पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/११०

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दश० मांगटीका ३८६६ माँजर मुहा-मांग कोख से सुखी रहना या जुहाना = स्त्रियो का माँगी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मार्ग ? हिं० माँग J धुनियो की धुनकी मे की मौभाग्यवती और सतानवती रहना। उ०-पानंद अवनि वह लकडी जो उसकी उस डॉडी के ऊपर लगी रहती है जिस- राजरानी सब माँगह कोखु जुडानी ।-तुलसी (शब्द०)। पर ताँत चढाते हैं। मांग पट्टी करना - केशविन्यास करना । बालो मे कधी करना। माँच - सज्ञा पु० [ ] १ पाल मे हवा लगने के लिये चलते हुए मांग पारना या फरना: केशो को दो ग्रोर करके बीच मे जहाज का रुख कुछ तिरछा करना । । गोस (लश०) । २ पाल माँग निकालना । मांग बांधना = कधी चोटी करना। (क्व०)। के नीचेवाले कोने मे बंधा हुआ वह रस्सा जिसकी सहायता से २ किमी पदार्थ का ऊपरी भाग । मिरा । ( क्व०)। ३ सिल पाल को आगे बढाकर या पीछे हटाकर हवा के रुख पर करते का वह ऊपरी भाग जो कुटा हुआ नहीं होता और जिसपर हैं । ( लश०) पीसी हुई चीज रखी जाती है। ४ नाव का गावदुमा सिरा । माँचना-क्रि० अ० [हिं० मचना] १ प्रारभ होना। जारी ५ २० मॉगी'। होना । शुरू होना । उ०—देव गिरा सुनि सुदर साँची। प्रीति मांगटीका-सज्ञा पुं० [हिं० मांग+ टीका ] स्त्रियो का एक गहना जो अलौकिक दुई दिसि मांची । —तुलसी (शब्द०)। २ प्रसिद्ध मॉग पर पहना जाता है और जिसके वीच मे एक प्रकार का होना । उ०—श्री हरिदास के स्वामी स्याम कुज विहारी की टिकडा होता है जो माये पर लटका होने के कारण टीके के अटल अटल प्रीति माचो ।-काष्ठजिह्वा (शब्द॰) । समान जान पटना है। मॉचना-क्रि० स० [हिं०] मानना । उ०—कर प्रेम की टोक रोक एको नहिं माचत ।-नद० ग्र०, पृ० ३८७ । माँगरण-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'माँगन' । माँगरणगार-वि० [स० मार्गण, प्रा० मग्गण, हिं० माँगना+फा० माँचा- सज्ञा पु० [ स० मञ्च, हिं० मझा ] [ सी० अल्पा० मांची] गार (प्रत्य॰)] मांगनेवाला । याचक । उ०-मांगणगारा १ पलग। खाट । मझा । २ खाट को तरह की वुनी हुई छोटी पीढी जिसपर लोग बैठते हैं । ३ मचान | रीझवइ, ल्यावइ माल्ट कुमार |-ढोला०, दू० १०२ । मांगणहार-मशा पु० [हिं० मांगण + हिं० हार (प्रत्य॰)] माँची-सज्ञा स्त्री० [हिं० माँचा ] वलगाटियो श्रादि मे बैठने की जगह के आगे लगो हुई वह जालीदार झोली जिसमें माल असवाव मांगनेवाला । चारण । ढाढी। याचक | उ०-मेल्हि सखी तेढाविया मारू मांगणहार ।--ढोला०, दू०१०६ । रखते हैं। माँछ।'-सज्ञा पुं० [ स० मस्य, प्रा० मच्छ ] मछली। उ०-पाए माँगनg -संज्ञा पुं० [हिं० मांगना ] १ मांगने को क्रिया या भाव । सुगुन सुगुनगइ ताका । दहिउ मॉछ रूपइ कर टाका । —जायसी २ याचक । भिक्षुक । भिखमगा । मगन । उ०—(क) नृप करि (शब्द०)। विनय महाजन फेरे । मादर सकल मांगने टेरे ।-तुलसी (शब्द)। (ख) रीति महाराज को निवाजिए जो मांगनो सो दोप दुख माँछ'-सज्ञा पुं० [ दश० ] दे॰ 'माँच' । दारिद दरिद्र के के छोड़िए ।- तुलमी (शब्द॰) । (ग) रुच मांग- मॉछना-क्रि० प्र० [स० मध्य ?] घूमना । धंसना । पैठना । (लश०) । नेहि मागिो, तुलसी दानिहिं दानु । -तुलसी ग्र०, पृ० १०६ । माँछर-संज्ञा स्त्री॰ [ स० मत्स्य ] मछली । माँगनहार-सज्ञा पुं० [हिं० मांगना + हार (प्रत्य॰)] मांगने- माँछलो-सज्ञा स्त्री० | स० मत्स्य ] मछली। वाला । याचक । उ०-गुरु विन दाता कोइ नही जग मांगन माँछी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० मक्षिका ] दे० 'मक्खी' । हारा ।-कवीर श०, भा० १, पृ० ७२ । मॉज-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ दश०] १ दलदली भूमि । २ तराई । कछार । ३ माँगना-क्रि० स० [म० मार्गण (= याचना)] १ किमी से यह वह भूमि जो किसी नदी के पीछे हट जाने के कारण निकल आती है । गगवरार । कहना कि तुम अमुक पदार्थ मुझे दो। कुछ पाने के लिये प्रार्थना करना या कहना । याचना करना । जैसे,—(क) मैंने उनसे माँजना'--क्रि०स० [म मञ्जन या मार्जन) १ जोर से मलकर साफ १० रुपए मांगे थे। (ख ) तुम अपनी पुस्तक उनसे मांग लो। किसी वस्तु मे रगडकर मैल छुडाना । जैसे, वरतन मांजना । उ०मांजत मांजत हार गया है, धागा नही निक- उ०-(क) सो प्रभु सो सरिता तरिवे कह मांगत नाउ करारे ह आढे । —तुलमी (शब्द०)। (ख) मांगउं दूमर वर कर लता है। -कवीर श०, भा० पृ०८१ । २ थपुवे के तवे पर जोरी । —तुलसी (शब्द०)।२ किसी से कोई आकाक्षा पूरी पानी देकर उसे ठीक करने के लिये उसके किनारे झुकाना करने के लिये कहना । जैसे,—हम तो ईश्वर से दिन रात यही (कुम्हार)। ३ सरेस को पानी मे पकाकर उमसे तानो के सूत माँगते हैं कि आप निरोग हो। उ०—-माँगत तुलसिदाम रंगना । ४ सरेस और शीशे की बुकनी आदि लगाकर पतग की कर जोरे । वसहिं रामसिय मानम मोरे । —तुलसी (शब्द॰) । नख के होर को दृढ करना । मांझा देना। मुहा०—मॉग जांचकर = इधर उबर से मांगकर । लोगो से माँजना--क्रि० प्र० १ अग्याम करना। मश्क करना । जैसे, हाथ लेकर । मांग कर = दे० 'मांग जांच कर'। मांग बुलाना = मांजना । २ किसी गीत या छद को वार वार श्रावृत्ति करके किसी के द्वारा किसी को अपने पास बुलवाना । माँगफूल-सज्ञा पु० [हिं० माँग+ फूल ] दे॰ 'मांगटीका'। माँजर'- सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पजर या पाँजर ] हड्डियो की ठठरी । करना। पक्का करना।