माड़ा ३८७७ मातंगमकर म० माडा - वि० [सं० मन्द ] १ खरा । निकम्मा। २ दुबला। माणविका-मज्ञा स्त्री॰ [ रा० ] वाला । किशोरी । बालिका को०] । दुर्वल । ( पश्चिम ) । ३ वीमार । रोगी (पश्चिम) माणवीन-वि० [ स०] मारण सबधी। बालको का। बच्चो की माडि-सञ्ज्ञा पु० [ स०] प्रासाद । महल [को०] । तरह। माडुक, माडुक्कि-सज्ञा पु० [ ] नगाडा वजानेवाला। ढोल माणव्य-सज्ञा १० [ स० ] वातको का समूह । शिशुममूह । बच्चो बजानेवाला। का झुड या गोल। माडौं-भज्ञा पुं० [स० मण्डप ] १ विवाह का मंडवा। दे० माणस-मा पु० [म० मानुप, प्रा० माणुस, अप०, राज० 'मडप'। उ०-रचि रचि मानिक माडी छावहिं।-जायसी माणस ] मनुष्य । व्यक्ति । उ०-मालवणी का माणगाँ, पाए ग्र० (गुप्त), पृ० ३०७। २ घूप और हवा के तीखे झोके से मिल्या अजाण ।-ढोला०, दू० १८५ । बचाव के लिये पान के भीटे के ऊपर वांस, फूम आदि का मडप । माणिक' - मशा पु० [ म० ] जौहरी । रत्नो का पारखी (को०)। पान का बंगला। विशेप दे० 'पान' । उ०-पानवाडी की माणिक-मशा पु० [ मं० माणिक्य । दे० 'माणिक्य' । उ० - परि- दीवारें जिनको टट्टी कहते हैं बहुत मोटी बनाई जाती है ताकि पूरण सिंदूर पूर कैची गगल घट । किधौं शक्र को छत्र मढ्यो अदर हवा न जा सके, लेकिन छत जिसे माडी कहते है बहुत माणिक मयूब पट । -केशव (शब्द०)। हलकी बनती है। -कृपि०, पृ० १८२ । माणिका-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] एक तौल जो पाठ पल की होती है। माढ़ा@:-सज्ञा पु० [ सं० मण्डप ] १ अटारी पर का वह चौबारा माणिक्य-सज्ञा पु० [ स०] १ लाल रंग का एक रत्न जो 'लाल' जिसकी छत गोल मडप के आकार की हो। २. अटारी पर कहलाता है। पद्मगग । चुनी। विगेप-20 'लाल'। उ०- का चौवारा ( चाहे वह किसी बनावट का हो)। उ०-को अनेक राजा गणो के मुकुट माणिक्य से सर्वदा जिनके पदतल पलग पौढे को माढे । सोवनहार परा बंद गाढे।-जायमी लाल रहते हैं, उन महाराज चद्रगुप्त ने श्रापके चरणो मे दडवत (शब्द०)। करके निवेदन किया है। -मुद्राराक्षस (शब्द॰) । माढाल-सज्ञा पु० [हिं० महना, मथना ] दे० 'मठा'। पर्या०-रवि. नक । ऋ गारी । रंगमाणिक्य । तरण । रत्न- माढीर-सज्ञा स्त्री० [हिं० मढी ] दे० 'मढी'। उ० -अंगिया बनी नायक । रत्न । संगधिक । लोहितिक । कुरुविंद । २ भावप्रकाश के अनुसार एक प्रकार का केला। कुचन सो माढी । —सूर (शब्द०)। २ मच । मचिया । माणिक्य-वि० सर्वश्रेष्ट | शिरोमणि । परम आदरणीय । उ०-नृप माढी- सज्ञा स्त्री॰ [ स० माढि, माढी] १ दांतों का मूल । २ माणिक्य मुदेश, दक्षिण तिय जिय भावती। कटि तट सुपट पखही या पत्ते जो पूरी तरह फैले न हों (को०)। ३ विषाद । विषण्णता (को०)। ४ दरिद्रता । गरीवी । निर्धनता (को॰) । मुदेश, कल कांची शुभ महई । केशव (गन्द०)। माणिक्या-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] छिपकली। ५ क्रोध | कोप। अमर्प (को०)। ६ वत्र का किनारा वा अचल (को०)। माणिव ध-सज्ञा पुं॰ [ म० माणिबन्ध ] मेंधा नमक । माद-सज्ञा पुं॰ [देश॰] मनुष्य । उ०- माढू ज्यांग मारज, पौहरा माणिमथ-सज्ञा पु० [ म० माणिमन्थ ] मेंधा नमक । जिका पडत । वाँकी ग्र०, भा० १, पृ० २३ । मातग-सज्ञा पु० । स० मातङ्ग ] १ हाथी । २ श्वपच । चाहाल । उ.-मदमत्त यदपि मातग सग। अति तदपि पतित पावन माणक-सञ्ज्ञा पुं० [ म० ] मानकद । तरग । केशव (शब्द०)। माणतु डिक- सज्ञा पु० [ स० माणतुण्डिा ] एक प्रकार का जनचर विशेप-इस उदाहरण मे श्लेप से यह शब्द दोनो अयों मे पक्षी। प्रयुक्त है। माणव-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ मनुष्य । श्रादमी । २ वालक । बच्चा । ३ एक अपि का नाम। ३ सोलह लही का हार । ४ छोटा आदमी। क्षुद्र नर । विशप-ये शिवरी के गुरु और मातगी देवी के उपासक थे। छोकडा । (तिरस्कार सुचक )। ये मौन रहा करते थे, इसीलिये जिम पर्वत पर ये रहते थे, माणवक-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ सोलह वर्ष की अवस्थावाला युवक । उनका नाम ऋज्यमूक पढ़ गया था। २ वीस या मोलह लडी का हार । ३ विद्यार्थी । बटु। ४ ४ अश्वत्थ । ५ मवर्तक मेघ का एक नाम । ६ पर्वतवामी निदित या नीच भादमी। छोटा आदमी ( उपेक्षासूचक )। किरात । ७ एक नाग का नाम । ५ मूर्स व्यक्ति । ६ एक छद । माणवफ्रीडा । मातगज-सज्ञा पुं० [ म० मातगाज ] हाथी । हस्ती किो०] । माणवक्रीडा-राशा पु० [ स० माइवक्राडा ] एक वर्णवृत्त जिसके मातगदिवाकर-संज्ञा पु० [म० मातगदिवाकर एक रवि का नाम । प्रत्येक पद मे पाठ वर्ण ( एक झगण, एक तगरण और दो लघु ) मावगनक्र-सज्ञा पुं० [ १० माजनक ] एक प्रकार का बहुत बडा होते है। कुभीर ( जलजतु )। माणवविद्या-सशा री० [ स० ] कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार जादू मातगमकर- सज्ञा पुं॰ [ स० मातगमकर ] विज्ञानकाय पुनीर । टोना । जय मत्र की विद्या । मातगनक।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/११८
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