भौवन ३७०६ भ्रमना भौवन-सञ्ज्ञा पुं० [स] विश्वकर्मा का एक नाम । दे० 'भौमन' [को॰] । भौसा-सज्ञा पु० [देश॰] १. भोड़भाड़। जनसमूह । २. हो हुल्लड । गड़बड़। भौहरा-संज्ञा स्त्री॰ [ स० भ्र: ? ] दे॰ 'भौंह' । उ०-ग्रापडिया रतनालियां, भोहरा जाणे भ्रमर भमाय ।-बो. रासो, भ्यन्ना-वि० [स० भिन्न ] अलग अलग । भिन्न भिन्न । उ०- कहि सनकादिक इद्र सम किम लिय पाथर तन्न । कहै इंद्र सनकादि सो सुनौ कहौ करि भ्यन्न ।-पृ० रा०, २।११०। भ्यान-संज्ञा पु० [ स० विभान या हिं० बिहान ] दे० 'बिहान' । उ.-ज्यों पपी की प्यास पीव रात भर रटी। मरी स्वाति बिना बुंद भोर भ्यान पौ फटो।-तुरसी० श०, पृ० ५ । भ्रग-संज्ञा पुं० [स० भृङ्ग] भृग भ्रमर। उ०-मृगमद जवाद सब चरचि अग। कसमीर अगर सुर रहिय भ्रग । सुभ कुसुम हार सब कंठ मेलि । इम चलिय वलिय चहुपान खेलि ।पृ० रा०, ६।११२। भ्रंगारी-सज्ञा पुं० [सं० भृङ्गार ] झीगुर । ( डि• ) । भ्रंगी-मज्ञा पुं० [स० भृङ्गी ] एक प्रकार का गुजार करनेवाला पतिंगा। भ्रश, भ्रंस'-संज्ञा पुं० [सं०] १. अधःपतन । नीचे गिरना । २. नाश । ध्वंस । ३. भागना। ४. त्याग । छोड़ना। भ्रंश, भ्रस-वि० भ्रष्ट । खराव । भ्रंशन, भ्रसन'–संज्ञा पु० [ स०] नीचे गिरना। पतन । २. भ्रष्ट होना। भ्रंशन, भ्र'सन-वि० [स०] नीचे गिरनेवाला । भ्र शित-वि० [ स०] १. नीचे गिराया या फेंका हुप्रा । २. च्युत । भ्रम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. किसी पदार्थ को घौर का और समझना। किसी चीज या बात को कुछ का कुछ समझना | मिथ्या ज्ञान । भ्राति । धोखा। २. सशय । संदेह । शक । क्रि० प्र०-में ढालना ।-में पढ़ना '—होना । ३. एक प्रकार का रोग जिसमें रोगी का शरीर चलने के समय चक्कर खाता है और वह प्रायः जमीन पर पड़ा रहता है। यह रोग मूर्छा के अंतयंत माना जाता है । ४. मूळ । बेहोशी। उ०-भ्रम होइ ताहि जा कर चीत ।-पृ० रा०, ६८८ । ५. नल । पनाला। ६. कुम्हार का चाक । ७. भ्रमण । घूमना । फिरना। ८. वह पदार्थ जो चक्राकार घूमता हो। चारों ओर घूमनेवाली चीज। ६. अनिर्गम । स्रोत (को०)। १०. कुंद नाम का एक यंत्र । शाण । खराद (को०)। ११. मार्कंडेय पुराण के अनुसार योगियों के योग में होनेवाले पाँच प्रकार के विघ्नों में से एक प्रकार का विघ्न या उपसर्ग जिसमें योगी सब प्रकार के प्राचार प्रादि का परि- त्याग कर देता है और उसका मन निरवलंब की भांति इधर उधर भटकता रहता है । १२. चक्की (को०)। १३. छाता (को०) । १४. घेरा । परिघि (को०)। भ्रम-वि० १,घूमनेवाला। चक्कर काटनेवाला । २. भ्रमण- करनेवाला।चलनेवाला। भ्रमर-संज्ञा पु० [स० सम्भ्रम ] मान प्रतिष्ठा । इज्जत। 30- जस अति संकट पंडवन्ह भएउ भोव बंदि छोर । तस परवस पिउ काढ़ह राखि लेह भ्रम मोर । —जायसी (शब्द॰) । भ्रमकारी-वि० [सं० भ्रमकारिन् ] भ्रम उत्पन्न करनेवाला। शक में डालनेवाला। भ्रमजार-संज्ञा पु० [सं० भ्रमजाल ] भ्रम का फंदा । भ्रमण-संवा पुं० [सं०] १. घूमना फिरना । विचरण । २. माना जाना। ३. यात्रा। सफर। ४. मंडल । चक्कर। फेरी। भ्रमणकारी-वि० [ स० भ्रमणकारिन् ] घूमनेवाला । घुमक्कड़ । भ्रमणविलसित-संज्ञा पु० [सं०] एक वृत्त । भ्रमणी-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. सैर या मनोविनोद के लिये चलना । घूमना फिरना । २. जोंक । ३. एक प्रकार की क्रीड़ा (को॰) । ४. पांच धारणामों में से एक का नाम (को०)।. भ्रमणीय-वि० [सं०] १. घूमनेवाला । २. चलने फिरनेवाला । ३. भ्रमण के योग्य। भ्रमत्-वि० [सं० ] घूमनेवाला । घुमंतू को॰] । भ्रमत्कुटी-संज्ञा स्त्री० [सं०] तिनकों और बांस भादि की खपाचियों से बना हुप्रा छाता। भ्रमनाg'-क्रि० भ० [सं० भ्रमण ] घूमना फिरना। भ्रमना-क्रि० प्र० [सं० भ्रम ] १. धोखा खाना । भूल करना। १०-कहा देखि के तुम भुरि गए। सूर (शब्द॰) । २. भटकना । भूलना। वंचित । भ्रंशी-वि० [स० भ्रशिन् ] १. गिरने, पतित होने या भ्रष्ट होनेवाला । २. कम होने या छीजनेवाला । ३. भटकनेवाला। ४. बरबाद करनेवाला। भ्रकुंश, भ्रॉस-सज्ञा पु० [ सं०] वह नाचनेवाला पुरुष जो स्त्री का वेष धरकर नाचता हो। भ्रकुटि-संज्ञा स्री० [सं०] भृकुटी । भौह । भ्रज्जन-संज्ञा पु० [सं० भ्रज्ज ] तलना, पकाना या भूनना [को० । भ्रत'-संज्ञा पु० [सं० भृत्य ] दास । सेवक ( डिं० )। उ०- आगल नृपती बात उचारी, समै पाय निज भ्रत सु विचारी । -रा० रू०, पृ० ३२५ । भ्रवरार-सञ्ज्ञा पु० [सं० भ्राता ] भ्राता । भाई। भ्रत्तार-संशा पु० [सं० भर्तार ] पति । खाविंद । स्वामी। भ्रद्र-संज्ञा पुं॰ [स० भद्र; डि० ] हाथी । दे० 'भद्र' । भ्रभग-सञ्ज्ञा पुं० [सं० भ्रभङ्ग ] 'भ्र भंग' [को०] । भ्रमंत-सञ्ज्ञा पु० [सं० भ्रमन्त ] गृह । मकान । छोठा घर [को०] ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४६९
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