अगहन या मंगसर 20 महोनार्थ ३८.६० मर श्राश्विन कुग्रार, आमोज या आसो महीयस्- [ #० ] [ वि० सी० महीयसी ] वहुत वढा । महान् । कातिक कातिक २ बलवान (को०)। मार्गशीर्ष महीयान-वि० [ महीयम् (= महीयान् )] १ अपेक्षाकृत वडा । पोप पूस वडा। विशाल । २ शक्तिशाली। लगान । उ.-लोहित माघ माघ या माह लोचन रावण मद मोचन महीयान ।-अपरा, पृ० ३० । फाल्गुन फागुन महोर-सज्ञा स्त्री० [हिं० मही ] १ वह तलछट जो मक्खन तपाने अरबी महीनो के नाम इस प्रकार है-मुहर्रम, सफर, रवी उल् मे नीचे बैठ जाती है। उ०-ब्रह्म में जगत यह ऐसी विधि पव्वल, जमादि उल अव्वल, रवी उस् सानी, रज्जब, शावान, देखियत जमी विधि देखियत फूतरी महीर मैं ।—मुदर० ग्र०, रमजान, गौवाल, जीफाद, जिलहिज्ज । अंगरेजी महीनो भा०२, पृ० ६५० । २ मट्टे मे पकाया हुया चावन । के नाम इस प्रकार हैं-जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, मझे की वनी सीर। जून, जुलाई, अगस्त, सितवर, अक्टूबर, नवबर, दिसबर । महीरण-मा पु० [ स० ] पुराणानुसार धर्म के एक पुत्र का नाम । २ वह वेतन जो महीना भर काम करने के बदले में काम करनेवाले यह विश्वेदवा के अतर्भूत है। को मिले । मासिक वेतन । दरमाहा । ३ स्पियो का रजोधर्म या मासिक धर्म। महीगवण-मज्ञा पुं० [सं० ] अद्भुत रामायण के गनुमार गवण फे एक पुत्र का नाम । विशेप दे० 'महिगवण' । मुहा०-महीने से होना = स्त्रियो का रजस्वला होना। रजोधर्म महीरिपर्य-सा पुं० [ म० महर्षि ] महपि । महान ऋपि । स हाना। उ०-तिन पुच्छिय बत्त महीरिपय । -पृ० ग०,५६।५८ । महीनाथ-सज्ञा पु० [सं०] नरेश । राजा [को०] । महीरुह-मरा पुं० [ म.] वृक्ष। पेड। उ०.-विशीर्ण डालियां महीप-सज्ञा पुं॰ [ म० ] राजा। उ०-महा महीप भए पमु पाई। महीम्हो की टूटने लगे। शमा की झा नरें व टकरी से फूटने -मानस, ११२८३ । लगी।-सामधेनी, पृ० ७६ । महीपति-सज्ञा पु० [२०] राजा। उ०-सुनहु महीपति मुकुट मनि महीलता-मज्ञा स्त्री॰ [सं०] केनुया। तुम्ह सम धन्य न कोउ । -मानस, १।२६१ । महीला-मज्ञा स्त्री० [सं०] औरत । नारी । महिला [को०] । महीपाल-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] राजा । महोश-सचा पु० [ ] राजा। महीपुत्र-सज्ञा पुं० [म. ] मगलग्रह । महीस-सज्ञा पुं॰ [ स० महोश ] दे० 'महीश' । उ०-जी जगदीस महीपुत्री-सञ्ज्ञा स्त्री। स० ] सीता [को०] । तो अति भलो, जी महीस ती भाग । तुलसी चाहत जनम भरि महीप्रकप-सञ्ज्ञा पु० [ स० महीप्रकम्प ] भूडोल । भूकप (को०] । रामचरन अनुराग । --तुलनी ग्र०, पृ० ६३ । महीप्ररोह -सज्ञा पु० [ स० ] वृक्ष । महीसुत-सा पु० [ म० ] १ मगल ग्रह । २ नरकासुर (को॰) । महीप्राचीर-सज्ञा पुं० [ म० ] समुद्र । महीसुता-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] मीना [को०] । महीप्रावर-सञ्ज्ञा पुं० स० ] समुद्र महीसुर- -सञ्ज्ञा पुं० [ ] ग्राह्यण । उ०—तदपि महीसुर साप बस महीभर्ता-मचा पु० [ स० महीभर्तृ ] [ स्त्री० महभी ] महीप । भार सकल अघ रुप ।-मानस, २१७६ । राजा । महीपति। महीसू नु-सज्ञा पु० [सं०] १ मगलग्रह । २ २० 'महीमुत' । म.] राजा। महुँ -अन्य० [हिं० ] दे० 'मह' । उ०-भट महु प्रथम लीक जग महीभुज-सच्चा पुं० [ स० ] राजा। जासू-मानस, १६१८०। महीभृत्-सज्ञा पुं॰ [ १ राजा । २ पर्वत । महु-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० मधु, प्रा० महु ] १ दे० 'मधु' । २ मधु का महीमडल-मशा पु० [सं० महीमण्डल ] पृथ्वी । भूमडल | छत्ता (लाक्ष०)। उ०—म ताज चलत मुहाल अन्य तरु साप लगन कहुं ।-पृ० रा०, ७।२३ । महीम-मञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार का गन्ना । विशेप-यह पीलापन लिए हरे रग का होता है। इसे पूने का महुअर-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० मधूक, प्रा० महूथ, हिं० महुअा ] १ वह पौढा भी कहते हैं। भेड जिमका ऊन कालापन लिए लाल रंग का होता है। २. वह रोटी जो महुआ मिलाकर पकाई गई हो। महीमय-वि० [ ] मृत्तिकानिर्मित । मृत्तिकामय [को०] । महुअर'-सडा पु० [ स० मधुकर, प्र० महुअर ] १ एक प्रकार का महीमान-सञ्ज्ञा पु० [स० महीयान् ] विशाल । दे० 'महीयान्' । वाजा जिसे तुमडी या तुवो भी कहते हैं । उ०-प्रगटि पुरातन खडना, महीमान मुख मंडना |-दादू०, विशष -यह कडवी पतलो तुवी का होता है जिसमे दोनो ओर दो पृ० ५४५ । नालयां लगी होती है। एक बार को नला को मुंह मे लगाकर महीमृग-सज्ञा पुं० [ ] एक प्रकार का जंतु। और दूसरी और की नली को छद पर उगलियां रखकर इसे स० SO महीभुक्-सज्ञा ० [ म० HO
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 8.djvu/१०१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।