भाजपत्र 2.To ] का समय। भोजक ३७०२ विद्वान्, कवि और विद्याप्रेमी थे। इनका काल १०वी शती भोजनक-पग पु. [ स०] एक पौधा । का अंत और ११ वी शती का प्रारम माना जाता है। भोजनकाल–गा पु० [म० ] खाने का समय । विशेष-ये धारा नगरी के सिंधुल नामक राजा के लड़के थे और भाजनखानी पु-सज्ञा जा [4० भोजन+हि पान | पाकशाना । इनकी माता का नाम सावित्री था। जब ये पाँच वप के ये. रसोईघर । उ०-चकित विप्र सब मुनि नम बानी । मन तभी इनके पिता अपना राज्य और इनके पालनपोषण का गयउ जहें भोजनखानी।-तुलसी (शब्द०)। भार अपने भाई मुज पर छोड़कर स्वर्गवासी हुए थे। मुज भोजनगृह -risn ० [ स०] पाकशापा । भोजन करने का स्थान | इनकी हत्या करना चाहता था, इसलिये उसने बगाल के वत्सराज को बुलाकर उसको इनकी हत्ण का भार सौगा। भोजनत्याग- स्त्री० [ग० ] उपवास । अनशन [0] । वत्सराज इन्हे बहाने से देवी के सामने बलि देने के लिये ले भोजनभट्ट-॥ पु० [हिं० भोजन + म० भट्ट ] वह जो बहुत गया। वहां पहुंचने पर जब भोज को मालूम हुमा कि यहां अधिक साता हो। पेटू । मैं बलि चढ़ाया जाऊंगा, तब उन्होंने अपनी जांघ चीरकर भोजनभांड-तरा ५. [ स० भोजनभाएद ] मासाहार । प्रापि उसके रक्त से बड के एक पत्ते पर दो श्लोक लिखकर पदाथ [को॰] । वत्सराज को दिए घोर कहा कि ये मुज को दे देना । उस भोजनभूमि-संशा मी० [ स०] भोजन करने की जगह लो०] । समय वत्सराज को इनकी हत्या करने का माहम न हुपा और भोजनविशेप-मसा पु. [ स०] निशिष्ट भोजन [को०] । उसने इन्हे अपने यहाँ ले जाकर छिपा रखा । जब वत्सराज भोजनवृत्ति-सा • [in J साद्य वस्तु । साना । भोजन [को॰] । भोज का कृत्रिम फटा हुआ सिर लेकर मुज के पास गया, भोजनवेला- और भोज के श्लोक उसने उन्हे दिए, तब मुज को [स. भाजन बहुत पश्चात्ताप हुप्रा। मुज को बहुत विलाप करते देखकर भोजनकाल [को०। वत्सराज ने उन्हे असल हाल बतला दिया और भोज को भोजनव्यग्र-वि० [म.] 1. साने में संलग्न । २. जिस साय पदा लाकर उनके सामने खड़ा कर दिया। मुंज ने सारा राज्य मा प्रभाव हो । भोजन के लिये व्यग्र (को॰) । भोज को दे दिया और पाप सस्लीक वन को चले गए। भोजनव्यय-न पु० [१०] भोजन | व्यय । सानपीने का कहते हैं, भोज बहुत बड़े वीर, प्रतापी, पंडित और गुण. खचं (को०] । ग्राही थे । इन्होने अनेक देशो पर विजय प्राप्त की थी और भोजनशाला- सी० [H] रसोईघर | पाकशाला । फई विषयो के अनेक प्रथों का निर्माण किया था। इनका भोजनसमय-मता पुं० [सं०] १० भोजनलाल'। समय १० वी ११ वी शताब्दी माना गया है । ये बहुत अच्छे भोजनाच्छादन-सक्षा पु० [सं०] साना कपड़ा। अन्न वस्य । कवि, दार्थनिक और ज्योतिषी थे। सरस्वतीकठाभरण, भोजन और वस्त्र । खाने पोर पहनने की सामपी। शृगारमंजरी, चपूरामायण, चारुचर्या, तत्वप्रकाश, व्यवहार- समुच्चय आदि अनेक प्रथ इनके लिखे हुए बतलाए जाते हैं। भोजनाधिकार- पुं० [सं०] रसोई का प्रयान भडारी । इनकी सभा सदा बड़े बड़े पडितो से सुशोभित रहती थी। पाकशाला का धब्यक्ष । इनकी स्त्री का नाम लीलावती था जो बहुत बड़ी विदुषी थी। भोजनार्थी-वि० [म. भोजार्थिन् ] [वि०ी भोजनार्थिनो ] भोजक-संज्ञा पु० [स०] १. भाजन करानेवाला । २. भोजन करने भुखा । बुभुक्षित । भोजन चाहनवाला । वाला। ३. भोग करनेवाला । भोगी। २. ऐयाश । विलासी। भोजनालय-सज्ञा पुं० [सं० ] पाचाला । रसोईघर । उ.-तुम बारी पिय भोजक राजा। गवं करोध वही पै भोजनीय-वि० [स० ] १. भोजन करने योग्य । खाने योग्य । जो छाजा । -जायसी (शब्द०)। खाया जा सके । २. खिलाए जाने योग्य । पोषणीय । भोजकर-संज्ञा पु० [स०] भोजपुर । यह भीम के पुत्र रुपिम द्वारा भोजनोय-सरा पु. [म.] साना । गोजन । ग्राहार [को०] । बसाया गया था। यौ०-भोजनीयमृत=धिक भोजन करने से मृत । जो प्रवीण भोजदेव-ज्ञा पु० [१०] १. कान्यकुब्ज के महाराज भोज । २. रोग से मरा हो। दे० 'भोज'-७ भोजन-संज्ञा पु० [ स०] १. आहार को मुह में रखकर चवाना । भोजनोत्तर-वि० [ स० } १. जिसे भोजन बाद खाया जाय । भक्षण करना । खाना । ३. वह जो कुछ भक्षण किया जाता ( पोषधि मादि)। २. भोजन करने के बाद । जैसे, भोजन हो। खाने की सामग्री । खाने का पदार्थ । भोज्य पदार्थ (को०) । नोत्तर काल। क्रि० प्र०—करना ।-पाना । भोजपति- पु० [२०] १. कंसराज । २. कान्यकुग के राजा मुहा०-भोजन पेट में पड़ना = भोजन होना । खाया जाना । भोज । ३ दे० 'भोज'। ३. विष्णु (को०)। ४. शिव (को०)। ५. भाजन कराने की भोजपत्र- पु० [स० भूर्जपत्र ] एक प्रकार का मझोले प्राकार क्रिया (को०)। ६. धन । संपत्ति (को०)। ७. भोग या का वृक्ष को हिमालय पर १४००० फुट की उंचाई तक उपभोग करना । भोगना (को॰) । होता है।
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