पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/११४

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३८७३ माक्षिक माइ, माई (ख) मेरे शब्द. उ.-जौ लौ हौ जीवन मर जीगे सदा नाम तुव जपिहीं । माई -सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का वृक्ष जिसका फल माजू से दधि प्रोदन दोना करि देही अरु माइंन मे थपिही।- मिलता जुलता होता है और जिसका व्यवहार प्राय हकीम लोग सूर (शब्द०)। ओषधि के रूप मे करते हैं । माइ, माई-सञ्ज्ञा सी० [ अनु० ] पुत्री । लडकी । कन्या। माई लार्ड-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] लाटो तथा हाइकोर्ट के जजो को माइँ, माइ-सज्ञा स्त्री० [हिं० मामा ] मामा की स्त्री। मामी । सवाधन करने का शब्द । जसे,-माई लाड, श्रापका इस वात का वडा अभिमान है कि अग्रेजो मे आपकी भात भारतवर्ष के माइ@1-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० मातृ ] दे० 'माई'। उ०—(क) तव विपय मे शासननी।त समझनेवाला और शासन करनेवाला पूछियो रघुराड । सुख है पिता तन माइ।- केशव (शब्द॰) । को धनुप वह सीता मेरो माइ।—केशव (शब्द०)। नही है ।-बालमुकुद (शब्द॰) । २ सखी । उ०-भल भेल माइ हे कुदेिवस मेला । चाँद कुमुद माउट पुलिस-सज्ञा स्त्री॰ [अ० माउटेड पुलिस ] घुडसवार पुलिस । दुहु दरसन भेल । -विद्यापति, पृ० २८२ । माउल्लहम-सञ्चा पु० [अ० ] हिकमत मे मास का बना हुआ एक माइक- सज्ञा पु० [अ० ] ध्वनिविस्तारक यत्र । अंगरेजी के माइक्रो प्रकार का अरक जो बहुत अथिक पु.ष्टकारक माना जाता है फोन शब्द का वोलचाल मे सक्षिप्त रूप । और जिसका व्यवहार प्राय. जाड के दिनो म शरार का वल बढाने के लिये होता है। माइका-सञ्ज्ञा पु० [म० मातृ+गृह ] स्त्री के लिये उसके माता पिता का घर । नहर । उ०—(क) और ता माहि सबै सुख माकद-सज्ञा पु० [ माकन्द | १ आम का वृक्ष । २ ८० 'मानक्द' । री दुख री यहै माइके जान न देत ह । पनाकर ( शब्द०)। माकदा-सज्ञा स्रो॰ [ स० माकन्दा] १ आँवला। २ पाला चदन । वैठी हुती तिय माइके मैं समुरारारे को काहू सदस सुनायो।- ३ महाभारत काल के एक गाव का नाम । मतिराम ( ) विशेष-युधिाष्ठर ने दुर्योवन से जो पाच गाव माँग थे, उनमें से एक यह भी था। माइका-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] अवरक । अभ्रक । माकर-वि० [स० माइन-सञ्ज्ञा सी० । ०] १ खान । २ वारुद की सुरग। ] [वि॰ स्त्री० माकरी] मकर से सबवित। २ मकर का। माइना -सज्ञा पु० [अ० मानी ] अर्थ । अभिप्राय । उ०—दाय हरफ यौ०-माकराकर = समुद्र । मकराकर । माफरव्यूह = सेना की म माइना सवही वेद पुरान । —दरिया० वाना पृ. ४३ । मकर के रूप मे व्यूहवद्ध स्यिति । मकरासन = ० 'मकरासन' । माइनारिटो-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] १. अल्प संख्या। प्राव से कम सख्या । २ वह पाटा या दल जिसके वाट कम हो। माकरा--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] मरुया । माकरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] माघ शुक्ला सप्तमी जो एक पुण्यतिथि माइल-वि० [अ० ] अाकर्पित । आसक्त । प्रवृत। उ०—मुरली मानी जाती है। वाले ने माइल काता पावा ।-घनानद माकल सज्ञा खा० [ दश० ] इद्रायन नाम को लता। पृ०४३२। माकाल-सज्ञा पु० [सं०] १ चद्रमा। २ इद्र क मारयी माताल का माई -नज्ञा स्त्री॰ [ म० मातृ ] १ माता । जननो । मा। एक नाम। यौ०-माई का लाल = (१) उदार चित्तवाला व्याक्त। उ०- माकुली-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० ] सुश्रु त के अनुसार एक प्रकार का सांप । क्या फर काइ देवनदन जसा माई का लाल न जनमगा।- अयोध्या (शब्द॰) । (२) वीर । शूर । वली। शाक्तवान् । माकूल'-वि० [अ० माकू ल ] १. उचित । वाजिब । ठीक । २ लायक । याग्य । उ०-मुहारर भी आपका बहुत हा माकूल उ०-(क) क्या एमा काइ माइ का लाल नहीं है जो मुझका मिल गए ह।-प्रमघन०, भा० २, पृ०६४ । ३ ययष्ट । पूरा। इनके हाथो स वचाव । -प्रयाध्या (शब्द०)। (ख) एक बार ४ अच्छा। वढिया। ५ ।जसने वादविवाद म प्रतिपक्षा की एक पजावी हाजा को बदुग्रा ने घर लिया। उसने अपना वात मान ली हो। जा निरुत्तर हो गया हो। ६ मभ्य । कमर से रुपय निकालकर सामने रख दिए और ललकार कर शिष्ट (को०) । ७ शुद्ध (को०)। कहा कि कोई माई का लाल हो, तो इसे मेरे सामने से ल जाय ।-सरस्वती ( शब्द०)। माकूल-सज्ञा पु० तकशास्त्र । न्याय दर्शन [को०)। स्त्री० [अ० मा कूलियत मा कूलायत । २. बूढी या वडी स्त्री के लिये प्रादरसूचक शब्द । उ०—(क) सत्य माकूलियत-सज्ञा २. औचित्य । माकूल हीन का भाव । २ शिष्टता। सजनता । कही,मोहिं जान दे माई । -तुलसा (शब्द०) । (ख) कहाह झूठ ३ उत्तमता । भच्छाइ (को०] । फुरि वात वनाई। त प्रिय तुमहि करुइ म माई।-तुलसी (शब्द॰) । (ग) साय स्वयवरु माई दाऊ भाई आए देखन ।– माकूली-वि० [अ० माकूली ] नैयायिक । न्यायशास्त्र का ज्ञाता [फो०] । तुलसो ( शब्द०)। ३ महामाया । भगवती। देवो। १ माकूस-वि० [अ०] १. उलटा । प्रौया । २ विपरीत (को॰) । शीतला । चेचक । माता । उ०-हेहुअा के चेहरे पर माई की माक्षिक-सधा पुं० [सं०] १. शाद। मधु । २. सातामन्ती । गोटी के दाग थे।-नई०, पृ०३४ । ३, रूपामक्खी। दारू दरसन मे 1