पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३८०

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भया ३६१६ भयो सचेत हेन हित लाग्यो सत दरसन रस पाग्यो रे ।- भूपन वाहुबली सरजा तेहि भेटिवो को निरसंफ पधारयो ।- जग० प्रा०, पु. ८७ । (ख) जैसे कलपि कलपि के भए है गुरु भूपन प्र०, पृ० ७१ । की माखी ।-परनी० स०, पृ० ८४ । (ग) भयो द्रोपदी भयात, भयावदीर्ण-f० ( स० ] ' 'भयविहल'। डरा हुमा । को बसनु वासर नाहिं बिहाय !-मति० ग्र०, पृ. ३०८। भयावनg+-वि० [हिं० भय + श्रावन (प्रत्य॰)] रापना । (घ) जंह भए शाक्य हरिचद अरु नहुष ययाती । हरिश्चंद्र भयानक । भयंकर । उ०-दहे धाम मभिराम दसि वंगत (शब्द०)। भयावन ।-प्रेमधन०, पृ० ३८ । भयार--सशा पु० [सं० भ्राता ] भ्राता | भाई । उ०-लेहु भया गहि भयावह-वि० [सं० भयकर । डरावना। खौफनाक 30-- सीसन ते दधि की मटुकी अब कानि करी कित । जैसे सौ विमाता बन गई आँधी भयावह हुमा चपल न तो भी श्याम तैसे भए ही बने घनानंद धाय घरो जित की तित।- धन वह ।-साकेत, पृ० ५७ । घनानंद, पृ० २५४ । भय्या-सशा पुं० [सं० भ्रातृक ] ३० 'भैया' । भयाउनि-वि० सी० [हिं० भयावनी ] भयावन का स्त्री सिंग। डरावनी। उ०-प्रति भयाउनि निबिल राति। कइसे मंगीरति भरड-पसा पु. म० भरएट ] १. मालिक । स्वामी। प्रभु। २. राजा । नरश । ३. कोट । कीड़ा । ४. वृषभ । वैत । जीवन साति -विद्यापति, पृ०६६। भयाकुल-वि० । स०] भय से व्याकुल । डर से घबराया हुना। भरंत-संशा ना. [ स० भ्रान्ति ] भ्रम । संदेह । शक । 30- लीला राजा राम की सेलहिं सबही सत । पापा पर एक भए भयभीत। छूटी सबइ भरत ।-दादू (पव्द०)। भयाक्रांत-वि० [सं० भयाक्रान्त ] दे० 'भयाकुल' । भयातिसार-संज्ञा पु० [स०] अतिसार का एक भेद जिसमें केवल २--मया सी० [हिं० भरना ] ६० 'भराई'। भरंतार- भय के कारण दस्त प्राने लगते हैं। उ०~-यहाँ माधवाचार्य भर'-वि० [हिं० भरना ] कुल । पूरा। सव | तमाम । जैसे, सेर ने भयातिसार की वातज अतिसार में गणना की है।- भर, जाड़े भर, शहर भर । उ०-(क) मति करुणा रघुनाथ गुसाई युग भर जात पड़ी।—सूर (शब्द०)। (ख) रहे ता माधव०, पृ० ४४॥ करौ जनम भर सेवा । चले तो यह जिव साथ परेवा ।- भयातुर-वि० [स० ] डर से घबराया हुा । भयभीत । जायसी (पाब्द०)। भयान-वि० [सं० भयानक ] डरावना। भयानक ! उ०--तुम भर–क्रि वि० [हिं० भार भार से । वल से। द्वारा। उ०- बिना सोभा न ज्यों गृह बिना दीप भयान । पास स्वास (क) सिर भर जाउँ उचित अस मोरा । सब तें सेवक परम उसास घट में अवध प्राशा प्रान ।-सुर शब्द०)। कठोरा ।—तुलसी (शब्द०)। (ख) गिरिगो मुह के भर भयानफ'-वि० [H०] जिसे देखने से भय लगता हो । भोपण । भूमि तहाँ। चलि वैठि पराय लजाय जहाँ ।-रघुराज भयंकर | डरावना। (शब्द०)। भयानकर-संशा पुं० १. वाघ । २. राहु । ३. भय । डर (को०)। भर-संवा पु० [सं०] १. भार बोक। वजन। २. पुष्टि। ४. साहित्य मे नी रसों के अंतर्गत छठा रस । मोटाई। पीनता । उ०-भर लाग्यो परन उरोजनि म विशेप-इसका स्थायी भाव भय है। इसमें भोषण दृश्यों (जैसे, रघुनाथ, राजी रोमराजी भांति कल अलि सैनी की।- पृथ्वी के हिलने या फटने, समुद्र मे तूफान आने मादि) का रघुनाथ (शब्द॰) । वर्णन होता है। इसका वर्ण श्याम, अधिष्ठाता देवता यम, क्रि० प्र०-डालना ।-पदना। पालंबन भयंकर दर्शन, उद्दीपन उसके घोर कर्म और अनुभाव ४. वह जो भरण पोषण करता हो। ५. युद्ध । लड़ाई। फंप, स्वेद, रोमांच मादि माने गए हैं। अाक्रमण । ६. तौल (को०)। ७. माधिक्य । मतिशयता । भयानाg-क्रि० प्र० [सं० भय+हिं० श्राना (प्रत्य॰)] डरना। प्रचुरता (को०) । ८. राशि । ढेर । पुज (को०)। ६. चौयं । भयभीत होना । उ०-जो महि कबहुँ न देखिया रज्जु में नहिं चोरी (को०)। १०. स्तुतिगान या एक प्रकार दरसाय । सर्प ज्ञान जाको भया सो जहं तहँ देखि भयाय :- ऋचा (को०)। कबीर (शब्द०)। भर-शा पु० [सं० भरत या भरतपुत्र ] एक छोटी पोर प्र-पुर भयाना-कि० स० भयभीत करना । डराना। जाति जो सयुक्त प्रात मोर विहार में पाई जाती है। पान- भयान्वित-वि० [सं०] भययुक्त । डरा हुमा को०] । कल इस जाति के कुछ लोग पाने पाप को भरद्वाज के वन भयापह-पि० [स०] दे० 'भयनाशन' । बतलाते हैं। भयापह-संघा पुं० १. विष्णु । २. राजा [को०] । भरई-ज्ञा पु० [३०] २० 'भरदूल'। भयारा-वि० [सं० भयालु ] भयंकर । डरावना। भोपण । उ०- भरइत+-वि० [हिं० भादा+इत (त्त० )] भाडे या किराए दानव मायो दगा करि जावली दीह भयारो महामद भारपो। पर रहनेयाला भरेव । 1