पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५२०

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मदनकंटक ३७५६ मदनललित मदनकंटक-संज्ञा पुं० [सं० मदनकण्टक ] सात्विक रोमांच । मदनपक्षी-संज्ञा पुं० [ मदनपक्षिन् ] खंजन पक्षी को०] । मदनक-संज्ञा पुं० [सं०] १. मदन वृक्ष । मैनफल । २. दोना । ३. मदनपवि-संज्ञा पुं॰ [स०] १. इंद्र । २. विष्णु । मोम । ४. खैर । ५. मौलसिरी । ६. धतूरा । मदनपाठक-संज्ञा पुं० [०] कोकिला । कोयल । मदनकदन-संज्ञा पुं॰ [ स० मदन+कदन] शिव । महादेव | उ०- मदनफल-संज्ञा पु० [सं०] मैनफत । मयनी । अव ही यह कहि देख्यो मदनकदन को दउ ।-केशव मदनबाधा--संज्ञा स्त्री॰ [स] प्रेम की पीर । कामव्यथा (को०] । (शब्द०)। मदनपीड़ा-संज्ञा स्त्री० [स] प्रेम की पीड़ा । कामजन्य व्यथा । मदनकलह-संज्ञा पुं० [सं०] कामकलह । प्रेमकलह (को०)। मदनवान-संज्ञा पुं० [हिं० मदन+वान ] एक प्रकार का बेला। मदनगुपाल-संज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'मदनगोपाल' । उ०—तिहि विशेप--इसकी फलियो लबी तथा दल एकहरे और नुकीले होते काल बनि ब्रजबाल मदन गुपाल वर छबि अनगनी ।-नद० है। यह वर्षा मे फूलता है और इसकी गध बहुत अच्छी पर ०, पृ० ३७५। तीव्र होती है। मदनगृह-सरा पु० [ स०] १. योनि । भग । २. फलित ज्योतिष के मदनभवन-संज्ञा पु० [सं०] १. योनि । भग । २. फलित ज्योतिष अनुसार जन्मकुडली में सप्तम स्थान । ३. मदनहर छद का के अनुसार जन्मकुंडली में जन्म से सप्तम स्थान । दूसरा नाम । मदनमनोरमा-संज्ञा झी० [सं०] केशवदास के मतानुसार सवैया मदनगोपाल --संज्ञा पु० [ स० हिं० मदन + गोपाल ] श्रीकृष्णचंद्र के एक भेद का नाम जिसे दुमिल भी कहते हैं। का एक नाम । 30-जसुदा मदन गोपाल सुवावै । देखि मदनमनोहर-संज्ञा पु० [स०] दंडक के एक भेद का नाम जिसे स्वप्न गत त्रिभुवन कप्यो ईश विरचि भ्रमावै ।-सूर मनवर भी कहते हैं। (शब्द०)। मदनचतुर्दशी-संज्ञा स्त्री० [सं० 1 चैत्र मास की शुक्ल चतुर्दशी का मदनमल्लिका-संडा स्त्री॰ [सं०] १. मल्लिका वृत्ति का एक नाम । नाम । यह मदनमहोत्सव के अंतर्गत है । २. मल्लिका छंद का एक नाम । उ०-प्रष्ट वरण शुभ मदनतंत्र-संचा पु० [स० मदनतन्त्र ] काम संबंधी शास्त्र । सहित क्रम गुरु लघु केशवदास । मदन मल्लिका नाम यह कीज छंद प्रकास । केशव ( शब्द०)। कामशास्त्र [को०] । मदनत-वि० [सं० मद+नत ] मद या मस्ती से झुकी। शिथिल । मदनमस्त- संज्ञा पुं० [हिं० मदन + मस्त ] १. जंगली सुरन का उ०—काली काली अलकों में । बालस मदनत पलकों में - सुखाया हुमा टुकड़ा जिसका प्रयोग प्रौषध में होता है । २. चपे की जाति का एक प्रकार का फूल जिसकी गध कटहल लहर, पृ०५४ ॥ से मिलती जुलती पर बहुन उग्न तथा प्रिय होती है। मदनताल-संज्ञा पुं० [सं०] संगीत शास्त्र में एक प्रकार का ताल जिसमें पहले दो और अत में दीर्घ मात्रा होती है। द्रुत मदनमह-सज्ञा पुं० [ ] दे० 'मदनमहोत्सव' [को॰] । मदनत्रयोदशी- संज्ञा स्त्री० [सं०] चैत्र की शुक्ल त्रयोदशी का नाम। मदनमहोत्सव--संज्ञा पुं० [ सं०] प्राचीन काल का एक उत्सव पो चंत्र शुक्ल द्वादशी से चतुर्दशी पर्यंत होता था। यह मदनमहोत्सव के अंतर्गत है। मदनदमन-मंज्ञा पु० [सं०] शिव का एक नाम | विशेष - इस उत्सव में व्रत, कामदेव की पूजा, गीत, वाद्य और राविजागरण आदि होते थे। इस उत्सव मे बी पुरुप दोनो मदनदहन-संज्ञा पुं० [सं० मदन+दहन ] शिव जो कामदाहक हैं । कामदेव को दग्ध करनेवाले शंकर [को०। संमिलित होते थे और उद्यान आदि में ग्रामोद प्रमोद करते थे। मदनदिवस-संज्ञा पु० [सं०] मदनोत्सव का दिन । मदनमोदक-सचा पु० [सं०] केशव के मतानुसार सवैया छद के मदनदोला-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] संगीतशास्त्र के अनुसार इंद्रताल के एक भेद का नाम जिसे सुंदरी भी कहते हैं। छह भेदों में से एक का नाम । मदनमोहन-संज्ञा पुं० [सं०] कृष्णचन्द्र का एक नाम । उ०-जो मदनद्वादशो-संज्ञा स्त्री० [सं०] चैत्र शुक्ल द्वादशी का नाम । मोहिं कृपा करी सोई जो हो तो प्रायो मांगन । यशुमति नुन प्राचीन काल में इस दिन मदनोत्सव प्रारभ होता था। अपने पाइन जब ग्देलत पावै ग्रांगन । पब तुम मदनमोहन पुराणों में इस दिन व्रत का विधान है। करि टैरो इहि सुनि के घर जाऊँ। हौं नो रे घर 'जो ढाड़ी मदनद्विट्- -सज्ञा पुं० [सं० मदनद्विप ] शिव [को०] । सूरदास भट नाऊं।-सूर (शब्द०)। मदनध्वजा-संशा खी० [सं०] चैत्र शुक्ल पूर्णिमा । चैत मास की मदनरस--संज्ञा पु० [सं०] १. कामजन्य आनंद । रतिजन्य सुख । २ विप । जहर (कोटि०)। पूर्णिमा तिथि [को०] । मदननालिका-संशा सी० [सं० ] वह सो जिसका विश्वास न हो। मदनरिपु-संज्ञा पुं॰ [स० ] शिव । शं तर [को०] । भ्रष्टा स्ली। दुश्चरित्रा स्त्री । मदनललित-संशा पु०॥ ] कामक्रीड़ा । रतिकोड़ा [ो०] । स० स०