पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४७६

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'मंगलावह ३७१५ मजन मंगलाबह-वि० [सं० मङ्गलावह ] शुभद । मंगलदायक [को०] । मंगोल-संज्ञा पुं० [ मंगोलिया प्रदेश से ] मध्य एशिया और उसके मंगलावास-संज्ञा पु० [ स० मङ्गलावास ] देवमंदिर । देवस्थान । पूरब की ओर ( तातार चीन और जापान में ) वसनेवाली मगलानत-संज्ञा पुं० [सं० मङ्गलावत ] १. शिव । २. एक व्रत एक जाति जिसका रंग पीला, नाक चिपटी पोर चेहरा जो स्त्रियाँ पार्वती के उद्दश्य से डरती है । चौड़ा होता है। मंगलाष्टक-सञ्ज्ञा पु० [ स० मङ्गलाष्टक ] वर वधु के कल्याणार्थ विशेष-पृथ्वी के मनुष्यों के जो प्रधान चार वर्ग किए गए हैं विवाह के समय पाठ किए जानेवाले मंत्र विशेष [को॰] । उनमें एक मंगोल भी है जिसके मतगत नेपाल, तिब्बत मंगलातिक-सञ्चा पु० [स० मङ्गलाहिक ] कल्याण के लिये की जाने- चीन, जापान आदि के निवासी माने जाते हैं। आज से छह वाली दैनिक अचना या साधना । दैनिक मंगल कृत्य (को०)। सात सौ वर्ष पहले इस जाति के लोगो ने एशिया में बहुत बड़े और यूरोप के कुछ भाग पर भा प्रधिकार कर लिया था। मगली-वि० [सं० मङ्गल ( ग्रह) ] जिसकी जन्मकुंडली के चौथे, पाठवें या बारहवें स्थान में मंगलग्रह पड़ा हो। उ.--सवको मच-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० मञ्च | १. खाट । खटिया । २. खाट की तरह जो बड़े प्रार्थना भर, नयनो मे, पाने का उत्तर अनुकूल, उन्हें बुनी हुई बैठने की छोटो पीढ़ी। मंचिया । ३. सिहासन (को॰) । कहा निडर मैं हूँ मगलो, मुड़े सुनकर ।-अनामिका ४. मैदान या खेतो माद में बना हुमा ऊंचा स्थान । मचान (को०)। ५. ऊंचा बना हुमा मंडल जिसपर बैठकर सर्वसाधारण १२४॥ के सामने किसी प्रकार का काय किया जाय । जैसे, रगमच। विशेष-फलित ज्योतिष के अनुसार ऐसी स्त्री या पुरुष कई बातों में बुरा और अनुपयुक्त समझा जाता है; और वर या कन्या में यौ०--मंचनृत्य-एक प्रकार का नाच । मचपत्री। मचपाठ 3 से जो मंगली हाता है, वह दुसरे पर भारी माना जाता है। मच पर बैठने का भासन । मचमंडप । मचयूप - वह स्तंभ मंगलीकर-वि० [सं० माङ्गलिक ] दे० 'मांगलिक' । उ०-काहू जिसके आधार पर मच का ढांचा टिका रहता है। वरवर दीन्ह उतारी। मंगलीक ससि सम सित सारी। मंचक-सञ्ज्ञा पुं० [ स० मञ्चक] द० 'मच' । -शकुंतला, पृ० ६६ । मचकाश्रय-सबा पु० स० मञ्चकाश्रय ] खटमल । 'मगलीय-वि० [सं० मङ्गलीय ] मंगलयुक्त । भाग्यशील । भाग्यप्रद । मचकासुर-सचा पु० [ मञ्चकासुर । पुराणानुसार एक असुर का शुभावह [को॰] । नाम । मंगलेच्छु-वि० [सं० मङ्गलेच्छु ] कल्याण या शुभ फी कामना म'चपत्रा-सञ्चा खा० सं० मञ्चपत्री] सुरपत्री नाम की लता । करनेवाला । शुभेच्छु। मचमडप-सचा पु० [स० मञ्चमण्डप] १. खेतो में बनी हुई वह मंगलोत्सव-Hश पुं० [स० मङ्गलोत्सव ] शुभ उत्सव [को०] । मचान जिसपर खेतिहर लाग बैठकर पशुप्रो आदि से सेवा का मंगल्य-वि० [सं० मङ्गल्य ] १. मंगलकारक । मंगल या कल्याण रक्षा करते है । २. विवाहादि के समय बना हुआ मच (को०)। करनेवाला । २. सुदर । ३. पवित्र । पूत । शुद्ध । ४. साधु । मचातोड़-वि०[हिं० माँवा+तोड़ ] भारी भरकम । विशालकाय । मंगल्या-संञ्चा पुं० १. प्रायमाण लता। २. अश्वत्य । ३. वेल । ४. बड़े डीलडोलवाला 130-वीस मचातोड़ रक्षक राजपूत उसके मयूर । ५.जीवक वृक्ष । ६. नारियल । ७. कैथ । ८. रीठा लिये वही मरने का निश्चय कर ठहरे हुए थे।-राज. करंज। ६. दही। १०. चंदन । ११. सोना । १२, सिदूरं । इति०, पु० ८६६। १३. अभिषेकार्थ विभिन्न तीर्थों से एकत्रित किया हुआ मांचिका--सञ्चा बी० [सं० मञ्चिका ] १. मचिया २. फठवता जल (को०)। द्रोणी [को०] । मंगल्यक-सज्ञा पुं० [सं० मङ्गल्यक ] मसूर [को०] । मछ'-संज्ञा पु० [सं० मत्स्य, मच्छ ] दे० 'मत्स्य'। उ०- मंगल्यकुसुमा-संज्ञा स्त्री॰ [ स० मङ्गल्यकुसुमा ] शखपुष्पी । कोन्हेसि नदी नार पो झरना । कीन्हेसि मगर मछ बहु मंगल्या-सद्धा स्त्री० [सं० मङ्गल्या ] १. एक प्रकार का अगुरु घिसमें वरना ।-बायसी पं०, (गुप्त), पृ०१। चमेली की सी गंध होती है। २. शमी । ३. सफेद वच । ४. रोचना। ५. शंखपुष्पी । ६. जीवंती । ७. ऋधि मछा-वंश पुं० [ देश० ] डिंगल रीति-ग्रय-रचयिता कवि मनसा राम का उपनाम जिन्होने विभिन्न गीतों में रघुनाथ रूपक लता।८. हल्दी । ६. दुव । १० दुर्गा का एक नाम । गीतारों नाम से रामचरित विखा है। मंगिता-संज्ञा पुं० [हिं० मांगना ] मंगता। याचक । उ०-मैं मछर--संज्ञा पु० [सं० मत्सर ] दे० 'मत्सर। उ०-पादि भिखारी मंगिता दरसन देहु दयाल ।-दादू० बानी, पु० ५६ । श्रतलौ भाइ करि सुकिरत कडून कोन्ह । माया मोह मद मंगिन-संज्ञा ० हिं० माँगना ] मंगता। याचक | उ०-बैरम मछरा स्वाद सबै चित दीन्द।-संतवाणी, पृ० ८५। सुवन नित बकसि वकसि हथ देत मगिनन ।-अकबरी०, मंछला-संज्ञा पुं॰ [स० मतस्य मत्स्य । मछली ।उ०-परनारी के पु०१४४॥ रांचणं मोगुण हे गुण नाहि । पार समद में मछला फेता बाहे मंगुर-संञ्चा पुं० [सं० मङ्गुर ] मछली की एक जाति । मांगुर । बहि जाहिं । कवोर ग्र०, पृ० ३६ । उ.-धीमर जाल झोन एह डारा बा मंगुर मीना । -संत० दरिया, पृ० १४६ । म.जन-संश पुं० [सं० मञ्चन ] 1. वह चूर्ण जिसकी सहायता के