पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फाजिल बाकी ३२६० फानूस पाला दर्जे के फाजिल और उस्ताद हैं।-मघन॰, भा॰ २, २. झटके से किसी परत होनेवाली, वस्तु का कुछ भाग अलग कर देना । टुकडे करना । खंड करना । जैसे, थान में से कपड़ा पृ०६०। फाजिल वाकी'-संज्ञा सी० [अ० फाजिल बाकी ] हिसाब की फाड़ना, कागज फाड़ना। ३. धज्जियां उड़ाना । जैसे, हवा का बादल फाड़ना। कमी या बेधी । हिसाब में का लेना देना । संयो॰ क्रि०-डालना।-देना।-लेना । क्रि० प्र०-निकालना। ३. जुडी या मिली हुई वस्तुओं के मिले हुए किनारों को अलग फाजिल बाकी वि० हिमाब में बाकी निकता हुप्रा । बचा हुआ । अलग कर देना। सघि या जोड़ फैलाकर खोलना । जैसे, अवशिष्ट । जैसे,-तुम्हारे जिम्मे १००) फाजिल बाकी है। अखि फाडना, मुंह फाडना । ४. किसी गाढे द्रव पदार्थ को फाटक-सशा पु० [ म० कपाट ] १. बडा द्वार। बड़ा दरवाजा । इस प्रकार करना कि पानी और सार पदार्थ अलग हो जाय। तोरण। उ०-चारों ओर ताँबे का कोट और पक्की पुपान जैसे,—(क) खटाई डालकर दूध फाड़ना । (ख) चोट पर चौड़ो खाई स्फटिक के चार फाटक तिनमें अष्टधाती किवाड़ लगाने से फिटकरी सून फाड़ देती है। लगे हुए ..."| -लल्लू (शब्द०)। २. दरवाजे पर की फाणि-सशा स्त्री० [सं०] १. गुरु । भेनी । २ दही में साना पा बैठक । ३. मवेशीखाना । कोजी होस । सत्तू (को०] । फाटक-पजा पु० [हिं० फटकना ] फटकन । पछोड़न । भूसी जो फाणित-संज्ञा पु० [सं०] १. राब । २. शोरा । अनाज फटकने से बची हो । उ०-फाटक दै कर, हाटक मांगत भोरी निपटहि जानि ।- सूर (शब्द॰) । फातिमा-संशा स्त्री० [ भ० फातिमह ] पैगंबर मुहमद की पुत्री जो अली की पत्नी और हसन हुमैन की जननी थी । फाटका-संज्ञा पु० [हिं० ] सट्टा । सट्टे का जुप्रा । उ०-सट्टे या फाटके का सौदा भी किया जाता था ।-हिंदु० सभ्यता, फातिहा-संज्ञा पुं० [अ० फातिहह ] १. प्रार्थना । उ०-कबीर काली सुदरी होइ बैठी अल्लाह । पढे फातिहा गैव का हाजिर पृ०२६६। को कह नाहि ।-कबीर (शब्द०)। २. वह चढावा जो मरे यौ०-फाटकेबाज = का जुमा खेलनेवाला। सट्टेबाज । हुए लोगों के नाम पर दिया जाय । जैसे,—हलवाई की सटोरिया। दुकान पोर दादे का फातिहा । फाटकी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] फिटकिरी [को०] । यौ०-फातिहाख्वानो-फातिहा पढ़ने की रस्म । फाटना@+-क्रि० अ० [हिं० ] दे॰ 'फटना' । उ०—(क) धरती क्रि० प्र०-पढ़ना। भार न अंगवै पांव घरत उठ हाल । कम कूट भुइ फाटी तिन हस्तिन की चाल । —जायसी (शब्द॰) । (ख) दूध फाटि घृत फादर-संशा पुं० [अ० फ़ादर तुल० सं० पितर ] १. पिता । वाप । दूधे मिला नाद जो (मिला) पकास । तन छूटै मन तह गया २. पादरियों को सम्मानसूचक उपाधि । जैसे, फादर जोन्स । जहां धरी मन पास ।-कबीर (शब्द॰) । उ०-मैं पभी प्राप दोनों को गिणे में फादर के पास ले मुहा०-फाठ पढ़ना- टूट पड़ना । उ०-दूर दूर से मरभूखे फानना'-क्रि० स० [सं० फारण या स्फालन ] घुनना। सई को जाती हूँ। -जिप्सी, पृ० १६५ । फाट पड़े। -प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० २७४ । फटकना । फाड़खाऊ-वि० [हिं० फाड+खाना] १. फाड़ खानेवाला । कटखन्ना । २. क्रोधी । बिगडैल । चिड़चिडा । ३. भयानक । फानना-क्रि० स० [स० उपायन] किसी काम को प्रारंभ करना । अनुष्ठान करना। कोई काम हाथ में लेना। किसी घातक। काम में हाथ लगा देना। फाड़न-मंशा श्री०, पु० [हिं० फाड़ना ] १. कागज, कपड़े आदि फानी-वि० [अ० फानी ] नश्वर । नष्ट होनेवाला । उ.-रंगीन का टुकड़ा जो फाड़ने से निकले । २. दही के ताजे मक्खन दलों पर जो की छांछ जो पाग पर तपाने से निकले। कुछ था, तसवीर एक वह फानी थी। -द्वंद्व., पु० ५२ । फाड़ना-क्रि० स० [सं० स्फाटन, प्रा० फाडण, हिं० फाटना ] १. फानूस'-संशा पुं० [फा० फ्रानस ] १. एक प्रकार का दीपाघार किसी पैनी या नुकीली चीज को किसी सतह पर इस प्रकार जिसके चारों घोर महीन कपड़े या कागज का महप सा होता मारना या खींचना कि सतह का कुछ भाग हठ जाय या उसमें है। कपड़े या कागज से मढा हुमा पिंजरे की शकल का दरार पड़ जायें । चीरना । विदीणं करना । जैसे, नाखून चिरागदान । एक प्रकार की बड़ी कंदील । उ.-बाल से कपड़े फाड़ना, पेठ फाड़ना । छबीली तियन में बैठी माप छिपाइ। परगट ही फानूस सी संयो० कि०-डालना ।—देना । परगट होति लखाइ ।-विहारी (शब्द०)। मुहा०-फाई स्वाना= क्रोध से झल्लाना । विगढ़ना। चिड़ विशेप-यह लकड़ी का एक चौकोर वा अठपहल ढॉचा होता चिड़ाना। था जिसपर पतला कपड़ा मढ़ा रहता था। इसके भीतर