फासिज करते हैं। ३२६३ फासफरस फालिज-संज्ञा पुं०.[अ० फालिज] एक रोग जिसमें प्राणी का प्राधा फाल्तू-वि० [हिं० ] दे० 'फालतू' । उ०-खजांची ने पूछा तुम्हारे घंग सुन्न या वेकार हो जाता है। प्रधंग । प्रधरग। धनुष की फाल्तू प्रत्यंचा कहाँ हैं'। श्रीनिवास ग्र०, पक्षाघात । पृ० २२४। विशेष-इसमें शरीर के संवेदन सूत्र या गतिबाहक सूत्र निष्क्रिय फावड़ा-सञ्चा पु० [सं० फाल, प्रा० फाड ] मिट्टी खोदने और टालने हो जाते हैं । संवेदन सूत्रो के निष्क्रिय होने से अग सुन्न हो का चौड़े फल का लोहे का एक प्रौजार जिसमें डडे की तरह जाता है, उसमें संवेदना नही रह जाती और गतिवाहक सूत्रो का लंबा बेंट लगा रहता है । फरसा । कस्सी। के निष्क्रिय होने से अग का हिलना डोलना बंद हो क्रि० प्र०-चलाना। जाता है। मुहा०-फावड़ा चलाना = खेत में काम करना। फावड़ा यौ०-फालिजजदा फालिज या लकवे का बीमार । बजना = खुदाई होना। खुदना। खुदकर गिरना। ध्वस्त मुहा०-फालिज गिरना = अधरंग रोग होना। अग सुन्न पड होना। फावड़ा बजाना = खोदना । खोदकर ढाना या जाना । फालिज मारना = दे० 'फालिज गिरना' । गिराना । जैम,-वह जरा चू करे तो मकान पर फावड़ा वजा दूं। फालूदा-सज्ञा पुं॰ [ फा० फालूदह ] शर्बत के साथ पीने के लिये बनाई हुई एक चीज जिसका व्यवहार प्रायः मुसलमान फावड़ो-मशा स्त्री० [हिं० फावड़ा ] १. छोटा फावड़ा । २. फावड़े के प्रकार की काठ की एक वस्तु जिस में घोडो के नीचे की घास, लीद अादि हटाई जाती है या मैला आदि हटाया विशेप-गेहूँ के सत्त से बने हुए नाश्ते को बारीक काटकर जाता है। शरवत में मिलाकर रखते है और ठढा हो जाने पर पीते हैं । फाश-वि० [फा० फ़ाश ] खुला। प्रकट । ज्ञात । उ० --छिपा न यह गरमी के दिनों मे पिया जाता है। उसका इश्क राज आखिर को सब कुछ फाश हुआ।- फालेज-सज्ञा यु० [फा० फालेज ] खरबूजे और ककड़ी का खेत । भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ५६४ । फालोवर-वि० [अ० फालोवर ] अनुगामी। शिष्य । पीछा करने- क्रि० प्र०—करना ।—होना । वाला । उ०~बहार उसके पीछे ज्यों भुवखड़ फालोवर - मुहा०--परदा फाश करना = छिपी हुई बात खोलना । भेद कुकुर०, पृ०२४। या रहस्य प्रकट करना। फाल्गुन-संज्ञा पुं० [सं०] १. दूर्वा नामक सोमलता। फासफरस-संज्ञा पुं॰ [ यूना० अ० फासफ़रस ) पाश्चात्य रासाय- विशेष-शतपथ ब्राह्मण मे इसे दो प्रकार का लिखा है, एक लोहितपुष्प, दूसरा चारपुष्प । निकों के द्वारा जाना हुघा एक अत्यंत ज्वलनशील मूल द्रव्य २. एक चांद्र मास का नाम जिसमें पूर्णमासी के दिन चंद्रमा का जिसमें धातु का कोई गुण नहीं होता और जो अपने विशुद्ध रूप में कहीं नहीं मिलता-पाक्सीजन, कैलसियम और उदय पूर्वा फाल्गुनी वा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र मे होता है। मैगनेशियम के साथ मिला हुआ पाया जाता है। विशेप-यह महीना माघ के समाप्त हो जाने पर प्रारभ होता है । इसी महीने की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन होता विशेष-इसका प्रसार संसार मे बहुत अधिक है क्योंकि यह है। दे० 'फागुन । सृष्टि के सारे सजीव पदार्थों के अगविधान में पाया जाता ३. अर्जुन का नाम । ३०-नयनन मिलत लई कर गहि के है। वनस्पतियों, प्राणियों के हड्डियो, रक्त, मूत्र, लोम आदि में यह व्याप्त रहता है । बहुत थोड़ी गरमी या रगड़ पाकर फाल्गुन चले पराय । सुनि बलदेव क्रोध अति वाढ़ेउ कृष्ण शांत किय प्राय । —सूर (शब्द०)। ४. अर्जुन नामक वृक्ष । यह जलता है । हवा में खुला रखने से यह धीरे धोरे जलता ५. एक तीर्थ का नाम । ६. वृहस्पति का एक वर्ष जिसमें है और लहसुन की सी गंधभरी भाप छोड़ता है। अंधेरे में देखने से उसमे सफेद लपट दिखाई पड़ती है। यदि गरमी उसका उदय फाल्गुनी नक्षत्र में होता है। अधिक न हो तो यह मोम की तरह जमा रहता है और छुरी फाल्गुनानुज-संज्ञा [ स०] १. चैत्र । २. वसंत ऋतु । ३. नकुल और सहदेव [को०)। से काटा या खुरचा जा सकता है, पर १०८ मात्रा का ताप पाकर यह पिघलने लगता है धौर ५५० मात्रा के ताप में फाल्गुनाल-सज्ञा पु० [स०] फागुन का महीना [को॰] । भाप बनकर उड़ जाता है। यह बहुत सी धातुओं के साथ फाल्गुनि-शा पु० [ स०] अर्जुन । मिल जाता है और उनका रूपांतर करता है। इसे तेल या फाल्गुनिक'--संज्ञा पु० [सं०] फागुन का महीना [को०)। चरबी में घोलने पर ऐसा तेल तैयार हो जाता है जो अंधेरे में फाल्गुनिक-वि० १. फाल्गुनी नक्षत्र से संबंध रखनेवाला। २. चमकता है । दियासलाई बनाने में इसका बहुत प्रयोग होता फाल्गुनी पूर्णमासी संबंधी को। है। और भी कई चीजें बनाने में यह काम आता है । औषध फाल्गुनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. फाल्गुन मास की पूर्णिमा । २. के रूप में भी यह बहुत दिया जाता है क्योंकि डाक्टर लोग पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र । इसे बुद्धि का उद्दीपक और पुष्ट मानते हैं। ताप के मात्राभेद यौ०-फाल्गुनीभव-वृहस्पति । से फासफरस का गहरा रूपांतर भी हो जाता है । जैसे, बहुत
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