पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४५०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मूलना ३६५६ भूसा भूलना-वि० जिसे स्मरण न रहता हो। भूलनेवाला । जैसे, भूनना भूशुद्धि-संज्ञा सी० [म.] लीपने पोतने, और मंत्र द्वारा मार्जन स्वभाव; भूलना आदमी। आदि से पृयिवी की शुद्धि [को॰] । भूलभुलैयाँ-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० भूल + भूलाना+ऐयां (प्रत्य॰)] १. भूशेलु-संज्ञा पुं० [सं०] लिसोड़े का वृक्ष (को०] । वह घुमावदार और चक्कर मे डालने वाली इमारत जिसमें भूश्रवा-संज्ञा पु० [ स० भूश्रवम् ] वल्मीक । वायी । बमोट [को०] । एक ही तरह के बहुत से रास्ते और बहुत से दरवाजे मादि होते हैं और जितमें जाफर आदमी इस प्रकार भून जाता है भूपण-संज्ञा पुं० [सं०] १. अलंकार । गहना । जेवर । २. वह जिससे किसी चीज की शोभा वढती हो। जैसे,-माप अपने कि फिर बाहर नहीं निकल सकता । २. पकाबू । ३. बहुत कुल के भूषण है। ३. विष्णु । घुमाव फिराव की बात या घटना। बहुत चक्करदार और पेचीली बात। भूषणपेटिका-संज्ञा स्त्री० [सं० ] याभूषण प्रादि रखने की मंजूपा । भृलोक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] मर्त्यलोक । भूतल । संसार । जगत् । भूषणता-संज्ञा स्त्री० [सं०] भूषण का भाव या धर्म । भलोटन-वि० [हिं० भू + लोटना] पृथ्वी पर लोटनेवाला । भूषन-सज्ञा पुं॰ [ सं० भूषण ] १ दे० 'भूषण' । हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि जो शिवाजी के दरबार में थे । भूवन-संशा स्त्री॰ [ म० 5 ] दे॰ 'भ्र' । भौह । उ-हलंत नेन भूप ले धरंत चंद जूव ले।-पृ० रा०, २५।१४२ । भूषना-क्रि० स० [सं० भूपण ] भूपित करना । अलंकृत करना । सजाना । उ०-अरुण पराग जलज भरि नीके । शशि भृव-संज्ञा पु० [सं० भूप, प्रा० भूव ] भूा । राजा । भूपत अहि लोभ अमी के । -तुलसी (शब्द॰) । भवलय-संज्ञा पु० [स०] भूमि की परिधि । भूषा-संज्ञा पु० [सं० ] १. गहना । जेवर । भूषण। २. मलंकृत भृवल्लभ-संज्ञा पु० [सं०] राजा। करने की क्रिया। सजाने की क्रिया। भूवल्लूर -संशा पु० [सं०] कुकुरमुत्ता । यौ-वेश भूपा। भूवा'-पंज्ञा पुं० [हिं० घूमा] १. रूई । उ०-वर सेव न चेत कर सूवा । पुनि पछतास मंत हो भूवा !-जायसी (शब्द०)। भूषित-वि० [सं०] १. गहना पहने हुए। अलंकृत । २. सजाया हुप्रा । संवारा हुआ । सज्जित । उ०-राम भक्ति भूषित जिय भूवा-वि० रुई के समान उजला। सफेद । उ०-भवर गए केशहि जानी । सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी।-तुलसी (शब्द॰) । दै भूवा । जोबन गयो जीत ले जूवा।-जायसी (शब्द॰) । भूष्णु-वि० [सं०] १. ऐश्वयं का इच्छुक । ऐश्वयं चाहनेवाला । भूवा-संशा सी० [हिं० फूश्रा ] दे० 'बूपा' । उ०-अंगद बहनि २. भविष्णु । प्रागे उन्नत होने वाला। लागै वाकी भूवा पागै तासौ देवो विष मारो फेरि तुही पग भूष्य-वि० [सं०] भूषित • करने के योग्य । अलंकार पहनाने या छिए हैं।-प्रिया० (शब्द०)। सजाने के योग्य । भवाय-सञ्ज्ञा पु० [सं०] पृथ्वी पर की हवा । वायु । पवन । भूसंपत्ति -संज्ञा स्त्री॰ [ सं० भूसम्पत्ति ] संपत्ति जो जमीन के रूप भूवाशिं - संज्ञा पुं० [हिं० ] वह स्थान जहाँ हाथी पकड़कर रखे या में हो । जैसे, खेत, जमीन, जमीदारी प्रादि । बांधे जाते हैं। भूसस्कार-संज्ञा पुं॰ [ सं० ] यज्ञ करने से पहले भूमि को परिष्कृत भूवाल@-सज्ञा पु० [सं० भूपाल, प्रा. भूवाल ] दे० 'भूगल' । करने, नापने, रेखाएं खींचने आदि की क्रियाएँ। भूमि का उ०-तब भैरव भूवाल वीर वर । कीन हुकुम कालीय ऊच वह संस्कार जो यज्ञ से पहले किया जाता है । कर।-पृ० रा०, ६.१६३ । भूसा-संज्ञा पुं० [हिं० भूसा ] दे० 'भूसा' । भूविद्या-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'भूगर्भ शास्त्र' । भूसठा- सज्ञा पुं॰ [देश०] कुत्ता । श्वान । भूशक-संशा पु० [स०] राजा। भूसन-संज्ञा पुं० [ स० भूपन ] दे० 'भूषण' । उ०—चानन भूशय-संज्ञा पुं॰ [स०] १. विष्णु । २. नेवला, गोध आदि विल भेल बिसम सर रे, भूमन भेल भारी।-विद्यापति, पृ० ५४६ । मे रहनेवाले जानवर। भूसन- २- सज्ञा पुं० [हिं० भूकना ] कुत्तों का शब्द करना। विशेष-वैद्यक में इस वर्ग के जंतुओं का मास गुरु, ऊष्ण, मधुर, भूकना। स्निग्ध, वायुनाशक भौर शुक्रवर्धक माना जाता है। भूसना-क्रि० प्र० [हिं० भूकना ] भूकना । कुत्तों का बोलना। भूशय्या-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. शयन करने की भूमि । २. भूमि उ०—कुकर ज्यों भूसत फिरे, तामस मिलवा वोल । घर पर सोना। बाहर दुख रूप है बुधि रहै डांवाडोल.।-सहजो०, पृ० ३६ । भूशर्करा-संज्ञा स्त्री॰ [ सं०] एक प्रकार का कंद । भूसा-संज्ञा पुं० [सं० तुप ] १. गेहूँ, जो प्रादि का महीन पौर भूशायी-वि० [स० भूशायिन् ] १. पृथ्वी पर सोनेवाला । २. पृथ्वी टुकड़े टुकड़े किया हुआ डंठल, जो पशुमों और विशेषतः पर गिरा हुमा । ३. मृतक । मरा हुमा । गौयों, भैसों को खिलाया जाता है । भुस । भूसी।