मार ब्रह्मशल्य ५१ ब्रह्मांडपुराण को पैर से निकाल कर देना, तुलसी को क्था इत्यादि हैं। ब्रह्मासुवर्चला-संशा सी० [सं०] हरहुज या हुरहुर नाम का पोषा । गणेशखह में शिव का पार्वती को गंगातट पर हरिमत्र देना, पहले तपस्वी लोग इसफा कड़ा रस पीते थे । पार्वती का कृष्ण से वर प्राप्त करना, गणेशजन्म, गणेश के ब्रह्मसू - सज्ञा पुं० [सं०] विष्णु की चतुव्यूहात्मक मूर्तियो में से एक । शिरच्छेद और गजाननत्व का वर्णन है। श्रीकृष्ण जन्म खंड में श्रीकृष्ण की अनेक कथामो भौर विहार प्रादि का ब्रह्मसूत्र-संज्ञा पुं० [म०] १. जनेऊ । यज्ञोपवीत । २. व्यास का शारीरिक सुत्र जिसमे ब्रह्म का प्रतिपादन है और जो वेदांत वर्णन है। दर्शन का प्राधार है। जैसा ऊपर कहा जा चुका है, इस पुराण के असल होने में बहुत संदेह है। नारद और शिवपुगण में दिए हुए लक्षण ब्रह्मसृज-सज्ञा पुं० [सं०] १. ब्रह्मा को उत्पन्न करनेवाला । २. शिव इसपर . नही घटते । वैष्णव पुराण तो यह है ही, पर विष्णु का एक नाम। के कृष्ण रूप को सबसे अधिक महत्व प्रदान करना ब्रह्मस्तेय-संज्ञा पुं० [सं०] गुरु को अनुमति के बिना अन्य को पढ़ाया ही इसका मुख्य उद्देश्य जान पड़ता है। हुमा पाठ सुनकर अध्ययन करना । ( मनु० )। ब्रह्मशल्य-संज्ञा पु० [सं० ववूल का पेड़। ब्रह्मस्व-संज्ञा पुं० [सं०] ब्राह्मण का भाग । ब्राह्मण का धन । ब्रह्मशासन-संज्ञा पु० [स०] १. वेद या स्मृति की प्राज्ञा । २. वह ब्रह्महत्या-सशा जी० [सं०] १. ब्राह्मणवघ । ब्राहाण को गांव या भूमि जो राजा की ओर से ब्राह्मण को दी गई हो । डालना। ब्रह्मशिर-संज्ञा पुं० [सं० ब्रह्मशिरस् ] एक अस्त्र जिसका उल्लेख विशेष-मनु आदि ने ब्रह्महत्या, सुरापान, चोरी पोर गुरुपत्नी रामायण और महाभारत दोनों में है। इस प्रस्त्र का चलाना के साथ गमन को महापातक कहा है । अगस्त्य से सीखकर द्रोणाचार्य ने अर्जुन और अश्वत्थामा ब्रह्महा-सज्ञा पुं० [सं० ब्रह्म+हन् ] ब्रह्मघाती। ब्राह्मण की हत्या को सिखलाया था। करनेवाला । उ०-ज्यों ब्रह्महा जिवत ही मरयो । ऐसी ब्रह्मसती-संज्ञा स्त्री० [सं०] सरस्वती नदी । हौं हू विधना करयौ ।-नद० प्र०, पृ० २३२ । ब्रह्मसत्र-संज्ञा पु० [सं०] विधिपूर्वक वेदपाठ । ब्रह्मयज्ञ । ब्रह्मसदन-संज्ञा पुं० [सं० ] कात्यायन श्रोत सुत्र के अनुसार यज्ञ में ब्रह्महृदय-संज्ञा पुं० [सं०] प्रथम वर्ग के १६ नक्षत्रो मे से एक नक्षत्र जिसे पंगरेजी में कैपेल्ला कहते हैं । ब्रह्मा नामक ऋत्विक का ग्रासन जो वारुणी काष्ठ का पौर ब्रह्मांड-संघा पुं० [सं० ब्रह्माण्ड ] १. चौदहों भुवनों का समूह । कुश से ढका हुप्रा होता था। विश्वगोलक । संपूर्ण विश्य, जिसके भीतर अनंत लोक हैं। ब्रह्मसभा-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. ब्रह्मा जी की सभा । उ०-ब्रह्मसभा विशेष-मनु ने लिखा है कि स्वयं भगवान ने प्रजासृष्टि हम सन दुखु माना। तेहि ते प्रजहु करहि अपमाना।- की इच्छा से पहले जल की सृष्टि की पोर उसमें वीज फेंका । मानस, ११६२ । २. ब्राह्मणों की सभा। बीज पड़ते ही सूर्य के समान प्रकाशवाला स्वर्णाम श्रर या ब्रह्मसमाज-संज्ञा पुं० [सं० ब्रह्म + समाज ] एक नया संप्रदाय गोला उत्पन्न हुप्रा। पितामह ब्रह्मा का उसी अंड या ज्योति- जिसके प्रवर्तक बंगाल के गजा राममोहन राय थे। र्गोलक में जन्म हुमा । उसमें अपने एक संवत्सर तक निवाम विशेष-इसमें उपनिषदों में निरूपित एक ब्रह्म की उपासना करके उन्होने उसके पाघे पाघ दो गड किए। कर्वखड में और मनुष्यमात्र के प्रति भ्रातृभाव का उपदेश मुख्य है । बंग स्वर्ग प्रादि लोकों को भोर प्रधोखड मे पृथ्वी धादि की देश के नवशिक्षितों में एक समय इसका बहुत प्रचार हो रचना की। विश्वगोलक इसी से ब्रह्मा कहा जाता है। हिरण्यगर्भ से सृष्टि की उत्पत्ति श्रुतियों में भी कही गई है। ब्रह्मसर--संज्ञा पु० [मं० ब्रह्मसरस्] एक प्राचीन तीर्थ जो महाभारत ज्योतिर्गोलक की यह कल्पना जगदुत्पत्ति के प्राधुनिक सिद्धात में वर्णित है। से कुछ कुछ मिलती जुलती है जिसमें श्रादिम ज्योतिष्क ब्रह्मसर-सशा पु० [सं० ब्रह्मशर ] दे॰ 'ब्रह्मास्त्र'-१। उ०- नीहारिकामंडल या गोलक से सूर्य और ग्रहों उपग्रहों धादि प्रेरित मंत्र ब्रह्मपर धावा । चला माजि बायस भय पावा । की उत्पत्ति निरूपित की गई है। -मानस, ३।२। २. मत्स्यपुराण के अनुसार एक महादान जिसमे सोने का विश्व- ब्रह्मसावर्णि-संज्ञा पुं० [ ] दसवें मनु का नाम । गोलक (जिसमे लोक, लोकपाल मादि बने रहते हैं) दान विशेप-भागवत के अनुसार इनके मन्वतर में विष्वक्सेन दिया जाता है। ३. खोपड़ी । कपाल । अवतार और इद्र, शभु, सुवासन, विरुद्ध इत्यादि देवता मुहा०-ब्रह्माड घटकना = (१) खोपड़ी फटना । (२) अधिक होंगे। ताप या गरमी से सिर में पसह्य पीड़ा होना । ब्रह्मसिद्धांत-संज्ञा पुं० [सं० ब्रह्मसिद्धान्त ] ज्योतिष की एक ब्रहांभ-सा पु. [ स० ब्रह्माम्भस् ] गोमूत्र (को०) । सिद्धांत पद्धति । ब्रहामुत-संश पुं० [सं०] मरीचि प्रादि ब्रह्मा फे पुन । ब्रह्मांडपुराण-सज्ञा पुं॰ [सं० ब्रह्माण्डपुराण ] पठारह पुराणों में से एक का नाम (को०] । ब्रह्मसुता-संशा सी० [स] सरस्वती । चला था। HO
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३५२
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