्ञा पुं० [स० [ सी० मानवती ] वह जो मान करता हो । रूठा हुआ। मानवता- सज्ञा स्त्री॰ [ मं० ] मानव होने का भाव । मनुष्यता । मानुपता । मानवती-सचा सी० [ ] वह नायिका जो अपने पति या प्रेमी से मान करती हो । मानिनी । उ०-कर ईरपा मो जू तिय मनभावन मो मान । मानवती तानो कहत, कवि मातराम सुजान ।-मतिराम (शब्द॰) । मानवदेव-मक्षा पु० [सं०] राजा। उ०-बलि मिस देखे दवता कर मिस मानवदेव । मुए मार मुविचार हत स्वारथ माधन एव ।-- तुलसी (शब्द०)। मानवधर्मशास्त्र-सशा पुं० [ स० ] मनुस्मृति [को०] । मानवपति-सज्ञा पुं॰ [ ] राजा । नरेंद्र। मानवपन-सज्ञा पुं० [ मानव + हिं० पन (प्रत्य॰)] दे० मानवता'। उ०—पावक पग घर पावे नूतन । हो पल्लवित नवल मानवपन ।-युगात, पृ०३। मानपात-सज्ञा पुं० [हिं० मान+पात ] दे० 'मानकद' । मानभग-मज्ञा पुं० [ म० ] मानहानि । ( नायिका के ) मान का टूटना। मानभरी- वि० सी० [ मान + भरना ] मान से भरी हुई। गुमान से ऐठी हुई। सान भाव-मज्ञा पुं० [ म० ] चोचला । नखरा। मानभृत्-वि० [ स० ] मानवाला । भिगानी । गर्वयुक्त (को०) । मानमदिर--नज्ञा पु० [ स० मान + मान्दर ] १ स्त्रियो के रछकर वैठने का एकात स्थान । २ वह स्थान जिसमें ग्रहो यादि के वेध करने का यत्र तथा मामग्री हो। घशाला। मानमनौती-सज्ञा स्त्री॰ [हि मान+मनौती] १ मानता । मनत । मनौती। पारस्परिक प्रम। रूठने और मानने की क्रिया उ०-उसे खिलाने के लिये लोगो को मान मनौती करने की श्रावश्यकता है। मानमनौवल-मज्ञा पु० [हिं० मान + मनावना मनौती । रूठने और मनाने की क्रिया। उ०--रामेश्वर के परिवार का स्नेह, उनके मधुर झगडे, मानमनौवल, समझौता और प्रभाव मे सतोप, कितना सुदर । मैं कल्पना करने लगा।-आँधी, पृ० ७ । मानमरोर र-सशा स्त्री॰ [हिं० मान + मरोर ] मन मुटाव । रजिश । उ०- राधे मुजान इतं चित दै हित मे कत कीजतु मानमरोर है।-घनानद (शब्द॰) । HO HO
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१२७
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