३६०१ भाध्यदिन' माधवक म० 40 स० नारायण को मिलाकर बनाया गया है। ८ मघूक वृक्ष। मारियापु - -शा ग [ म० मा पुर्य ] • 'माधुरी' । उ०-लक्षण महुअा। ६ काला उर्द । १० इद्र (को०)। ११ परशुराम को कम कछु चाखि सुभावि क माधुरिया अधिकाई । -गज (को०)। १२ यादव गण (को०)। १३. मायणाचार्य के भाई ( गन्द० )। का नाम। माधुरी' '-मज्ञा ग्मी० [ म०] १ मिठाम । २ माधुर्य । गोभा। विशेष-ये १५वी शती मे थे। ऋग्वेद की टीका इन्होने और मुदरता। उ० -(क) गायप मलि चहुं वधु का जल माधुरी मायण ने मयुक्त रूप में की थी। स्मृति के व्याभ्यातायो मे मुवाम । —तुलसी (शब्द०)। (ब) गमचद्र की देखि माधुरी इनका स्थान प्रमुख है । इनके पिता का नाम मायण था। दर्पण दग्व दिसावं ।-मुर (मद०)। ३ मद्य । गगव । यो०-माधवम = मधूक । माधवनिदान = आयुर्वेद का निदान- माधुरी- '-मरा पु० [ म० मधुमास ] माधन माम | वैशान । उ०- विपयक प्रमिद्ध अथ । माधववल्ली = माधवी | माववश्री। गज श्रोन चल्लं रज ग्राम पाम । मना माधुरी माम फूले माधवक-मशा पु० [ म० ] महुए या मधु की शराब । पलाम ।-नृ० रा०, ११४५८ । माधव श्री-सच्चा खी० [ मं० ] वासतिक या वमतकालीन शोभा । माधुर्य-सा ५० [ ] माधवी लता। ] १ मधुर होने का भाव । मधुता। माधविका-सा सी० [ २ मुदरता । लावाय । ३ मिठाई। मिठाग । मीठापन । ४ माधवी-सञ्ज्ञा पु० ॥ ] १ प्रसिद्ध लता जिममे इमी नाम के पाचालो रात के अंतर्गत काव्य का एक गुगा । प्रसिद्ध मुगधित फूल लगते है। विशेष—यह चमेली का एक भेद है । वैद्यक के अनुसार यह कटु विशेप-इसके द्वारा चिन बहुत ही गमन होता है । यह शृगार, करण और शात रम म हा अधिक होता है। एमा रचना में तिक्त, कपाय, मधुर, शीतल, लघु और पित्त, खाँमी, व्रण, दाह आदि की नाशक मानी जाती है। प्राय ट, ठ, ड, ढ और ण नहीं रहते, क्योकि इनमें माधुर्य का नाश होना माना जाता है। 'उपनागारका' वृत्ति में यह २ प्रोडव जाति की एक रागिनी जिनमे गाचार और चैवत वजित आपकता से होता है। हैं। ३ मवैया छद का एक भेद । ४ एक प्रकार की शराव । ५ साविक नायक का एक गुण । बिना किनी प्रकार क शृ गार ५ तुलसी । ६. दुर्गा । ७ माधव की पत्नी। ८ कुटनी ।। श्रााद क ही नायक का मुदर जान पडना। ६. वाथ म एक शहद की चीनी । १० मधु को मदिरा । मधुनिर्मित मद्य (को०)। से श्रावक अर्यों का होना । वाक्य का श्लप। ६ श्राकृष्ण क माधवीलता-सज्ञा स्त्री० [ म०] माधवी नामक गुगवित फूलो की प्रात काता भाव । मधुरा या रागानुगा भाक्त । लता । विशेप-दे० 'माधवी-१'। माधुर्यप्रधान-संज्ञा पु० [ ] १. वह काव्य जिसमें माधुर्य गुण की माधवेष्टा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] वाराही कद । प्रधानता हो। २ गाने का एक प्रकार । वह गाना ।जमम माधवोचित-सञ्ज्ञा पु० [ ] एक प्रकार का परिमल या इत्र । माधुर्य का प्रावक ध्यान रखा जान प्रौर उसके शुद्ध रूप के (कक्कोल)। बिगडने की परवा न का जाय । माधवोद्भव-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० ] खिरनी का पेड । माधूक' '-मशा पु० [ स०] मनु के अनुसार एक वर्णगकर जाति माधी-सज्ञा पु० [ देश० ] भैरव राग के एक पुत्र का नाम । (मदिग्ध)। का नाम । माधुक-सज्ञा पु० । ] १ मैत्रेयक नाम की वर्णसकर जाति । विशेप-इन जाति या लाग मधुर शब्दा म नागा की प्रगता २ महुए की शराव। करते हैं, इमीलये ये 'माधूक' हेलाते हैं। कुछ लाग 'वदी' माधुकर-वि० [सं०] [वि० सी० माधुकरी ] भौरे के समान । को ही 'मायूफ' मानते हैं। मधुकर जैसा । भ्रमर के समान । जैसे, माधुकरी वृत्ति । माधूक'- वि० मिष्टभापी । मिठवाला । मृदभापो । माधुकरी-सशा पु० [स०] १ भिक्षा का मकलन जो दरवाजे माधैया-मश १० [ म० माधव + हिं० ऐया ] दे० 'माधव' । दरवाजे घूमकर किया जाय जैसे भ्रमर मकरद मचय करता उ०—हार हित मरा माना । देहरी चढत परत गिार गिरि, है । २ पांच विभिन्न स्थानो से मांगी हुई भिक्षा [को०) । करपल्लव जो गहत ह री मैया ।—सूर (शब्द०)। माधुपार्किक-सज्ञा पु० [ म० ] वह पदार्थ जो मधुपर्क देने के गमय माधो-संश पुं० [सं० माधव ] १ श्रीकृष्ण । उ०—(क) जव मायो दिया जाता है। होइ जात मकल तनु गया विरह दह ।-सूर (शब्द०)। (ग) माधुर-सा पुं० [सं०] मल्लिका । चमेली। शीण नाइ पर जोर कया तव नारद नभा सहेन । तरक्षण माधरई-ना सी० [ म० माधुरी ] गधुरता। मिठाम । उ०- भीम धनजय मावा धन्य जिन का भम ।-सूर (शब्द०)। २. ए अलि या बलि के प्रधरानि मे आनि मढी कछु माधुरई श्रीरामचद्र । उ०-याधा पल माधा जू के दा दिन नई सी।-पद्माकर (शब्द०)। शति सीता का वरन वहू होत दुदाई है।-शव (शब्द०)। 'माधुरता-सशा सी० [ स० मधुरता ] मीठापन । मिठाम । उ० -- माधौ-संशा गु० [म. माधव ] दे० 'माधव' । जिती चारुता कोमलता मुकुमारता माधुरता अधर। में माध्यदिन'—मा यु० [ म० माध्यन्दिन] १ दिन का मध्य भाग । अहै।-(शब्द०)। मध्याह्न । दोपहर । २ दे० 'माध्यदिनो' । स० do 0
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१२४
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