पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३८४

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भरराना भरना ३६२५ जैसे,—लोटा उठाए उठाए हाथ भर गया। १३. शरीर का हृष्ठ भरभंडा-संज्ञा पु० [ देश० ] एक कंटीला पौधा । भड़भाड़ । उ०- पुष्ट होना। १४. पशुओं का गर्भ धारण करना । गाभिन भरभडा भटकया फूले फूल । -प्रेमघन, भा० १, पृ० ७५ होना । १५. जितना चाहिए, उतना हो जाना । कुछ कमी भरभराना-क्रि० अ० [अनु०] १. (रोत्री) खड़ा होना। रोमांच या कसर न रह जाना। जैसे,—मेला भर गया। उ०-जो होना । ( इस अर्थ में इसका प्रयोग केवल 'रोमां' शब्द के कुछ किया भले भर पाया सोच सोच सकुचाऊं।-प्रेमघन०, साथ होता है । )२. व्याकुल होना। घबराना । उ०-भर- भा० १. पृ० १६३ । १६. भेंटना । मिलना। उ०-भरी भराय देखे बिना देखे पल न अचार्य। रसनिधि नेही नैन ये सखी सब भेटत फेरा । अंत कंत सौ भएउ गुरेरा।-जायसी क्यों समुझाए जायें।-रस निधि (शब्द०)। (शब्द०)। भरभराहट-संज्ञा स्त्री॰ [अन० ] सूजन | वरम । विशेप-भिन्न भिन्न शब्दों के साथ अकर्मक और सकर्मक दोनों भरभष्टा-वि॰ [हिं० भर + सं० भ्रष्ट ] भ्रष्ट । अपवित्र । नष्ट । रूपो में प्राफर यह शब्द भिन्न भिन्न प्रथं देता है। जैसे, उ०-बोले, तो क्या भोतर चली श्राएगी। हो तो चुकी पूजा अंक भरना, दम भरना। ऐसे अर्थो के लिये उन शब्दों को यहाँ पाकर भर भष्ट करेगी।-मान० भा०, पृ० ४। देखना चाहिए । भरभूजा-संज्ञा पुं० [हिं० भड़भूजा ] दे० 'भड ना' । भरना-तज्ञा पु० १. भरने की क्रिया या भाव । जैसे,—अपना भरभंट@+-सज्ञा पुं॰ [हिं॰ भर + भेंटना ] सामना । मुकाबला । भरता भरते हैं । २. रिश्वत । घुस । मुठभेड । उ०—जारे ताडुका को जाको देवहू डेराते हुते गयो भरनि-सज्ञा स्त्री० [स० भरण] पहनावा । पोशाक । कपड़े लच। पंथ ही में परि तासु भरभेंटा।-रघुराज (शब्द०)। उ०-मंजु मेचक मृदुल तनु अनुहरति भूषन भरनि ।- भरम-सज्ञा पु० [सं० भ्रम ] १. भ्राति । संशय । संदेह । धोखा। तुलसी (शब्द०)। २. भरने का कार्य या स्थिति । उ०- २. भेद । रहस्य । उ०-उघरि परगी बात भरम की लखि चाढ्यो है परसपर रग, उमगि उमगि रस भरनि मे।-नद०, लैहैंगी सब री-घनानद०, पृ० ५३३ । ग्रं॰, पृ० ३६५ । भरनी'-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० भरना] १. करघे की ढरकी । नार | उ० मुहा०-भरम गँवाना = अपना भेद खोलना । अपनी थाह सुरति ताना करे पवन भरनी भरे, मांडी प्रेम अग अंग देना । भरम बिगाड़ना = भड़ा फोड़ना। रहस्य खोलना। भीनै ।-पलटु० बानी, पृ० २५ । २. खेतों में बीज प्रादि भरमनाg+-क्रि० स० [सं० भ्रमण] १. घूमना । चलना। फिरना । बोने की क्रिया। ३. खेतों में पानी देने की क्रिया। सिंचाई। २. मारा मारा फिरना । भटकना । ३. धोखे में पड़ना । भरनो-संज्ञा स्त्री॰ [?] १. छछू दर । २. मोरनी । ३. गारुडी मंत्र । भरमना-संज्ञा स्त्री॰ [सं० भ्रम ] १. भूल । गलती। २. धोखा। ४. एक प्रकार की जगली बूटी। भ्रांति | भ्रम। भरनी-संज्ञा स्त्री० [सं० भरणी] भरणी नक्षत्र । दे० 'भरणी'। भरमाना'-फ्रि० स० [हिं० भरमना का सक० रूप] १. भ्रम में भरपाई-क्रि० वि० [हिं० भरना+पाना (भर पाना)] पूर्ण रूप से । डालना । चक्कर मे डालना वहकाना। उ०-कोऊ निरखि भली भाँति । उ०-पापुन वन समान भए हरि माला रही चारु लोचन निमिष भरमाई । सूर प्रभु की निरखि सोभा दुखित भई भरपाई।—सूर (शब्द॰) । कहत नहिं पाई।-सूर (शब्द०)। २. भटकाना । व्यथं इधर भरपाई-संज्ञा स्त्री० १. भर पाने का भाव । जो कुछ बाकी हो, उधर घुमाना। उ०-माधो जू मोहि काहे की लाज । जन्म वह पूरा पूरा पा जाना। २. वह रसीद जो पूरी पूरी जन्म यों ही भरमान्यो अभिमानी वेकाज। —सूर (शब्द०)। वसूली हो जाने पर दी जाय । कुल बाकी चुक जाने पर दी भरमानारे-क्रि० प्र० १. चकित होना । हैरान होना । अचंभे में जानेवाली रसीद । पाना । उ०—सूर श्याम छवि निरखि के युवती भरमाही:- भरपूर-[हिं० भरना+पूरना] १. जो पूरी तरह से भरा हुआ सूर (शब्द॰) । २. भटकना। हो । पूरा पूरा। २. जिसमे कोई कमी न हो। परिपूर्ण। भरमार-संज्ञा स्त्री० [हिं० भरना+मार (= अधिकता)] बहुत ज्यादती । अत्यत मधिकता । भरपूर-क्रि० वि० १. पूर्ण रूप से । अच्छी तरह पूरा करके । २. भली भाति । अच्छी तरह । भरमिका-वि० [हिं० भरम भ्रमात्मक । भ्रमपूर्ण । उ०-भरमिक भरपूर-संज्ञा पु० समुद्र की तरंगों का चढ़ाव । ज्वार । भाटा का बोलो (द्वादस प्रकार के वचन दुष्ट के)।-सहजो०, पृ० १६ । उलटा । (लश०)। भरमी-वि० [सं० भ्रमिन् ] भ्रमित । भ्रम मे पड़ा हुपा। भरपेट-क्रि० वि० [हिं० भरना+पेट ] खूब अच्छी प्रकार । भली भरराना- क्रि० प्र० [अनु० ] १. भरर शब्द के साथ गिरना । भांति । उ०-इदिन को परितोष करन हित अघ भर पेट परराना । २. पिल पड़ना । टूट पड़ना । उ०-भररान भोर कमाया ।-भारतेंदु म, भा॰ २, पृ० ५५२ । भारी । ढहरान ग्रीव सारी ।-सूदन ( शब्द०)। भरभंडा-वि० [हिं० भर + भंड स०<भ्रष्ट ] पूर्णतः भ्रष्ट या भरराना- क्रि० स० १. भरर शब्द के साथ गिराना। २. दूसरों नष्ट । अपवित्र । का पिल पड़ने अथवा टूट पड़ने में प्रवृत्त करना।