पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४५९

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. भैरव भैवाद भैरव २-सज्ञा पु० [सं०] १. शंकर । महादेव । २. शिव के एक विशेप-भैरवी की कई मूर्तियाँ मानी जाती हैं। जैसे, त्रिपुर- प्रकार के गण जो उन्ही के अवतार माने जाते है। भैरवी, कौलेशभैरवी, रुद्रभैरवी, नित्याभैरवी, चैतन्यभैरवी विशेप- पुगणानुमार जिस समय अंधक राक्षस के साथ शिव अादि । इन सबके ध्यान और पूजन प्रादि भिन्न भिन्न हैं। का युद्ध हुआ था, उस समय अंधक की गदा से शिव का २. एक रागिनी जो भैरव राग की पत्नी और किसी किसी के सिर चार टुकडे हो गया था और उसमें से लहू की धारा बहने मत से मालक राग की पत्नी मानी जाती है। लगी थी। उसी धारा से पांच भैरवों की उत्पत्ति हुई थी। विशेप - हनुमत के मत से यह संपूर्ण जाति की रागिनी है पौर तात्रिकों के अनुसार, और कुछ पुराणो के अनुसार भो, भैरवों शरद ऋतु प्रात.फाल के समय गाई जाती है। इसका स्वग्राम की संख्या साधारणत पाठ मानी जाती है जिनके नामों के इस प्रकार है-पघ, नि, सा, ' ग | संगीत रत्नाकर मंबध मे कुछ मतभेद है। कुछ के मत से महाभैरव, संहार के मत से इममें मध्यम वादी और धवत संवादी होता है। भैरव, असिताग भैरव, रुरुभग्न, काल भैरव, को भग्न, ताम्र- ३. पुराणानुसार एक नदी का नाम । ४. पार्वती। (हिं०)। चूड और चद्रचूड तथा कुछ के मत से असिताग, रुरु, चंर, ५. शैव सन्यासिनी। ६. युवती ग द्वादशवर्षीया कन्या क्रोध, उन्मत्त, कपाल, भोपण और संहार ये माठ भग्व हैं । जो दुर्गा के रूा मे पूजिन कही गई है (को॰) । तात्रिक लोग भैरवो की विशेष रूप से उपासना करते हैं। भैरवीचक्र-संज्ञा पु० [सं०] १. तांत्रिको या वाममागियों का वह ३. साहित्य मे भयानक रस । ४ एक नाग का नाम । ५. एक समूह जो विशिष्ट तिथियों नक्षत्रों और समयों में देवी का नद का नाम । ६.एक राग का नाम । पूजन करने के लिये एकत्र होता है। विशेष-हनुमत के मत से यह राग छह गगो में से मुख्य पौर विशेष—इसमे सब लोग चक्र में बैठकर पूजन और मद्यपान पहला है, और प्रोडव जाति का है; क्योंकि इसमे ऋषभ पौर पादि करते हैं। इसमें दीक्षित लोग ही सम्मिलित होते हैं पचम नहीं होता। पर कुछ लोग इसे षाडव जाति का भी प्रौर वर्णाश्रम प्रादि का कोई विचार नहीं रखा जाता है। और कुछ संपूर्ण जाति का भी मानते हैं । इसके गाने की ऋतु यथा-संप्राप्त भैरवी चक्रे सर्वे वर्णा द्विजोत्तमा। निवृत्त शरद, वार रवि और समय प्रातःकाल है। हनुमत के मत भैरवी चक्रे सर्वे वर्णाः पृथक् पृथक् । (उत्पत्ति तंत्र )। से भैरवी, वैरारी, मधुमाधवी, सिंघवी और बंगाली ये पांच इसकी रागिनियाँ और हर्ष तथा सोमेश्वर के मत से भैरवी, २. मद्यपों और प्रनाचारियों आदि का समूह । गुर्जरी, रेवा, गुणकली, बंगाली और बहुली ये छह इसकी भैरवीयातना-संशा सी० [ स० भैरवी + यातना ] पुराणानुसार वह रागिनियां हैं। इसकी रागिनियो और पुत्रों की संख्या तथा यातना जो प्राणियो को मरते समय उनकी शुद्धि के लिये नामों के संबंध में प्राचार्यों में बहुत मतमेद है । यह हास्य रस भैरव जी देते हैं। फा राग माना जाता हैं और इसका सहचर मधुपाधव तथा विशेप-कहते हैं, जब इस प्रकार की यातना से प्राणी सब सहचरी मधुमाधवी है। एक मत से इसका स्वर ग्राम घ, नि, पातको से शुद्ध हो जाता है, तब महादेव जी उसे मोक्ष सा,रि ग,म,प,पौर दूपरे मत से ध नि सा,रि ग,म है । प्रदान करते हैं । ७. ताल के साठ मुख्य भेदों मे से एक । ८. कपाली ६. भैरवीय-वि० [सं० ] भैरव संबंधी । १० वह जो मदिरा पोते पीते : वमन भैरवेश-यज्ञ पं० [ मं० ] १. शिव । २. विष्णु (को॰) । करने लगे ( तांत्रिक)। ११. एक पर्वत का नाम (को॰) । १२. भय । खौफ। भैरा-संज्ञा पुं० [हिं० बहेगा ] दे० 'बहेडा' । यो०- भैरवकारक = भयकारक । गयावना । डरावना भैरव- भैरी -- --सज्ञा स्त्री० [हिं० बहरी ] एक पक्षी। दे० 'वहरी'। तर्जक= विष्णु। भैरू-संज्ञा पुं॰ [सं० भैरव ] दे० भैरव' । उ.-हिंसा बहत करे, भैरवमोलो-संज्ञा सी० [ सं० भैरव + झोली ] एक प्रकार की लंबी अपस्वारथ स्वाद लग्यो मद मासे | महामाइ भैरू को सिर झोली जो प्रायः साधुप्रो प्रादि के पास रहती है। दै प्रापुहि वैठो ग्रासै । - संदर० प्र०, भा० २, पृ० ८१५। मेरवमस्तक-सज्ञा पुं० [ म० ] ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक । भैरो-संज्ञा पुं॰ [स० भैरव ] दे० १. 'भैरव'। २. भैरव राग । उ.-न चतुष्क विना शब्दं ताले भेरवमस्तके ।-सं० दा. उ०-जिन हठ करि री नट नागर सौ भैरों ही है देवगन । (शब्द०)। -नंद० ग्रं०, ० ३६७ । भैरवांजन-संज्ञा पुं० [सं० भैरवाञ्जन ] पाँखो में लगाने का एक भैवदी-संज्ञा पु० [हिं० ] भाईचारा । प्रकार का अंजन । (वैद्यक )। भैवा-संज्ञा पु० [सं० भ्रातृ ] दे० 'भैया' । भैरवी-संज्ञा स्त्री॰ [स०] १. तात्रिको के अनुसार एक प्रकार की भैवादा-सा पु० [हिं० भाई+पाद ( प्रत्य॰)] १. भाईचारा । देवी जो महाविद्या की एक मूर्ति मानी जाती है । चामुडा । भाईपन | २. विरादरी । भयानक