पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४३८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- भूगंधपति मीलों तक । कभी तो एक ही दो सेकेंड में दो चार बार पृथ्वी मुहा०-भूख मरना भूख लगने पर अधिक समय तक भोजन न हिलने के बाद भूकंप रुक जाता है और कभी लगातार मिनटों मिलने के कारण उसका नष्ट हो जाना। पेट में अन्न न होने तक रहता है। कभी कभी तो रह रहकर लगातार सप्ताहो पर भोजन की इच्छा न रह जाना। भूख लगना = भोजन और महीनो तक पृथ्वी हिलती रहती है। भूकंप से कभी की इच्छा होना। खाने को जी चाहना। भूखों मरना-भूख कभी सैकड़ो हजारो मनुष्यों के प्राण तक चले जाते हैं, और लगने पर भोजन न मिलने के कारण कष्ट उठाना या लाखो करोड़ो की संपत्ति का नाश हो जाता है। जिन देशों मरना। भूख पियास विसरना= सुभ बुध खो वैठना। मस्त में ज्वालामुखी पर्वत अधिक होते हैं उन्ही में भूकप भी हो जाना । 30-जन की सुधि रहि जात जाय मन प्रतै अधिक होते हैं । भूमध्यसागर, प्रशात महासागर के तट, ईस्ट अटका । विसरी भूख पियास किया सुतगुरु टोरका। इंडीज टापुओं मे प्रायः भूकप हुआ करते हैं। और उत्तरी पलटु०, भा० १, पृ० ३२ । -अमेरिका के उत्तरपश्चिमी भाग, दक्षिण अमेरिका के पूर्वी २. आवश्यकता । जरूरत (व्यापारी ) । जैसे,—अब तो इसे भाग, एशिया के उत्तरी भाग और अफ्रीका के बहुत बड़े भाग सौदे को भूख नही है। ३. समाई। गुंजाइश । (क्व०)। में बहुत कम भूकंप होता है। स्थल के अतिरिक्त जल में भो ४. कामना । अभिलाषा। उ०—मुख रूखी बात कहै जिय में भूकप होता है जिसका रूप कभी कभी बहुत भोषण होता पिय की भूख ।-केशव (शब्द०)। है। हिंदुओं मे से बहुतो का विश्वास है कि पृथ्वी को उठानेवाले भूखण-संज्ञा पुं० [सं० भूपण ] भाभूपण । दिग्गजो अथवा शेषनाग के सिर के हिलने से भूकप होता है। भूखन-संज्ञा पुं० [सं० भूपण ] दे० 'भूषण' । उ०-पहिरि फूल क्रि० प्र०-थाना।—होना । की माल रतन के भूखन साजत । ये नहिं सोभा देत नेक भुक'-संश पु० [सं०] १. काल । समय । २. वसंत । वसंत ऋतु । बोलत जे लाजत ।-व्रज००, पृ० १००। ३. छिद्र । छेद | दरार । ४. अपकार । तम [को०] । भखनाg -क्रि० स० [सं० भूपण ] भूषित करना । सुसज्जित भूका २.-संज्ञा दी [हिं०] दे० 'भूख' । करना । सजाना । उ०—(क) लाखन की बकसीस करिबे को भूकद्ध -सज्ञा पुं० [सं० भूकदम्ब ] दे० 'भूतीप' को० । उदित है भूखिवे को अंग भूष भूषन न गनते ।-रघुनाथ भूकना-कि० अ० [देश॰] दे॰ 'भूकना' । उ०—कन्न फड़ाप न (शब्द०)। (ख) लै तेहि काल अभूपन अंग मे हीरा विलास मुंड मुडाया। घरि घरि फिरत न भूकण वाया ।-प्राण, के भूपन भूखे । -रघुनाथ (शब्द॰) । (ग) भूखन भूखे जरायन के पहिरै फरिया रॅगि सौरभ मीली ।-गोकुल (पाब्द०)। पृ० १११। भूकपित्थ-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का कैय । भूखरी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० भूख ] १. भूख । क्षुधा । २. इच्छा। ख्वाहिश । भृकर्ण-संज्ञा पुं० [ स० ] पृथ्वी का व्यास । भूखर्जूरी 1-संज्ञा स्त्री० [सं०] छोटा खजूर । भूकदारक -संज्ञा पुं० [स०] लिसोड़ा । भूख हड़ताल-संज्ञा पु० [हिं०] अनशन । भूकल-संज्ञा पुं॰ [सं०] बिगडैल घोड़ा [को० । भूखा-वि० पु० [हिं० भूख+श्रा (प्रत्य॰)] [टी० भूखी ] १. भूकश्यप-संञ्चा पु० [सं०] वसुदेव । जिसे भोजन की प्रबल इच्छा हो। जिसे भूख लगी हो। भूका-संशा सी० [हिं०] भूख । उ०-पंच परजारि भसम करि क्षुधित । भूका । कबीर , पृ० १५८ । मुहा०- भूना रहना = निराहार रहना । भाजन न करना । भूखे भूकाक-संज्ञा पु० [सं०] १. एक प्रकार का छोटा कंक या बाज । प्यासे = बिना खाए पिए। बिना अन्न जल ग्रहण किए। २. नीला कबूतर । ३. क्रौच पक्षी। २. जिसे किसी बात की इच्छा या चाह हो। चाहनेवाला। भूकुभी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० भूकुम्भी ] भूपाटली। इच्छुक । जैसे, हम तो प्रेम के भूखे हैं। उ०-दानि जो भकुष्मांडो-संज्ञा स्त्री० [सं० भूकु माराडी ] भुइँ कुम्हड़ा । विदारी । चारि पदारथ को त्रिपुरारि तिहूँ पुर में सिर टीको। भोरो भलो भले भाय को भूखो भलोई कियो सुमिरे तुलसी को। भूकेश-संज्ञा पु० [सं०] १. सेवार । २. वट वृक्ष, जिसकी जटाएं जमीन पर लटकती रहती हैं। —तुलसी (शब्द॰) । ३. जिसके पास खाने तक को न हो। भूकेशा-संशा सी० [स०] राक्षसी । यौ०-भूखा नंगा। भूकेशी-संज्ञा पु० [सं०] सोमराज नामक वृक्ष । ४. रिक्त । अभावपूर्ण । उ०-क्या तुम अपने अकेलेपन में अपने भुक्षित्-संज्ञा पु० [स०] सूअर । को कभी कभी भूखा नहीं पाते ।-सुनीता, पृ० २७ । भख-संशा सी० [सं० बुभुक्षा] १. वह शारीरिक वेग जिसमें भोजन भूखा-संज्ञा स्त्री० [हिं० भूख ] दे० 'भूख' । उ०—कैसे सहब की इच्छा होती है । खाने की इच्छा । क्षुधा। खिनहि खिन भूखा ।-जायसी ग्रे (गुप्त), पृ० १२६ । यौ ०-भूख प्यास। भगंधपति-मंचा पु० [सं० भूगन्धपति ] शिव | दरिद्र ।