पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१११

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मांजर' ३८७० मॉड़ना केवट । पन । उ०-मुर भुर मांजर वन भरिरह को लागी प्राग । -जायमी (नन्द०)। मांजर - गुरु म० मार्जार, 'मारि' । उ० दाद मास ग्रहाने रे नन, ते नर सिंह निवाल, वग मांजर मुनहा नही, तापतवा-दाद्०, पृ० २५२ । मांजा170) पहनी वर्मा का फेन जो मछलियो के लिये मादक होता है। उ०—(क) नयन नजल तन थर थर कांपी। माजहि साद मीन जनु मॉपी ।-तुलनी (गन्द०)। (ख) लपत विषम मोह मन मापा। मांजा मनहुँ मीन कहं व्यापा। -नुलगी (गन्द०)। माँ जाया-ज्ञा पुं० [हिं० मो+जाया( = जात) ] [ मी० माजाई ] मा मे उपन्न मगा भाई। माजिणउ-जा पु० [ म० मजन, प्रा० मज्जण, मजण ] २० 'मजन'। उ०मानिए ऊगट मांजिराउ खिजमनि करड अनन ।-टाला०, पृ० ५३५ । माझ पु-अन्य [म० मध्य ] मे । भीतर । बीच । अदर । उ०- (7) सहि चनौ प्राई अब माँझ। मुरनी मवै लेह पागे करि -नि हो. पुनि बनहीं मांझ-मूर (Tन्द०)। (स) तुम्ह' पटक माझ नुनु अंगद । मो मन भिरहि कवन यावा वद । --तुननी (गन्द०)। (ग) पापुम मांझ महोदर साँचे। क्या तुम बी' विगविन गरे ।-केशव (शब्द०) । (घ) रेज करि गौतन मनेज मो निकेत मांझ, पर पति हेत सेज सांझ ते बारती ।-प्रताप (जन्द०)। माझ-- पु० । अतर । फरक । मुहा०-मॉम पड़ना या होना = बीच पटना । अतर पडना । उ.-तागका माझ भयो तब ही पिता मेवा मावघान मन नीता कर पानिए ।-प्रियादाम ( अब्द०)। २ नदी में बीच म पड़ी हुई रतीली भूमि । मॉभल-प्रव्य० [ [हि मामल (प्रत्य॰)] 'माझ' । उ.-परि देग्यै आण मैं, तृण मुख मांझन त्यहि । - बाकी ३०, भा० १, पृ०। मझा-या पु० [ मध्य ] १ नदी के बीच की जमीन | नदी मे का टाप् । २ एक प्रकार का प्राभूषण जो पगडी पर पहना जाता है। उ०-पैर मे लार पाग पर मांझा प्रादि यावत् प्रतिष्ठा बगता है ।-राधाप्णदान ( गब्द०)। ३ एक प्रकार का दांग जो गोटई के वीच मे रहता है और जो पाई को जमीन पर गिग्न में रोकता ( जुनाहे )। ४ वृक्ष का तना। ५ वे पोरे पडे जो रही वही वर और कन्या को विवाह से दो तीन दिन पहले हलदी चटने पर पहनाए जाते हैं। निा'- पुं० [हिं० माजना ] पतग या गुड्डी उड़ाने की डोर या का मन और जीने के चूरे ग्रादि ने चढाया जानेवाला लण जिनमे डो या नस मे मजबनी पाती है। उ०-मिहीन मत मन उन नातं मांझा प्रेम भगति का ।-बीर १०, TTC, C1 त्रि० प्र०-दाना ।-देना । मौमार-सक्षा पु० दे० 'मझा। माझिन, मर्माभिमा- वि० [ म० मध्यम, प्रा० ममिझम, राज. मांझमि ] दे० 'मध्यम' । उ०—(क) का हमि करि म्हां सीख दे खडिस्याँ माझिन रात ।-ढोला०, दू० २७८ । (ख) किणही अवगुण कूझडी कुरली माँझिम रत्त । - ढोला०, दू० ५७ । मा भिला क्रि० वि० [ म० मध्यम ] बीच का। मध्य का। वीचवाला । उ०—बोला मांझिल तलय तुरग तेंतीम जू । लावहु मम हित माँगि ग्राम गुरु वीम जू ।-विश्राम (शब्द०)। माझी' सज्ञा पुं॰ [म० मध्य, हिं० माझ या देश०] १ नाव वेनेवाला । मल्लाह। २ दो व्यक्तियो के बीच मे पडकर मामला ते करा देनेवाला। उ०-मंवारि रकन नैनन भरि चुवा । रोइ हंकारेमि मांझी सुवा । —जायसी (शब्द०)। ३ जोरावर । बलवान् । (हिं० )। माँझी-वि० मुख्य । अग्रणी। उ.-मुदर घर बाहर अजवमाह, एतला प्राद माझी अथाह ।-रा० ८०, पृ० १८४ । माटgi-मज्ञा पु० [ म० मट्टक ] मिट्टी का वडा वरतन जिसमें अनाज या पानी प्रादि रखते हैं । मटका। कुडा । उ०—(क) पुनि कमडलु वरथो तहाँ सो बढि गयो कुम घरि बहुरि पुनि माँट राख्यो ।-मूर ( शब्द०)। (ख) मानो नोल मांट महं बोरे ल यमुना जु पखारे ।-र (शब्द॰) । २ घर का ऊपरी भाग । अटारी। मोटी-मचा सी० [हिं० मिट्टी ] दे॰ 'माटी'। उ०---जो नियान तन होइहि छारा। माटी पौखि मर को भारा ।—जायनी ग्र० (गुप्त), पृ० २०८ । माठ-सझा पुं० [ म० मट्टक ] १ मटका । मिट्टी का बडा वरतन । • नील घोलने का मिट्टी का बना वडा वरतन । माँठो-मा पी० [ दश०] १ एक प्रकार धातु की ढली हुई चूडियों जो पूरव मे नीच जाति की स्त्रियां हाथ मे कलाई से लेकर कोहनी तक पहनती है। इसे 'मठिया' भी कहते हैं। मट्टी या मठरी नामक पकवान जो मैदे का वना होता है। माँड़-सज्ञा पुं॰ [ म० मण्ड ] पकाए हुए चावलो मे से निकला हुआ लनदार पानी । भात का पसेव । पीच | पमाव । उ०-चावल रंग मांड मटे भनस ।-घट०, पृ० २७ । माड़-पड़ा स्पी० [हिं० माँढना | १. माडने की क्रिया या भाव । २ संवारी या बनावटी वात। झूठी वात । उ०—पाड्यो कहु कइ परतिप ( इ ) भाँड । झूठ कथइ छइ बोलइ छइ मांड | -पी० रामो०, पृ० ४१ । महि-मसा पुं० (दश०] एक प्रकार का राग । मांडनाल-क्रि० म० [म. मण्डन ] मर्दन करना। मलना । ममतना। मीजना । मानना । गूंधना । जैसे, ग्राटा मांडना । उ० - तव पीमै जव पहिते घोए । कापरछान मांड भल होए ।-जायमी (शब्द०)। २ लगाना। पोतना । लेपन करना । जैसे, मुंह में केसर या गुलाव मांडना। उ०-वेद को फूल दे०