पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४८७

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मँगनी मदिरा ३७२६ मदिरा-संज्ञा स्त्री० [स० मन्दिरा ] १. घोड़साल । मंदुरा । प्रधान नगर जो पूर्वी घाट के किनारे पर है। मद्रास । इस अश्वशाला। २. मजीरा नामक बाजा। नाम से दक्षिण का पूर्वी प्रदेश भो ख्यात है। उ०-प्रभो म दिल-संज्ञा पु० [स० मन्दिर ] १. घर । उ०-धर्मराय मंद्राज प्रदेश मे।-प्रेमघन॰, भा॰ २ पृ० २०६ । की गति नही जानी। हर मदिल उपजामो पानी।-कबीर मद्राजी-वि० [हिं० मद्राज ] १. मंद्राज में उत्पन्न वा रहनेवाला। सा०, पृ० १३ । २. देवालय । ३. प्रत्येक रुपए या थान प्रादि २. मद्राज सबधी। ३. मद्राज का बना हुआ । जैसे, मद्राजी के पीछे दाम मे से काटा जानेवाला वह अल्प धन जो किसी दुपट्टा। मंदिर या धार्मिक कृत्य के लिये दूकानदार दाम देते समय मनना-कि० अ० [हिं० मानना ] स्वीकार करना । दे० काटते हैं। 'मानना' । उ०-(क) किहि मंनी अमनी सुकिहि प्रिविधि क्रि० प्र०-कटना |-काटना । जानि संसार ।-पु० रा०, ६१४६ । (ख) कही चित्त मदिलरा--संज्ञा पुं० [ स० मईल ] दे० महल' । उ०—(क) मकवान नै नह मनी सुरतान |-पु० रा०, १२।१४४ । मंदिलरा री बाजे अति ही गहगहे प्रगट भए या अवध मशा-सशा नो० [अ० ] कामना । इच्छा | इरादा । जैसे,-मेरी नगर मैं रामचद्र बर प्राजै ।-घनानद, पृ० ५५२ । (ख) मंशा तो यही थी कि सब लोग वहाँ चलते । भाजु मदिलरा दसरथ राय के बाजे रंग वधाई है। - मपना-सचा पु० [स० म्रक्षण ] ३० मिक्खन'। उ०-लगे गुजं घनानद, पृ०५५१ । सीसं भजी भंति छुड़े। मनो मंषन दद्घि मथान उड्ड । मदी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० मद] भाव फा उतरना। महंगी का -पृ. रा०, १३१६० । उलटा । सस्ती। मसा-सञ्ज्ञा पु० [सं० मांस ] दे॰ 'मास' | उ०-~-अप मस अप कर मंदीर-संज्ञा पु० [सं० मन्दीर ] १. एक ऋषि का नाम । २. मजीर । कट्टि के चील्हाँ हंकि उड़ाइयाँ ।-पृ० रा०, ११६६८ । मदील-संज्ञा पुं० [हिं० मुड ] १. एक प्रकार का सिरवंद जिसपर मसना-क्रि० स० [सं० मनस् ] 1. इच्छा करना । मन में संकल्प काम बना रहता है । २. एक प्रकार का कामदार साफा | करना। २. दे० 'मनसना'। मदुरा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० मन्दुरा ] १. अश्वशाला। घोड़साल । म सब-संज्ञा पुं० [अ०] १. पद । स्थान । पदवी। २. काम | २. बिछाने की चटाई। कर्तव्य । ३. अधिकार । यौ०-मदुरापति, मदुरापाल = अश्वशाला का प्रधान साईस । मसा'-मंश स्त्री० [स० मनस् ] १. इच्छा । चाहना। अभिरुचि । मदुराभूपण - एक प्रकार का बंदर । उ०-कह गिरधर कविराय केलि की रही न मंसा !-गि० मदुरिक-सञ्ज्ञा पु० [ स० मन्दुरिक ] साईस ! दा० (शब्द॰) । २. संकल्प । ३. प्राशय । अभिप्राय । मदोच्च-सज्ञा पुं० [सं० मन्दोच्च ] ग्रहों को एक गति जिससे विशेष-यह शब्द संस्कृत 'मनस्' से निकला है पर कुछ लोग राशि प्रादि का संशोधन करते हैं। म्रमवश इसे भरबी मंशा' से निकला हुमा समझते हैं । मंदोदरी-संज्ञा स्त्री० [सं० मन्दोदरी ] रावण को पटरानी का मसार-संज्ञा स्त्री॰ [देश०] एक प्रकार की घास जो बहुत शीघ्रता से नाम । यह मय की कन्या थी । 30-मदोदरी नवन ताटंका। बढ़ती और पशुओं के लिये बहुत पुष्टिकारक समझी जाती सोइ प्रभु जनु दामिनी दमंका ।-मानस, ६.१३ । है। मफड़ा । विशेप दे० 'मकड़ा'। मंदोदरी-वि० सूक्ष्म पेटवाली । कृशोदरी। मसूख-वि० [ ] खारिज किया हुआ । रद । काठा हुआ। मदोष्ण-वि० [सं० मन्दोपण] माघा गरम । कुछ गरम । गुनगुना । मसूप-० [म. ] जिसकी किसी के साथ मंगनी हुई हो। कुनकुना [को०] । संबधित । उ०-भाई की दुस्तरे नेक अख्तर मेरे साले के मद्र-संज्ञा पु० [स० मन्द्र ] १. गंभीर ध्वनि । २. संगीत में स्वरों भतीजे से मसूब हुई है ।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ८६ । के तीन भेदो में से एक । इस जाति के स्वर मध्य से अवरोहित मसूत्रा-संज्ञा पु० [अ० मन्सूवा ] दे॰ मनसूबा' । होते हैं। इसे उदारा वा उतार भी कहते हैं। ३. हाथी की मसूर'-वि० [अ० ] १. विजेता । विजयी । २. अनविवा मोती। एक जाति का नाम । ४. मृदंग । ३. विकीणं । बिखरा हुमा (को०] । मद्र-वि० १. मनोहर । सुदर । २. प्रसन्न । हृष्ठ । ३. गंभीर । उ०-गरजो हे मंद्र वच्च स्वर । थर्राए भूधर भूधर । मसूर-संज्ञा पुं० एक प्रसिद्ध मुसलमान साधु । विशेष दे० 'मनसूर' । उ.-या कि फिर मंसूर सा दूल्हा मिले। मधुर यौवन -अपरा, पृ० ३०। ४. धीमा (शब्द आदि )। 3.- फूल शूली पर खिले -हिम कि०, पृ० १४६ । मंद्र चरण मरण ताल ।-प्रर्चना, पृ०४०। मॅगता-सञ्चा पु० [हिं० मांगना ] भिक्षुक । याचक । भिखमंगा । यौ०-मंद्रध्वनि = गंभीर या घीमी पावाज । मंदस्वन = दे० 'मंद्रध्वनि'। मँगनी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० माँगन+ई (प्रत्य॰)] १. मांगने की क्रिया या भाव । २. वह पदार्थ जो किसी से इस शतं पर मद्राज-संज्ञा पुं० [सं० मन्द्र जी० मंदाजिन ] दक्षिण का एक मांगकर लिया जाय कि कुछ समय तक काम लेने के उपराव अ०