40 FO मटि २०७६ गाय' माट-मग पुं० [ "श० ] एक प्रकार की वनस्पति जिगका व्यवहार माठा)' [हिं० ] 'महा' या 'मटा'। तरकारी के रूप मे होता है । माठा-पु० [टिगत ] | मंत्रम । माटा-सज्ञा पुं० [हिं० मटा ] लाT न्यूटा जिगो भुग पुर पत्ता माटो'-Anj [ "० ] प्राार गो पाम तो वगान, पागाम के काम में ग्राम के पेठो पर रहते है। मोर उनर प्रामविकास भाजल यर राम माटि-मशा पुं० [ ] कवच । नुवारण (पो०] । बाल शिम्न पाटि मानी जानी उ०-गर प्रमृतको माटी ५-नशा ग्री० [सं० मृत्तिका, दि० मिट्टी ] ' मिट्टी'। श्रागरप्रति ईमपर री, गनिमार गागादि माटी २ साल भर का जोताई या उमाी महनत । जैन,—यह पन गग वाग प्रादा लाज !-गर (TN)। चार माटी का चला है । ३ मृत शरीर । गर । लाण । उ०- माठी '[पया। (क) कहता सुनता देयता, लेता दता प्रान । सरसो मत गगा, माटी - [ 10 ] पूE TITET पारी ! ! माटो वर्ग मगान । बाटू (गन्द०) (7) मरनो भलो विदा TI म.टपा प्रारना गायी या मारा। जहा न अपना काय माटातार्य जावरा महा मरासहाय ।- कवीर (गन्द.)। . शगेर ।। उ० - TT प्रारगि माटी--... [ -1-1200, पृ. । माटा। ' जिउ चना याटि माटी -जापी माटू-यु. [ **10 ] ? 977 JITI ; gis (11775) (शब्द०)। ५. पाच तत्यास अतर्गत पृथ्वी नाममा नन्। माइ'- पु० [2० मा 'सा. मी या पापा। उ.-पानी पया 'पाग अर माटा। गर पी पीठ नोर । गाना माटी |-जायसी (शब्द०)। ६ धूल । रण। 3.-(ग) गः 77* !! 40 | 40 1] गिार फूट भए मव माटो। हनि हरा सा चांटा।- माउना७-24. [ ' मरउ ] नागना । जागगी (गन्द०) । (म) महा माटी मग गो मृगमद साब 50-(ग) ITTTTTमन मा पनि तुनमी (श द०)। (मुस गये .. 'मिट्टा')। मा पुन माया।-गूर (२०) () माया विरह माठ'-- ५० [ मं० ] माग । पय : मा0| पर परिनित मागलाजधागार गाय पालो माठ-सा पु० [हिं० मीठा ] एक प्रागर को मिठाई। ३०-भर विन्द रि-गरिपि (२०) । (7) ना नि पुकार जो मिठाई यही न जाई। मुग मेनत गत जाय विता। अब गमारा मारि-14 (120)। (प) तुम मत नड छाल और मरकोगे। माठ पिरा और बुंगोगे।- पार पुर्नार मा। ति यस मारने की- जायमी ( श द०)। का (२०)। () मा मा गायो नाभि मुह मे ।- विशेप-मंद की एक मोटी और बडो पुगे पकागर गार देर (शदा)। पाग म उमे पाग लने है । इसी गो माठ गहा। यही मिठाई जब छोटे आकार में बनाई जाती है, तरको गठग' मा माडना-निग[म० गराउन] २ मन पनि पर। 'टिकिया' कहते है । मठी नगकीन भी बनाई जाती है। ? 4170117771 I FITI 30-11 IIT GAZT I7T माना THE यि वाय।-गा (न)। ३ प्रार माठ-सग पुं० [हिं० मटकी (म० मात्त) गिट्टी गा पान जिगमे पारा । पूना । 30-TITT परराज भने तुम घाटा। दव कोई तरल पदार्थ भरा जाय । मटकी । 30 (क) मानो मजीठ मनाइपन पर मादी-शर (२०)। की माठ ढगे इस योर ते नांदनी वारा प्रावत । - गभु पनि (शब्द॰) । (स) धरत जहा हरी जहां पग गुप्यारी तहां, गजुल माडना-क्रि० ० [ "० मान ] ? गर्दन करना। पर रा हाथ म मसला।मलना । 30 ताउ याजरनाउ यदन माता मजीठ ही की माठ मी धरत जात ।--पनाकर (शन्द०)। (ग) स्वामिदसा लसिलरसन ममा कपि पधित ग्रांच माठ मानो पहिर्गर काल |पुर (श:३०) । २ पूनना । फिरना । घिय के । —तुलसी (शन्द०)। (घ) टूट कर गिर पर गिरारे । उ०-उटा यस्तु कि.र ता । माया गव घर माठ मंजीठ जानु रण ढारे ।-जायमी (गन्द०)। मारें।-विधाम (ल.)। विशेप-कविता मे यह शब्द प्राय सीनिंग ही मिलता है। माडनिए-भि० म० [१० गाना ] माउन या भाय या सिति । माठा-वि० [ मं० मष्ट, प्रा० मट्ठ ] मौन । दे० 'मष्ट' । उ०—(क) उ०-हाको मात मट रही, चहुं दिम रोती बाट ।-कवीर रह रह, सुदरि, माठ कारि, हलफन लग्गी काइ ।-ढोला०, श०, भा०२, पृ० १२६ । दू० ३२१ । (स) काइ लातउ माठि कारे परदेशी प्रिय माडल'-गग पुं० [५० मोडल ] १ यादरा । प्रतिस्प । प्रतिमान । आरिण-ढाला०, दू० ३४ । २ भाकार । धाति । नक्शा । ढाँचा । सागा । ३ भनुकरणीय मुहा० माठ करना= दे० 'मष्ट' शब्द का मुशवरा । व्यक्ति या वस्तु । माठर-सशा पुं० [ म० ] १ सूर्य के एक पारिपार्श्वक जो यम माने माड़व'-सा • [ स० मण्डप ] ३० 'मा' वा 'मउप' । जाते हैं । २ व्यासदेव का नाम। ३ ब्राह्मण। ४ कलाल। माइव'-नशा पुं० [सं० मादय ] एक वणसकर जाति जो ५ एक गोत्र का नाम (को०)। पुराणनुमार लेट पिता और तीवर माता के गर्भ से उत्पन्न है ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/११७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।