फिरवा फिर्का चावलों को पीसकर भौर दूध में पकाकर तैयार किया ६. एक ही स्थान पर रखकर स्थिति बदलना । सामना एक जाता है। अोर से दूसरी पोर करना । दे० 'फेरना' । उ०—-मुख फिराय विशेष-इसका व्यवहार प्रायः पश्चिम में और विशेषतः मुसल मन अपने रीसा। चलत न तिरिया कर मुख दीसा । मानों में होता है। -जायसी (शब्द०)। फिरवा-संझा पुं० [हिं० फिरना ] १. सोने का एक प्राभूषण जों संयो॰ क्रि०-देना । लेना। गले में पहना जाता है । २. सोने की अंगूठी जो तार को कई ७. किसी ओर जाते हुए को दूसरी ओर चला देना । घुमाना । फेरे लपेटकर बनाई गई हो। दे० 'फरमा'।८. और का और करना। परिवर्तन करना। फिरवाना'-'क० स० [हिं० फेरना का प्रेर० रूप] फेरने का बदल देना । दे० 'फेरना' । ६. बात पर दृढ़ न रहने देना। विचलित करना । दे० 'फेरना' । काम कराना। फिरवाना-क्रि० स० [हिं० फिराना का प्रे० रूप ] फिराने का फिरार-संज्ञा पुं० [अ० फ़िरार] [वि० फिरारी] भागना । भाग जाना । काम कराना। मुहा०---फिरार होना= भागना । चल देना । फिराऊ -वि० [हिं० फिरना ] १. फिरता हुआ। वापस लौटता फिरौरी'-वि० [प्र. फ़िरार + फ़ा० ई (प्रत्य०)] १. भागने- हमा । २. (माल) जो फिरा या फेरा जा सके । जाकड़ । वाला । भगेड़ । भगोड़ा । २. वह अपराधी जो दंड पाने के फिराका-पञ्चा पुं० [ देश०] १. चिता। सोच । खटका । २. भय से भागता फिरता हो। उ०—फिरारी सुराजी को ठोह । खोज। पकड़नेवालों को सरकार बहादुर की ओर से इनाम मिलता मुहा०-फिराक में रहना = खोज में रहना । फिक्र या तलाश है। -मैला०, पृ०३। फिरारी-संक्षा स्त्री॰ [ देश० ] ताश के खेल में उतनी जीत जितनी में रहना। एक हाथ चलने मे होती है। एक चाल की जीत । फिराकर--सञ्ज्ञा पुं० [अ० फिराक ] १. अलगाव । पृथक्ता। २. वियोग । विछोह । ३. धुन । ध्यान । फिरिgf-क्रि० वि० [हिं० ] दे० 'फिर' । उ०-नागमती चितउर यौ०-फिराके यार-प्रिय का विरह । पथ हेरा । पिउ को गए फिरि कीन्ह न फेरा ।-जायसी.. (गुप्त), पृ० ३५२ । फिराकिया-वि० [प्र. फिराक + फ़ा० इयह, (प्रत्य॰) ] वियो- फिरिकी-पंझा स्त्री० [हिं० ] दे० फिरको' । गात्मक | विरह संबंधी। फिरियाद, फिरियादि@ --संज्ञा स्त्री० [अ० फ़रियाद ] १. वेदना- यौ०-फिराकिया नज्म = विरह काव्य । सूचक शब्द । मोह । हाय । २. दुहाई। आवेदन । पुकार । फिराद-संचा बी० [फा० फ़रियाद ] दे० 'फरियाद'। 30- उ-सुख में सुमिरन ना किया दुख में कीनी याद । कहै कवि ठाकुर कीजे फिराद कहा यह लाज हमारी तुही लहिया । कबीर ता दास को कैसे लगे फिरियाद ।-कबीर (शब्द॰) । ठाकुर०, पृ० २६॥ क्रि० प्र०—करना ।-मचामा । —होना ।-लाना।-लगना। फिरादि-सञ्चा स्त्री० [हिं०] दे० 'फरियाद' । फिरियादीgf-वि० [फा० फरियादी ] १. फरियाद करनेवाला। फिराना-क्रि० स० [हिं० फिरना ] १. इधर उधर चलाना। कभी अपना दुखड़ा सुनाने के लिये पुकार करनेवाला । २. श्रावेदन इस ओर कभी उस मोर ले जाना । इधर उधर डुलाना । करनेवाला । नालिश करनेवाला। पैसा चलाना कि कोई एक निश्चित दिशा न रहे। २. टह- फिरिश्ता-संज्ञा पुं० [फा० फ़िरिश्तह् ] दे० 'फरिश्ता'। लाना । सैर कराना । जैसे,—जामो, इसे बाहर फिरा लामो । यौ०-फिरिश्ताखसलत, फिरिश्ताख = भला । दे० 'फरिश्ता ३. चक्कर देना । बार बार फेरे खिलाना। लटू की तरह खू'। फिरिश्तासूरत = देवरूप । एक ही स्थान पर घुमाना अथवा मंडल या परिधि के किनारे घुमाना। नचाना या परिक्रमण फराना । जैसे, लट्ट मुहा०-फिरिश्ते की गुजर न होना, या दाल न गलना = किसी फिराना, मंदिर के चारों पोर फिराना । उ०—(क) फिरे का बस न होना । किसी की पहुंच न होना । फिरिश्ते दिखाई देना, या नजर आना = मौत करीब या नजदीक होना। साग वोहित तहँ माई । जस कुम्हार घरि चाक फिराई।- फिरिश्तों को खबर न होना अत्यंत गूढ़ या गोपनीय होना। जायसी (शब्द०)। (ख) हस्ति पांच जो प्रागे पाए । ते फिरिहरा-संज्ञा पु० [हिं० फिरना ] एक पक्षी का नाम जिसकी, । अंगद धरि सूड फिराए ।—जायसी (शब्द०)। छाती लाल और पीठ काले रंग की होती है। संयो.क्रि.-चालना-देना ।—लेना। फिरिहरी, फिरिहिरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० फिरना+हारा (प्रत्य०)] ४. ऐंठना । मरोड़ना । जैसे,—ताली उधर को फिरायो । उ०- फिरकी नाम का खिलौना जिसे बच्चे नचाते हैं। मद गजराज द्वार पर ठाढ़ो हरि कहो नेकु पचाय । उन नहि मान्यौ संमुख प्रायो'पकरघो पूँछ फिराय । -पुर फिरोही-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] वह धन जो टूकानदार माल खरीदने- (शब्द०)। . लौटाना । पलटाना । उ०---तुम नारायण भक्त वाले के नौकर को देता है । दस्तूरी । नौकराना। 'कहावत । काहे को तुम मोहिं फिरावत । —सूर (शब्द॰) । फिर्का-संशा पुं० [५० फिक्ह ] दे० 'फिरका'
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