पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४३२

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प्राश्रय। भुजगपुष्प ३६७१ मजेना भुजगपुष्प-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का फूल । २. इस फूल भुजरिया-संज्ञा स्त्री० [सं०] जरई । का पौधा। भुजलता-संज्ञा स्त्री० [म०] लता जैसी लंबी कोमल और पतली बाह । भुजगराज-संज्ञा पुं० [सं०] शेष नाग का नाम | भुजवा -संज्ञा पुं० [हिं० भूनना ] भहभूजा। उ०-भुजवा पढ़े यौ०-भुजगराजभूपण = शिव । कवित्त जीव दस बीस जरावै ।- वैनाल (शब्द॰) । भुजगशिशुभृता-सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] एक वणिक वृत्त का नाम भुजवीर्य-सज्ञा पु० [सं०] दे० 'भुजवल' । जिसके प्रत्येक चरण में नो अक्षर होते हैं जिनमें पहले दो भुजशिखर-संज्ञा पु० [सं० ] स्कध । कंधा । नगण और अंत में एक मगण होता है । इसे भुजगशिशुसुता भुजशिर-संज्ञा पुं० भी कहते हैं। सं०] कंधा। भुजगांतक-संज्ञा पुं॰ [ स० भुजगान्तक ] १. नेवला । २. मयूर । ३. भुजसंभोग-संज्ञा पुं० [ सं० भुजसम्भोग] प्रालिंगन । गरुड को०] । भुजस्तभ-संज्ञा पुं० [सं० भुजस्तम्भ ] बाहु का अकड़ना । भुजाओं का अकड़ जाना [को०)। भुजगाभोजी-संज्ञा पु० [सं० भुजगाभोजिन् ] दे० 'भुजगांतक' [को०] | भुजांतर-पंचा पु० [सं० भुनान्तर ] १. क्रोड़। गोद । २. वक्ष । भुजगाशन-सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'भुजगातफ' । छाती । ३. दो भुनामों का अंतर । भुजगी-सशा बी० [म०] १. अश्लेषा नक्षज्ञ । २. सर्पिणी [को॰] । भुजांतराल-सज्ञा पुं० [सं० भुजान्तराल ] दे० 'भुजांतर'। भुजगेंद्र 1-सज्ञा पुं० [सं० भुनगेन्द्र ] १. शेष | २. वासुकी । भुजा-संज्ञा स्त्री० [सं०] बौह । हाथ । भुजगेश, भुजगेश्वर-संज्ञा पु० [स०] १. भुजगेद्र । २. वासुकी । मुहा०- भुजा उठाना = प्रतिज्ञा करना। प्रण करना । उ०- भुजच्छाया--संज्ञा स्त्री० [सं०] भुनामों की छाह अर्थात् निरापद चल न ब्रह्मकुल सन बरियाई । सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई । —तुलसी (शब्द०) । भुजा टेकना- प्रतिज्ञा करना । भुजज्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] त्रिकोणमिति के अनुसार भुन की ज्या । प्रण करना । उ०-भुना टेकि कै पंडित बोला। छाड़हि भुजदंड ह-सज्ञा पुं० [स० भुजदण्ड ] १. बाहुदंड । २. लंबा हाथ । देस बचन जो डोला ।—जायसी (शब्द०)। ३. बाहं में पहनने का फेरवा नाम का एक गहना । भुजाकंट-संज्ञा पुं० [सं० भुजाकण्ट ] हाथ की उगली का नाखून । भुजदल-मता पुं० [सं०] हाथ । बाहु । भुजाग्र-संज्ञा पुं० [सं०] हाथ [को०] । भुजपाश-संशा पुं० [सं०] भुनामों का पाश या बंधन । गलबाहीं। भुजादल-सज्ञा पुं॰ [सं०] करपल्लव । गले मे हाथ डालना । बाहों में भर लेना। भुजना-क्रि० स० [हिं० भैजाना ] दे० 'भुनाना' । भुजप्रतिभुज-संज्ञा पुं० [सं०] सरल क्षेत्र की समानांतर या प्रामने भुजामध्य-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. कुहनी । २. वक्ष [को०] । सामने की भुनाएं। भुजामूल-संज्ञा पुं॰ [स० कधे का वह अगला भाग जहाँ हाथ भुजबंद-मज्ञा पुं० [सं० भुनबन्ध ] १. दे० 'भु नबंध'। २. एक और कधे का जोड होता है । वाहुमूल । गहना । बाजूबंद । उ०—टाड भुजबंद चूड़ा बलयादि भूषित, भुजाली-संज्ञा स्त्री० [हिं० भुज+पालो (प्रत्य॰)] एक प्रकार ज्यो देखि देखि दुरहुर इंद्र निदरत है। हनुमान (पशब्द०)। की बडी टेढ़ो छुरी जिसका व्यवहार प्रायः नेपाली आदि करते भुजबंध-मज्ञा पु० [सं० भुजबन्ध ] १. अंगद । २. भुन वेष्ठन । हैं । इसे कुकरी या खुखरी भी कहते हैं । २. छोटी बरछी । भुजबधन-संज्ञा पुं० [सं० भुजयन्धन ] दे० 'भुजपाश' । भुजिया -संज्ञा पु० [हिं० भूजना (= भूनना)] १. उबाला भुजवल-संज्ञा पुं० [हिं० भुज+बल ] १. शालिहोत्र के अनुसार हुप्रा घान । एक भौंरी जो घोड़े के अगले पैर में ऊपर की भोर होनी है। क्रि० प्र०-करना :-वैठाना। लोगो का विश्वास है कि जिस घोड़े को यह भौरी होती है, २. उवाले हुए धान का चावल । वि० दे० 'घान' और 'चावल' । वह अधिक बलवान होता है। २. भुनानों को शक्ति । ३. वह तरकारी जो सूखी ही भुनकर बनाई जाती है और बाहुबल। जिसमें रसा या शोरबा नहीं होता। सूखी तरकारी । जैसे, भुजवाथ-संज्ञा पु० [हिं० भुज+बाँधन] अफवार । उ०- बालू का भुजिया, परवल का भुजिया। दृग मीचत मृगलोचनी भरे उ उलटि भुननाथ । जान तिय भुजिष्य-संज्ञा पुं० [ म० ] [ श्री० भुजिष्या ] १. दास । सेवक । नाथ को हाथ परस ही हाथ |-विहारी (शब्द॰) । २. रोग। व्याषि (को०) । २. साथी। मित्र (को०)। ४. भुजमध्य-संज्ञा पु० [सं०] क्रोड । वक्षस्थल (को०] । हस्तसूत्र । कलाई पर बंधा हुमा सूत्र (को०)। भुजमूल-सज्ञा पुं० [स०] १. खवा । पक्खा। मोढ़ा । भुजिष्या-सज्ञा पुं॰ [ म०] १. दासी । सेविका । २. गणिका । २. काँख । कुक्षि। वेण्या। भुजयष्टि-संशा स्त्री॰ [सं०] भुजारूपी य पुजेना-संज्ञा पुं० [हिं० भूजना] भूना हुप्रा दाना । चबैना । भूना | कधा।