मातगलीला ३८७८ माता 20 HO मातगलीला-मज्ञा पुं॰ [ सं० मातङ्गनीला ] चिकित्सा सवंधी एक यौ०-मातमपुसी। ग्र थ [को०] । २ किमी दुखदायिनी घटना के कारण उत्पन्न शोक । मातगी-सज्ञा स्त्री॰ [ ३० ] १ कश्यप की एक कन्या । मातमखाना-सञ्ज्ञा पुं० [अ० मातम+ फा० खाना ] मातम का विशष-कहते हैं, हाथी इमी से उत्पन्न हुए थे। स्थान । वह घर जिममे मृत्युशोक हो । २ तात्रिको के अनुसार दम महाविद्याग्रो मे से नवी महाविद्या । मातमपुरसी-सज्ञा स्त्री॰ [ फा० मातमपुर्सी ) दे० 'मातमपुर्यो' । ३ वशिष्ठ ऋप की पत्नी का एक नाम (को०)। ४ श्वपच- उ०-मियां साहब ने मुनते हो मिर पीटा, रोए गाए, विछोने कन्या । चाडाल को कन्या (को०) । से अलग बैठे, सोग माना, लोग भी मातमपुरसी को श्राए ।- मात' '-सज्ञा मी [ म० मातृ ] १ जननी। माता । उ०—तात को भाग्नेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ०, ६७७ । न मात को न भ्रात को कहा कियो ।-पद्माकर (शब्द०)। मातमपुर्सी-मज्ञा मी० [ फा० ] जिसके यहाँ कोई मर गया हो, उसके २ कोई पूज्य या आदरणीय बडी महिला। उ०-को जान यहां जाकर उसे ढारस देने का काम । मृतक के मवधियो को मात विझनी पीर । मौति को साल सालै सरीर ।--गृ० सात्वना देना। रा०,११३७५ । मातमी-वि० [ फा• ] १ मातम मवधी । शोकमूचक । जैसे, मातमी मात'-सज्ञा स्मी० [अ० ] पराजय । हार । उ०-रविकुल रवि पोशाक, मातको मूरत, मातमी रग । २ मनहूम । अप्रिय । प्रताप के आगे रिपुकुल मानत मात ।-राधाकृष्णदाम बुरा । उ०-इमी एक बात मे इनके मातमी मत को नि सारता (शन्द०)। झलक पडती ।-प्रेमधन०, भा॰ २, पृ० २७५ । कि० प्र०-करना। देना। मातमी लिबास-मज्ञा पु० [अ०] शोकमूचक पहनावा। काले रग मात:- वि० [ ] पराजित । उ०—(क) तुव दृग मतरंज बाज सो का कपडा। मेरो बम न वमात । पातमाह मन को करै छबि मह देकर मात | – रमनिधि (गन्द०) । (ख) देख्यौ वादशाह भाव, कू दे मातमुख-वि० [हिं०] मूर्य । परे गहे पाव, देखि करामात मात भए मव लोक है। -विश्व- मातरिपुरुप सज्ञा पुं० [ ] वह जो केवल घर मे अपनी माता प्रादि के सामने ही अपनी वीरता प्रकट करता हो, बाहर या नाथ सिंह (शब्द॰) । (ग) जासो मातलि मात अरुग गति जाति सदा रुक ।-गोपाल (शब्द॰) । औरो के सामने कुछ भी न कर सकता हो । मातg -वि० [ स० मत्त ] मदमस्त । मतवाला। (क्व०) । उ.- मातरिश्वा-सज्ञा पुं० [ मं० माप्तरिश्वन् ] १ अंतरिक्ष मे चलनेवाला, वदन प्रभा मय चचल लोचन, अानंद उर न ममात । मानहुँ पवन । वायु । हवा । २ एक प्रकार की अग्नि । अग्नि । भौंह जुवा रथ जोते, समि नचवत मृग मात ।-मूर०, १० । मातलि-मज्ञा पु० [ म० ] इद्र के सारथी या रथ हाँकनेवाले का १८०५ । नाम । उ० -- सुरपति निज रथ तुरत पठावा। हरप सहित मातां-मज्ञा स्त्री॰ [ म० मात्रा ] मात्रा। परिमाण । उ० - प्रायो मातलि लं पावा। - तुलमी (शब्द०)। खेजड ले असुर मेछ परक्खण मात ।-रा०६०, पृ० ३३० । यो०-मातलिसारथि = इद्र । मातलिसूत । मातदिल-वि० [अ० मोऽतदिल ] मध्यम प्रकृति का । जा गुण के मातालसूत मज्ञा पुं० [०] इद्र । उ०-कौशिक वासव वृत्रहा मघवा विचार से न बहुत ठढा हो और न बहुत गरम । मातलिमूत । - नददास (शब्द॰) । विशेष-इस शब्द का प्रयोग प्राय ओषधियो या जलवायु आदि मातली-मज्ञा पुं॰ [ ] एक प्रकार के वैदिक देवता जो यम और के मवध मे होता है। पितरो के साथ उत्पन्न माने गए हैं। मातना-क्रि० . [ म० मत्त ] मस्त होना । मदमत्त हो जाना । मातहत- सज्ञा पुं० [अ०] किसी की अधीनता मे काम करनेवाला । नशे मे हो जाना । उ०-(क) जो अचवत मार्ताह तृप तेई । अधीनस्थ कर्मचारी। नाहिन माधु सभा जिन सेई । - तुलसी (शब्द॰) । (ख) पियत मातहती - मज्ञा झी । अ० मातहत + ई (प्रत्य॰)] मातहत या जहाँ मधु रमना मातत नैन । भुकत अतनुगाते अवरनि कहत अधीनता मे होने का काम या भाव । बनै न ।-रहीम (शब्द॰) । (ग) साधू रहै लगाए छाता ताहि माता-सच्चा स्त्री० [सं० मातृ] १ जन्म देनेवाली स्त्रो। जननी । देखि नृप अमरप माता ।-रघुराज (शब्द॰) । उ०-जो वालक कह तोतरि बाता। मुनहिं मुदित मन पितु मातवर - वि० [अ० मात बर ] विश्वास करने योग्य । विश्वसनीय । अरु माता ।—तुलसी (शब्द०)। २ कोई पूज्य या आदरणीय जैसे-इन्हे रुपए दे दीजिए, ये मातवर आदमी है। वही स्त्री। उ०-दै द्रव्य कह्यो माता सिधाव ।-पृ० रा०, मातबरी-सशा स्त्री० ५० ] मातवर होने का भाव । विश्वसनीयता । ११३७६ । ३ गौ । ४ भूमि । ५ विभूति । ६ लक्ष्मी । ७ मातम-सज्ञा पुं० [अ०] १ मृतक का शोक । वह रोना पीटना खेती। ८ इ द्रवारुणी। जटामासी। १० शीतला । चेचक । आदि जो किसी के मरने पर होता है। उ०- जब बादशाह ११ पाखुकर्णी (को०)। १२ जाव (को॰) । १३ आकाश मर जाता है, तो मारे मुल्क के आदमी सौ दिन तक मातम (को०) । १४ दुर्गा (को०)। १५ शिव वा स्कद को मातृकाएं रखने है और कोई काम खुशी का नहीं करते ।-शिवप्रमाद जिनकी मख्या कुछ लोगो के मातानुसार सात है, कुछ के (शब्द०)। अनुसार आठ और कुछ लोगो के मत मे १६ कही गई है।
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