पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३६६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भगदेव चिकित्सा व्रण के समान ही करने का विधान है। डाक्टर ४. भूत प्रेत उतारनेवाला पुरुष । अोझा । सयाना । भोपा। लोग इसे एक प्रकार का नासुर समझते हैं और चीर फाड़ के ५. वैश्या के साथ तवला आदि वजाने का काम करनेवाला द्वारा उसकी चिकित्सा करते हैं। पुरुष । सफरदाई । (राजपूताना)। भग-संज्ञा पुं० [सं०] १. योनि । २. सूर्य । ३. बारह प्रादित्यों में से मुहा०-भगतबाज= (१) लौडों को नचानेवाला। २. स्वांग एक । ४. ऐश्वर्य । ५. छह, प्रकार की विभूतियां जिन्हें सम्य- भरकर लौडों को अनेक रूप का बनानेवाला पुरुष । गैश्वर्य, सम्यग्वीर्य, सम्यग्यश, सम्यग् श्रिव और सम्यगजान भगत--संज्ञा स्त्री० [सं० भक्ति, हिं० भगत, जेसे, पावभगत ] कहते हैं । ६. इच्छा। ७. माहात्म्य । ८. यत्न । ६. धर्म । सत्कार । खातिर । दे० 'भक्ति' । उ०-पूगल भगतां नव नवी १०. मोक्ष । ११. सौभाग्य । १२. कांति । १३. चंद्रमा । कीधो हरख अपार । -ढोला०, दू० ५६४ । १४, धन । १५. गुदा। १६. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र । १७ एक भगतबछल-वि० [ १० भक्तवत्सल ]. दे० 'भक्तवत्सल' । उ०- देवता का नाम । पुराणानुसार दक्ष के यज्ञ में वीरभद्र ने भगतबछल प्रभु कृपा निधाना । बिश्वबास प्रगटे भगवाना । इनकी आंख फोड़ दी थी। १८. शिव का एक रूप (को०] । --मानस, १४१४६। १६. उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र (को०)। २०. अंडकोश और गुदा भगतराव-वि० [सं० भक्तराज] भक्तराज । भक्तों में श्रेष्ठ । का मध्य भाग (को०)। उ.-काशी पडत घरो पाव वहोत तहे से मनाव । नामदेव भगई:-संज्ञा स्त्री० [हिं० भगवा ] लंगोटी। भगतराव ये बला दूर करो।-दक्खिनी॰, पृ० ४६ । भगकाम-वि० [सं०] संभोग करने का इच्छुक । भगतावन-क्रि० स० [सं०V भुज् ] भुगताना। पहुँचाना । भगधन-संज्ञा पु० [सं०] शिव का एक नाम को०] | कहना । 30-मारुवणी भगताविया मारू राग निपाइ । भगण-संज्ञा पुं० [सं०] १. खगोल में ग्रहों का पूरा चक्कर । ढोला०, दु. १०६। विशेष—यह ३६० अंश का होता है जिसे ज्योतिषीगण यथेच्छ भगति सशा स्त्री० [स० भक्ति ] दे० 'भक्ति'। उ०-भगति राशियों और नक्षत्रों में विभक्त करते हैं। इस चक्कर को नारदी रिदैन भाई काछि कुछि तन दीना।-कबीर , शीघ्रगामी ग्रह स्वल्प काल में और मंदगामी दीर्घ काल में पृ० ३२४॥ भगतिया-संञ्चा पुं० [हिं० भक्त स्त्री० भगतिन ] राजपूताने की पूरा करते हैं । अाजकल के ज्योतिषी इस चक्कर का प्रारंभ रेवती के योगतारा से मानते हैं। सूर्यसिद्धांत में ग्रहों का एक जाति का नाम । उ०-सेठ की दौलत पर गीध के भगण सतयुग के प्रारंभ से माना गया है। पर सिद्धांत- समान ताक लगाए बैठे हुए शिकार भांड़ भगतिए दूर दूर से शिरोमणि आदि में ग्रहों के भगण का हिसाब कल्पादि से प्रा जमा होने लगे। बालकृष्ण भट्ट (शब्द॰) । लिया जाता है। विशेष-इस जाति के लोग वैष्णव साधुनों की संतान हैं जो २. छंदःशास्त्रानुसार एक गण जिसमें प्रादि का एक वर्ण गुरु अब गाने बजाने का काम करते हैं और जिनकी कन्याएं और अंत के दो वर्ण लघु होते हैं । जैसे,' पाचन, वेश्याओं की वृत्ति करके अपने कुटुंब का भरण पोषण करती भोजन मादि। हैं और भगतिन कहलाती है। (बंगाल में भी वैष्णव साधुओं की लड़कियां वेश्यावृत्ति से अपना जीवन निर्वाह भगत'-वि० [सं० भक्त] [हिं० भगतिन ] १. सेवक । उपासक । करती हैं और अपनी जाति बोष्टम वा वैष्णव बतलाती हैं।) उ०-बंचक भगत कहा राम के । किंकर कंचन फोह काम भंगती-संज्ञा क्षी० [हिं०] दे० 'भक्ति' । के ।-तुलसी (शब्द०)। २. साधु । ३. जो मांस आदि न खाता हो । संकट या साकट का उलटा । ४. विचारवान् । भगदड़-संज्ञा स्त्री० [हिं० भाग+ दौड़ ] दे० 'भगदर'। भगत-संज्ञा पुं० १. वैष्णव वा वह साधु जो तिलक लगाता और भगदत्त-संश पु० [ सं०] प्राग्ज्योतिषपुर के एक राजा का नाम । मांस आदि न खाता हो । २. राजपूताने की एक जाति का विशेष-इसके पिता का नाम नरक वा नरकासुर था। महा- नाम । इस जाति की कन्याएं वेश्यावृत्ति और नाचने गाने भारत में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय इसका अर्जुन से का काम करती है । दे० 'भगतिया' । ३. होली में वह स्वांग आठ दिन तक लड़कर अंत में पराजित होना लिखा है । जो भगत का किया जाता है। महाभारत युद्ध में यह कौरवो की ओर था और बड़ी वीरता से लड़कर अर्जुन के हाथ से मारा गया था । विशेष—इस स्वांग में एक पादमी को सफेद बालों की दाढ़ी मोछ लगाकर उसके सिर पर तिलक, गले में तुलसी वा किसी भगदर-संशा सी० [हिं० भगदड़ (= भागते हुए दौड़ना)] अचानक बहुत से लोगो का किसी कारण से एक भोर अस्तव्यस्त और काठ की माला पहनाते हैं और उसके सारे शरीर पर राख लगाकर उसके हाथ मे एक तू बी और सोंटा दे देते है। होकर भागना। भागने की क्रिया या भाव। वह भगत वना हुमा स्वांगी जोगीड़े में नाचनेवाले लौंडे के क्रि० प्र०-पढ़ना ।-मचना । साथ रहता है और बीच बीच में नाचता और भाड़ों की भगदारण-सज्ञा पुं० [स०] एक रोग । भगंदर [को०] । तरह मसखरापन करता जाता है। भगदेव-वि० [सं०] कामी । विषयी। --