पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५२३

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मदाध २७६२ मदिप मदाघ-संज्ञा पुं॰ [सं०] एक ऋषि का नाम । दिन शूकर रूपधारी पातालपेतु के अधिक उपद्रव करने मदानिgf-वि० [?] कल्याण करनेवाला । मंगलकारक । उ० पर इन्होंने उसका पीछा किया और उने मारकर पाताल में तुलसी संगति पोय की मुजनहिं होति मदानि । ज्यों हरि गए। वहां उन्हें मदालसा मिली जिससे उन्होंने विवाह रूप सुताहिं तें कीन जुहारी मानि । -तुलसी (शब्द॰) । पिया। थोड़े दिनों बाद जब ऋतुध्वज अपने पिता की मदापनय-सज्ञा पु० [ स०] मद उतरना । नशा उतरना [को०] । प्राज्ञा से पृथिवीपर्यटन करने निकले, तब उन्हें पातालके का भाई तालकेतु मिला जो मुनि का रूप धारण कर तप मदार'-संज्ञा पुं॰ [सं०] १. हस्ती। हाथी । २. धूर्त | चालवाज । ३. शूकर। सुपर । ४. एक गंधद्रव्य का नाम । ५. कर रहा था | तालकेतु ने ऋतुध्वज से कहा कि मैं यज्ञ करना चाहता हूँ, पर दक्षिणा देने के लिये मेरे पास द्रव्य कामुक । कामी। मदार-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मन्दार ] श्राफ । ७०-पुत्र से गला मदार नही है। यदि आप अपना हार मुझे दें, तो मैं जल में प्रवेश फरे ना दोप में |-पलटु०, पृ० १०४ । कर वरुण से धन प्राप्त कर यज्ञ कहें। राजकुमार ने उसके यौ०-मदारगदा। मांगने पर घपना हार उसे दे दिया और उसके पाश्रम में वैठकर उसके लौटने की प्रतीक्षा करने लगे। तालकेतु हार मदार-सञ्ज्ञा पु० [अ० मदार ] शाह मदार के अनुयायी। दे० 'मदारी'। पहनकर जलाशय में घसा और दूसरे मार्ग से निकलकर उनके पिता के पास पहुंचकर उनसे कहा कि राजकुमार मदार -संज्ञा पुं० [०] १. धुरी। फीली। प्राधार । २. ग्रह यज्ञ की रक्षा कर रहे थे। राक्षसों से घोर युद्ध हुप्रा, जिसमें नक्षत्रादि के भ्रमण का मार्ग । ३. दायरा । घेरा [को०] । राक्षसों ने राजकुमार को मार डाला। मैं यह समाचार मदारगदा-संज्ञा पुं० [हिं० मदार + गदा ? ] धूप मे सुखाया देने के लिये 'प्राया हूँ। जब ऋतुध्वज के मारे जाने का हुआ मदार का दुध जो प्रायः औषध आदि में डाला समाचार मदालसा को पहुंचा, तब उसने प्राण त्याग जाता है। दिए । तालध्वज वहाँ से लौटा और उसी जलाशय से मदारिया-संज्ञा पुं० [हिं० मदारी ] दे० 'मदारी'। निकलकर प्रस्तुध्वज से बोला कि पापकी कृपा से मेरा मदारी-ज्ञा पुं० [अ० मदार ] 1. एक प्रकार के मुसलमान फकीर मनोरथ पूर्ण हो गया। अब चाप अपने घर जाइए। पो वंदर, भालू आदि नचाते और लाग के तमाशे दिखाते ऋतुध्वज जब अपने घर माया, तो मदालसा के शरीरपात हैं। ये लोग शाह मदार के पनुयायी होते हैं। मदारिया। का समाचार सुनकर अत्यंत दुःखित हुधा । निदान वह सदा फलंदर। चिंतातुर रहा करता था। उसे शोकातुर देख उसके सखा विशेष-इस संबंध में बताया जाता है कि ाह मदार का नागराज अश्वतर के दो पुत्रों ने अपने पिता से प्रार्थना की जन्म १०५० ईसवी में एक यहूदी के घर हुवा था कि आप तप करके मदालसा को फिर राजा को दें और और यह स्वयं इस्लाम धर्म में दीक्षित हुए थे। यह उनको दुःख | अश्वतर ने शिव की तपस्या कर फर्रुखाबाद में रहते थे और सुलतान शरकी के समय में उनके वरदान से 'मदालसा' तुल्य पुत्री प्राप्त की और राज- कानपुर पाए थे। उस समय कानपुर में 'मकनदेव' नामक कुमार ऋतुध्वज को अपने यहाँ निमंत्रित कर उसे प्रदान जिन्न रहता था। शाह मदार उस जिन्न को वहां से फिया। यह मदालसा परम विदुपी और ब्रह्मवादिनी थी। निकालकर वहाँ रहने लगे। इसी से उस स्थान का नाम यह अपने पुत्रों को ब्रह्मज्ञान का उपदेश करती हुई खेलाया मकनपुर पड़ा। शाह मदार के विषय में यह प्रसिद्ध है कि करती थी। इसके तीन पुत्र विक्रात, मुबाहु और शत्रुमर्दन वह चार सौ वर्ष जीते रहे और सन् १४३३ में मरे थे । शाह आवाच ब्रह्मचारी और विरक्त थे; और चौथा पुन अलके मदार की समाधि मकनपुर में सुलतान इब्राहीम ने धनवाई गद्दी पर बैठा, जिसे राजा ऋतुध्वज ने अपना उत्तराधिकारी थी। मुसलमान इन्हें जिंदाशाह कहते हैं और अबतक बनाया और अंत को उसी पर राज्यभार छोड़ सत्योक जीवित मानते हैं । शाह मदार का पूरा नाम वदीउद्दीन था। वानप्रस्थाश्रम ग्रहण किया। मार्कंडेय पुराण में इसकी कथा विस्तार से पाई है। २. बाजीगर । तमाशा करनेवाला । ३. बंदर मादि नचानेवाला । मदालापी-संज्ञा पुं० [म० मदालापिन् ] [नी मदालापिनी] कोल्लि । मदालस-वि० [सं०] उत्तेजना, मस्ती अथवा नशे के कारण सुस्त । उ.-पहाड़ की पहली शरद का यह मदालस भाव अकेले मदालु-वि० [सं० मद+भालु ] जिससे मद सवता हो । मतवाला । अनुभव करने का नही है ।-नदी०, पृ० २५६ । मस्त [को०] । मदालसा-संञ्चा श्री० [सं०] पुराणानुसार विश्वावसु गंधर्व की मदाह-संज्ञा पु० [स०] कस्तूरी । पान्या का नाम जिसे वज्रकेतु के पुत्र पातालकेतु दानव ने सदि-संज्ञा स्त्री० [सं०] पटेला । हेंगा। उठा ले जाकर पाताल में रखा था। मदिप-संग पु० [सं० मयप ] दे० 'मयप' । उ०-जो ते चहसि विशेष-मार्कंडेय पुराण में कथा है कि राजा शत्रुजित् के पुत्र मदिप सँग बासा । प्राय पिवो मद मय विनु कासा !-संत ऋतुध्वज यज्ञरक्षार्थ गालव जी के पाश्रम में रहते थे। एक दरिया, पृ० १६ । से छुड़ावें