पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३३

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फरद ३२७२ फरमान कधी काम कारीगर नुकता दियो है हेम फरद सोहाई में। फरफर र'-संज्ञा पुं० [अनु० ] किसी पदार्थ के उड़ने या फड़कने से पद्माकर (शब्द०)। ४. एक पक्षी का नाम जो बरफोले उत्पन्न शब्द । उ०—(क) लग्गिय तुरंगनि थरथरा । पहाडो पर होता है और बिसके विषय में वैसी ही बातें प्रसिद्ध नयुनान लग्गिय फरफरा। -सूदन (शब्द०)। (ख) फहर हैं जैसी चकवा और चकई के विषय में। ५. एक प्रकार का रहे थे केतु उच्च अट्टों पर फर फर !-साकेत, पृ० ४१० । लक्का फवूतर जिसके सिर पर टीका होता है । ६. दो पदों फरफर-कि० वि० [ अनुध्व० ] बिना रुके हुए। तेजी से । विना की कविता। बाधा के । उ०-(क) देवता शुद्ध हिंदी फरफर बोल फरद-वि० जिसकी बराबरी करनेवाला कोई न हो। अनुपम । रहा था । -किन्नर०, पृ० १०६ । (ख) मेरे जैसे वेशभूषा के वे जोड़। जैसे,—प्राप भी बातें बनाने में फरद हैं । (बोल आदमी को फरफर ल्हासा की नागरिक भाषा में वात करते चाल)। उ०-चल्यो दरद जेहि रच्यो फरद विधि मित्र देखकर पहले आश्चर्य हुआ।-किन्नर०, पृ० ४० । दरद हर । -गोपाल (शब्द॰) । फरफराना'-क्रि० प्र० [अनु० फरफर ] 'फर फर' शब्द उत्पन्न फरनाg+-कि० अ० [सं० फलन] १. फलना । उ०—(क) गुलगुल होना । फड़फड़ाना । उ०-फरफरात फर में घर लागे। तुरंग सदा फर फरे। नारंग अति राते रस भरे। -जायसी सेख मुनीर मानि भय भागे। -लाल (शब्द०)। (शब्द०)। (ख) धनुषयज्ञ कमनीय अवनितल फौतुक ही भए फरफराना-क्रि० स० १. फरफर शब्द उत्पन्न करना। २. पाय खरे री। छवि सुर सभा मन? मनसिज के कलित दे० 'फड़फड़ाना'। कलपतरु रूख फरे री । —तुलसी (शब्द०)। २. फलित फरफुदा--सज्ञा पुं॰ [ अनु० फरफर ] उडनेवाला कीड़ा। करना । प्रर्थयुक्त फरना । उ०-प्रारति इस्क इमाने धरई । फतिंगा । उ०-गहि फरफुदा तेहि गुद माहीं। डारी सींक अल्लह अगुने वानी फरई । --गुलाल० बानी पृ०, १२६ । ३. दया भय नाही ।-रघुराज (शब्द०)। फोड़े फुसियां या छोटे छोटे दोनों का अधिकता से होना । फरमंडल-संज्ञा पुं० [हिं० फर+सं० मण्डल ] रणक्षेत्र । युद्ध नैसे,-दाढ़ी फरना, देह फरना । का मैदान । उ०-(क) हुंकरत हीसत फवत फुकरत, मुहा०-फरना फूलना=दे० 'फलना' । उ०-गोंद कली सम फरमंडल मझार दल दीरघ दलत हैं।-हम्मीर०, पृ०४। बिगसी ऋतु बसंत और फाग। फूलहु फरहु सदा सुख सफल (ख) कीनी घमसान समसान फरमंडल में घाइन अघाइ सुहाग ।-जायसी (शब्द॰) । अघवाए वीर वास में। -सुजान०, पृ०२३ फरनीचर--संज्ञा पुं० [सं०] साज सजावट का सामान जिसमें कुर्सी फरमाँ-संज्ञा पुं० [फा० फ़रमां ] दे० 'फरमान ।' मेज, आलमारी सजावट के सामान मादि की गणना है। फरमाबरदार-संज्ञा पुं० [फा० फ़रमायरदार ] प्राज्ञाकारी। माज्ञा- 30-एक दिन बहुत लाचार होकर राबिन का स्वामी अपना तमाम फरनीचर' 'वेच शहर छोडकर चला गया ।- नुयायी। तारिका, पृ० २। फरमा'-संज्ञा ० [० फ्रेम ] १. ढांचा । डोल | २. लकड़ी प्रादि फरप्फर-क्रि० वि० [सं० परस्पर ] परस्पर में। घापस में। फा बना हुमा ढाँचा या सांचा जिसपर रखकर चमार जूता उ०-फरप्फर फौज तरप्फर मार ।-५० रासो, पृ० ४२ । बनाते हैं । कालबूत । ३. किसी प्रकार का सांचा जिसमें कोई चीज ढाली जाय। ४. कंपोज करके चेस में कसा हुमा फरफंद-संज्ञा पुं० [हिं० फर अनु०, फंप (= फंदा, जाल) ] १. मैटर जो छपने के लिये तैयार हो। दांव पेंच । छल कपट । माया। उ०—(क) उनको नहिं दोस फरमार-संज्ञा पुं० [अ० फार्म ] कागज का पूरा तखता जो एक परोस तज्यो कहि को फरफंद पराये परै।-बेनी (शब्द०)। बार में प्रेस में छापा जाता है । जुज । दे० 'फार्म' । (ख) चल दूर हो, दुष्ट कही का, मैं तुझे और तेरे फरफंदों फरमाइश-संज्ञा स्त्री॰ [फा० फरमाइश ] आशा, विशेषतः वह को भली भांति जानता हूँ।-अयोध्यासिंह (शब्द०)। (ग) आज्ञा जो कोई चीज लाने या बनाने आदि के लिये दी छाँड सब दीन फरफंदा, भए प्रव साध के बंदा । -तुरसी० जाय । जैसे,—(क) यह पालमारी फरमाइश देकर बनवाई श०, पृ०५६। गई है। (ख) उन्होंने मुझसे कुछ किताबों की फरमाइश क्रि० प्र०—करना ।-रचना । की थी। २. नखरा । चोचला। क्रि० प्र-करना ।—देना ।-पूरी करना । क्रि० प्र०—करना ।-खेलना-दिखाना। फरमाइशी-वि० [फा० फरमाइशी ] जो फरमाइश करके बनवाया फरफंदी-वि० [ अनु० फर+हिं० फंदा ] १. फरफंद करनेवाला । या मॅगाया गया हो। विशेष रूप से पाज्ञा देकर मंगाया या छल कपट या दांव पेंच करनेवाला। धूर्त । चालवाज । २. तैयार कराया हुअा। (ऐसा पदार्य प्राय: अच्छा मौर बढ़िया नखरेवाज । ३. धूर्तता या छल से भरा हुअा। उ०-खेलन समझा जाता है।) जैसे, फरमाइशी जूता । फरमाइशी थान । खेल मेल फरफदी, वूदी तन रुचिर सुहाई।-घट०, पृ० फरमान-संज्ञा पुं० [फा० फरमान; मि० सं० प्रमाण, पुoहिं० २७६। परमान, पुरमान ] राजकीय प्राज्ञापत्र । वह माज्ञापन जो