भर्तृघ्न भरुकच्छ रह जाना। - भरुकच्छ-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक देश का नाम | भृगुकच्छ । भरोसा-संज्ञा पुं० [सं० वर+पाशा ] १. पाश्रय । आसरा । २. भरुका-सञ्ज्ञा पुं० [सं० भरना ] पुरवे के आकार का मिट्टी का बना सहारा । अवलव । ३. श्राशा । उम्मेद। ४. दृढ़ विश्वास । हुप्रा .कोई छोटा पात्र | मटकना । चुक्कड़ ।। यकीन । भरुच-संज्ञा पुं॰ [सं० भरुकच्छ या देश०] भृगुकच्छ । भरुकच्छ । क्रि० प्र०-करना ।-रखना। उ०-वहां से एक तरफ नर्मदा घाटी के साथ साथ भरुच मुहा०-भरोसे का=विश्वस्त । जिसपर यकीन किया जाय । (भृगुकच्छ या भरुकच्छ ) के प्राचीन बंदरगाह (पट्टन या (किसी के ) भरोसे भूलना = विश्वास पर तीर्थ ) तक रास्ता है। -भारत० नि०, पृ० ७५ । उ०-यह वेजबान के भरोसे भूले हैं। प्रापसे अच्छा है।- भरुज-संज्ञा पुं० [ स०] [ संज्ञा स्त्री० भरुजा] १. शृगाल । २. फिसाना०, भा० ३, पृ० २३ । भरोसे होना = प्राशा या उम्मीद यव जो भुना हुया हो। करना। उ०-याप जो इस नरोसे हो कि हमें तहजीय भरुजी-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. दे० 'भरुज' । २. शृगाली। सिखाएं तो यह खैर सलाह है ।—फिसाना०, भा० १, पृ० ५। भरुटक-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री॰ भरुटा] भूना हमा मांस । भरोसी-वि० [हिं० भरोसा+ई (पत्य० ) ] १. भरोसा या भरुहाना-कि० अ० [हिं० भार या भारी+पाना या हरना प्रासरा रखनेवाला। जो किसी बात की आशा रखता हो। (प्रत्य॰) ] घमड करना । अभिमान करना । उ०—(क) २. जो प्राश्रय में रहता हो आश्रित । जिसका भरोसा अब वे भव्हाने फिर कहुँ उरत न माई। सुरज प्रभु मुह पाइ किया जाय । विश्वास करने योग्य । विश्वसनीय । के भए ढीठ वजाई। सूर (शब्द०)। (ख) नीच एहि बीच भरौंट :-संज्ञा पु० [ देश० ] एक प्रकार की जंगली घास । भुरत । पति पाइ भरुहाइगो बिहाई प्रभु भजन बचन मन काय को।- विशेष-यह राजपूताने में अधिकता से होती है और पशुओ के तुलसी (शब्द०)। (ग) गे भव्हाय तनिक सुख पाए।-जग० खाने के काम में आती है। इसमे छोटे छोटे दाने या फल बानी, पृ० ६७। भी लगते हैं जिनके चारों ओर काटे होते हैं। भरुहाना-क्रि० स० [हिं० भ्रम ] १. बहकाना। धोखा देना। भ्रम में डालना । उ०-तुमको नंद महर भरुहाए। माता गर्न भरौतो-संज्ञा स्त्री० [हिं० भरना+ोतो ( प्रत्य० ) ] वह रसीद नही उपजे तो कही कहाँ ते पाए ।—सूर (शब्द०)। २. जिसमें भरपाई की गई हो । भरपाई का कागज । उत्तेजित करना । बढ़ावा देना । ७०-भव्हाए नट भाट के भरौना-वि० [हिं० भार+भौना (प्रत्य॰)] बोझल । वजनी । भारी। चपरि चढ़े संग्राम । के वे भाजे आइहैं के बांधे परिनाम ।- भर्ग'-संज्ञा पुं॰ [ सं०] १. शिन | महादेव । शंकर । उ०-अमेय (शब्द०)। तेज भर्ग भक्त सर्गवंस देखिए । केशव (शब्द०)। २. ब्रह्मा भरुही' १- संश स्त्री॰ [ देश०] कलम बनाने की एक प्रकार की कच्ची (को०) । ३. भूनना (को०)। ४. वीतिहोत्र के पुत्र का नाम । किलक या किलिक । ५. सूर्य । ६. सूर्य का तेज । ७. एक प्राचीन देश का नाम । भरही-सञ्ज्ञा खी० [हिं० श्रम] दे० 'भरत' (पक्षी)। उ०—हरिचंद ऐसे भए राजा, डोम घर पानी भरे । भारय मे भरही के भर्ग:-संज्ञा पुं० [ सं० भर्गस् ] ज्योति । दीप्ति । चमक । अडा, घंटा टूटि परे ।-घट०, पृ० २६५ । भजन-संज्ञा पुं० [ स०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम । भरड़ा-सञ्चा पुं० [सं० एरण्ड ] दे० 'रेंड' । भयं-संज्ञा पुं० [ स० ] शिव | भर्जन- भरेठा-संज्ञा ० [हिं० भार+ काठ ] दरवाजे के ऊपर लगी हुई 1-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. भाड मे भूना हुमा अन्न । २. उच्छेद । वह लकड़ी जिसके ऊपर दीवार उठाई जाती है। इसे 'पटाव' अवसादन । ३. कड़ाही । ४. भूजने की क्रिया । भूनना (को॰) । भी कहते हैं। भर्तव्य-वि० [स० भर्तव्य, भत्तव्य] १. पोषणीय। भरणोय | भरण भरैत-संज्ञा पु० [हिं० भाड़ा + ऐत (प्रत्य॰)] किराए पर रहनेवाला । करने योग्य वाहनीय । वहन करने योग्य [को०] । भरैया - वि० [ स० भरत, हिं० भरन+ऐया (प्रत्य० ] पालन भर्ती'—संञ्चा पुं० [स० भतृ [ खी० भत्री ] १. अधिपति । स्वामी । करनेवाला । पोषक । पालक । रक्षक । मालिक । २. पति । खाविंद । ३. विष्णु । ४. वह जो भरण भरैया-वि० [हिं० भरना+ ऐया (प्रत्य॰)] भरनेवाला। जो करता है । ५. नेता । नायक । अगुमा । भरता हो। भा-संज्ञा पुं० [ देश० ] दे० 'भरता' (चोखा)। भरोंट-सज्ञा पु० [ देश० ] एक प्रकार की जंगली घास । भुरत । भार-संज्ञा पुं॰ [सं० भर्तृ ] स्त्री का पति । स्वामी । मालिक । भरोटा-संज्ञा पु० [हिं० भार+श्रोटा (प्रत्य॰) ] घास या खाविंद । उ०-काम पाति तन दहत दीजे सूरश्याम भार । लकड़ियों प्रादि का गट्ठा । बोझ । -सूर (शब्द०)। भरोस--सज्ञा पु० [सं०] दे० 'भरोसा'। उ०-सोइ भरोस मोरे भर्ती-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० भरना ] दे० 'भरती' । मन पावा । केहि न सुसंग वडत्तनु पावा |-मानस, १।१० । भर्तृघ्न-संज्ञा स्त्री॰ [ स० ] स्वामी का हत्यारा । - भरोट। ७-४७
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३८६
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