पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५१८

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माथित ३७५७ रखते हैं। तक हुमा । पालोड़ित । ३. ध्वस्त | नष्ट (को०)। ४. पीड़ित । मथोरी --संवा स्त्री० [हिं० माथा+ौरी (प्रत्य॰)] एका प्राभूषण दलित (को०)। का नाम । चंद्रिका । चदक। मथित-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] बिना जल मिलाया हुमा मट्ठा । तक विशेप-इस घाभूषण को स्त्रियां सिर मे पहनती हैं। यह जिव पानी न मिला हो [को०] | घघंचद्राकार होता है जिसमें कई लटकन लगे रहते है। यह मथिता-वि० संज्ञा पु० [सं० मथित ] नाशक | नाश करनेवाला । जंजीर वा धागे से बापा जाता है। मथनेवाला [को०] । मथ्था-संज्ञा पु० [१० मस्तक ] दे० 'माया' । उ०-भटक्क पटक्के मथो -वि० [सं० मथिन् ] [ सी० मथिनी ] मथनेवाला । कटक्क सुमथ्र्थ । सटक्कै चलावै पटक्कै न तस्य )-सुदन मथी-सचा पु० १. मथानी । २. वायु (को०)। ३. बज । बिजली (शब्द०)। (को०)। ४. लिंग । यिश्न (को॰) । मदंग-ञ्चा पु० [सं० मृदा ] एक प्रकार का बास । मथुरही-वि० [हिं० मथुरा ] मथुरा संबंधी । दे० 'मथुरिया' । विशेष-यह बरम', प्रासाम, छोटा नागपुर आदि मे होता उ.-जो पै अलि अंत इहै करिबहो। तो अतुलित अहीर है। यह खोखला और मोटा होता है। इससे घटाई, घड़नई अवलन को हठिन हिये हरिवेहो। जो प्रपंच परिणाम प्रेम श्रादि बनाई जाती है और फलटे चीरकर मकान छाए जाते फिरि अनुचित प्रापरिवेहो। तो मयुरही महा महिमा लहि हैं। इसके पोर में लोग चावल पकाते और चीजें भरसार सकल ढरनि ढरिबेहो।—तुलसी (शब्द०) । मथुरा--संज्ञा क्षी० [सं० मधुपुर (= मथुरा)] पुराणानुसार सात मदंतिका-संज्ञा स्त्री० [सं० मदन्तिका ] दे० 'मदती' [को० । पुरियों में से एक पुरी का नाम । यह व्रज में यमुना किनारे मदंती-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० मदन्ती ] विकृत धैवत फी चार भूतियों मे पर है। से दूसरी श्रृति का नाम । विशेष-रामायण (उत्तरकांड) के अनुसार इसे मधु नामक मदंध-वि० [सं० मदान्ध ] अदमत (हाथो) । दे० 'मदांध' । दैत्य ने बसाया था जिसके पुत्र बाणासुर को पराजित कर उ०-समर के सिंह सत्रुसाल के सपूत, सहजहि बकसेया शत्रुघ्न ने इसको विजय किया था। पाली भाषा के नषों मे सदसिंधुर मदंघ छ ।मति० ग्रं०, ३६६ । इसे मथुरा लिखा है। महाभारत काल मे यहाँ शूरसेन- वंशियों का राज्य था और इसी वंश की एक शाखा में मद -सज्ञा पुं० [ 1 १. हर्ष । धानंद । २. वह गंधयुक्त द्राव जो मतवाले हाथियों की कनपटियो से वहता है। दान । ३. भगवान श्रीकृष्णचंद्र का यहाँ जन्म हुआ या। शूरसेन- वंशियो के राज्य के अनंतर अशोक के समय मे उनके प्राचार्य वीर्य । ४. कस्तुरी। ५. मद्य । ६. चित्त का वह उद्वेग वा उमंग जो मादक पदार्थ के सेवन से होती है। मतवालापन । उपगुप्त ने इसे बौद्ध धर्म का केंद्र बनाया था। यह जैनों का नशा । ७. उन्मचता । पागलपन । विक्षिप्तता । भी तीर्थस्थान है। उनम उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ का सत्यवती मछोदरी नारी। गंगातट ठाढ़ी सुकुमारी। पारा, यह जन्मस्थान है। मौर्य साम्राज्य के प्रनंतर यह स्थान शर ऋपि तह चलि पाए विवश होइ तिनके मद धाए । अनेक यूनानी, पारसी और शक क्षत्रपों के अधिकार में -सूर (शब्द०)। ८. गर्व । महकार | घभड । ६. प्रज्ञान । रहा । महमूद गजनवी ने सन् १०१७ में प्राक्रमण कर इस मतिविम्रम । प्रमाद । १०. एक रोग का नाम । उन्माद नगर को न्यस्त व्यस्त कर डाला था। अन्य मुसलमान नामक रोग। ११. एक दानव का नाम । १२. बामदेव । वादशाहो ने भी इसपर समय समय पर प्राक्रमण कर इसे तहस नहस किया था । यहाँ हिंदुओं के अनेक मदिर मुहा०-मद पर पाना= (१) उमंग पर पाना । (२) कामोन्मत्त हैं और अनेक कृष्णोपासक वैष्णव संप्रदाय के प्राचार्यों का होना । गरमाना । (३) युवा होना । यह केंद्र है। पुराणानुसार यह मोक्षदायिनी पुरी है। मद-वि० मत्त। उ०-~मद गजराज द्वार पर ठाढ़ो हरि बहेउ नेक मथुरानाथ-संज्ञा पुं० [स०] श्रीकृष्ण । वचाय । उन नहिं मान्यो संमुख प्रायो पफरेउ पुछ फिराय । मथुरापति-संज्ञा पुं० [ स०] श्रीकृष्ण । सूर (शब्द)। मथुरिया-वि० [हिं० मथुरा+इया (प्रत्य॰)] मथुरा से संबंध मदर-संज्ञा स्त्री० [ ] १. लंबी लकीर जिसके नीचे लेसा लिखा रखनेवाला। मथुरा का । जैसे, मथुरिया पडे। उ-तव जाता है। खाता। २. कार्य या कार्यालय का विभाग। मथुरिया (चौवे) कोस दस बीस पर साम्हे ग्राइक उनकों सीगा। सरिता । ३. खाता । जैसे,—इस मद मे सौ रुपए ले माए।-दो सौ बावन०, भा० १, पृ० १६५ । खर्च हुप हैं । ४. शीर्षक । अधिकार । ५. ऊंची लहर । मथुरेश-संज्ञा पुं० [ स०] श्रीकृष्ण। ज्वार। मथौरा-संज्ञा पुं० [हिं० मथना ] एक प्रकार का भद्दा रंदा जिससे मदअंतिका-मंशा स्त्री० [सं० मदयन्तिका ] मल्लिका । मदयंती। बढ़ई लकड़ी को खरादने के पहले छीलकर सीधा करते हैं। उ०-झाड़ दुसाखे झाम वसुल वरमा रु हपौरा। टांकी मदक-संज्ञा स्त्री० [हिं० मद+ क (प्रत्य॰)] एक प्रकार का मादक पदार्थ जो अफीम के सत में बारीक कतरा हुप्रा पान पकाने नहनी घनी भरा पारी सु मपोरा।-सूदन (शब्द॰) । मदन। O