पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/९५

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बधुजोवी ५३५४ बबार बंधुजीवी-संज्ञा पु० [ स० बन्धुजीविन् ] एक प्रकार का माणिक धर्म। -सुदर० प्र०, भा० १. पृ० १६८ । ६. वीर्य को [को०। जल्दी स्खलित न होने देने की युक्ति । वाजीकरण । बंधुता-संज्ञा स्त्री० [ स० बन्धुता] १. बंधु होने का भाव । २. बंध्य-संज्ञा पुं० [ स० बन्ध्य ] ऐमा पुल जिसके नीचे से पानी न भाईचारा । ३. मित्रता । दोस्ती। बहता हो। पानी रोकने के लिये बनाया हुआ घुस्स | बांध । वधुत्व - सञ्चा पु० [ स० बन्धुत्व ] १. वधु होने का भाव । बंधुता । वध्यर-वि० १. बांधने योग्य । २. बोड़ने योग्य । ३. वध में पाया २. भाईचारा । ३. मित्रता । दोस्तो। हुआ । ४. व्यर्थ । वेकार । ५. न फलनेवाला (वृक्षादि) । वधुदत्त-सचा पु० [ स० बन्धुदत्त ] वह धन जो कन्या को विवाह के ६. वाझ [को०] । समय माता पिता या भाइयो से मिलता है। स्त्रीधन । 10-वध्यफल = फलयुक्त न होनेवाला । न फलनेवाला । वधुदा-सज्ञा स्त्री॰ [ स० बन्धुदा ] १. दुराचारिणी स्त्री। बदचलन बंध्या-सशा स्त्री॰ [ स० बन्ध्या ] १. वह स्त्री जो संतान न पैदा कर औरत । २. वेश्या । रडी। सके। भि। वधुमान्–वि० [स० बन्धुमत् ] भाई बंधुनोंवाला । जो वंधुहीन यो०-वध्यातनय = बध्यापुत्र । वध्यादुहिता । बंध्यासुत । न हो [को०] । बंध्यासुता । वधुर-सज्ञा पु० [ स० बन्धुर ] १. मुकुट । २. दुपहरिया का फूल । २. गाय जो बांझ हो (को०)। ३. एफ सुगंधि द्रव्य (को०)। ४. ३. बहरा मनुष्य । ४. हंस । ५. विडग । ६. काकड़ासिंगी। योनि का एक रोग (को०)। ७. बक। बगला नामक पक्षी। ८. पक्षी। ६. भग (को०)। वंध्याकर्कटी-संशा सी० स० बन्ध्याकर्कटी ] कड़वी या तिक्त १०. खली (को०)। ककड़ी [को॰] । बधुर-वि० १. रम्य । मनोहर । सु दर । उ०—विधु बंधुर मुख बध्यापन-सशा पु० [सं० बन्ध्या+हिं० पन | दे० 'झिपन' । भा बड़ी बारिज नैन प्रभाति । भौह तिरीछी छबि गड़ी बंध्यापुत्र-सशा पु० [स० बन्ध्यापुत्र ] कोई ऐसा भाव या पदार्थ रहति हिये दिन राति ।-स० सप्तक, पृ० २३३ । २. नम्र । जिसका अस्तित्व ही असभव हो। ठीक वैसा ही असंभव भाव ३. बक्र । टेढ़ा। ४. ऊबड़खावड़। ऊँचा नीचा। उ०—विकट या पदार्थ जैसे वध्या का पुत्र । कमी न होनेवाली चीज । मेरी दूर मंजिल, राह वधुर, निपट पकिल । -अपलक, अनहोनी बात। पृ०४ । ५. हानिकारक (को॰) । बंपुलिस-पज्ञा सी० [ व ? + अं० पुलिस ] मलत्याग के लिये बंधुरा-संशा स्त्री० [ स० बन्धुरा ] पुश्चली । कुलटा (को०] । म्यूनिसिपलटी प्रादि का बनवाया हुआ वह स्थान जहाँ सर्व- बधुरित-वि० ] सं० बन्धुरित ] झुका हुआ । नम्र [को०] । साधारण विना रोक टोक जा सके। ब धुल'-सज्ञा पुं० [स० बन्धुल] १. दुराचारिणी स्त्री से उत्पन्न पुरुष । बंब-संशा स्त्री॰ [अनु०] १. वं व शब्द । व, शिव शिव, हर बदचलन औरत का पुत्र। अवैध संतान । २. वेश्यापुत्र । रंडी हर, इत्यादि शब्दो की ऊँची ध्वनि जो शव लोग भक्ति की का लड़का । ३. वेश्या का परिचारक या सेवक (को०)। उमग में माकर किया करते हैं। २. युद्धारभ में बोरो का बंधुल-वि० १. सुदर । खूबसूरत । २. नम्र । झुका हुआ । उत्साहवर्धक नाद । रणनाद । हल्ला । उ०-कूदत कवध के कदव व सी करत धावत दिखावत लाघो राघो वान वधूक-सज्ञा पु० [ पु० वन्धूक ] १. दे० 'वधुक' । उ०-फूल उठे हैं कमल, अघर से ये वधूक सुहाये ।-साकेत, २७६ । २. दोधक के।-तुलसी (शब्द०)। नामक वृत्त का एक नाम । इसे 'वधु' भी कहते हैं । दे० क्रि० प्र०-बोलना।—देना । उ०—ठिल्यो वुदेला बंब दे बासा 'वधु'। घेस्यो जाप । -लाल (शब्द)। बधूर'-सज्ञा पु० [ स० बन्धूर ] विवर । छिद्र (को०] । ३. नगारा । ददुभी। डका। उ०-(क) कब नारद बंदूक चलाया । व्यासदेव कब बंब बजाया ।-कबीर (शब्द॰) । बधूर-वि० दे० 'वधुर'। (ख) त्यों बहलोलखान रिस कोन्ही । तुरतहि वव कूच को वधूलि-सञ्ज्ञा पु० [ स० वन्धूलि ] बंधुजीव । बधुक [को॰] । दीन्ही । -लाल (शब्द०)। बंधेज-सञ्ज्ञा पु० [हिं० बंधना + एज (प्रत्य॰)] १. नियत समय पर मोर नियत रूप से मिलने या दिया जानेवाला पदा बबा-संशा पु० [अ० मंवा ] १. जलकल । पानी की कल । पप । २. सोता । स्रोत । ३. पानो वहाने का नल । या द्रव्य । २. नियत समय पर या नियत रूप से की क्रिया या भाव । ३. किसी वस्तु को रोकने या बांधने बबार'—सशा पु० [अं० वाम्प ] बम की वर्षा करनेवाले विमान । की क्रिया या युक्ति । ४. रुकावट । प्रतिवष । उ०-सावंतन बमवर्षक यान । उ०-लाखो घर टैको वबारो के हो गए सह छिद्र करि नार कनैरा प्राय । विरसिंघ दे बंधेज करि गढ़ हवाले ।-हस०, पृ० ४१ । गाँजर मह जाय । -प० रासो, पृ० १३९ । ५. नियंत्रण । बबार-३० [सं० बर्वर, प्रा० बव्यर ] बर्बर । क्रूर । उ०-सीस वधन । मर्यादा । उ०-वर्णाश्रम वधेज करि अपवे अपने लग्गि असमान खिज्यो लंगा बबारी।-पृ० रा०, ७।३। कुछ देने