पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३२३

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बेसँभर ३५६२ येसास जयति वेसंदर। वैठे और अनेक मुनिंदर । - सबलसिंह पतुरिया। उ०-नाची वैसर वारिमुखी तह, परमानंद रह्यो (शब्द०)। छाई। -भारतेंदु ग्रं०, भा॰ २, पृ० ४७१ । बेरॉभर-वि० [फा० घे+हिं० संभाल (= सुघ) ] बेहोश। घेसरा'-वि० [ फा +सरा (=ठहरने का स्थान) ] जिसे ठहरने उ.-राघो विजली मारा वेसभर कुछ न संभार ।—जायसी का कोई स्थान न हो। प्राश्रयहीन । उ०-विहिरी पहुँ (शब्द०)। निवईत सुनौ लगर झगर हित वेस । वासी पावत वेसरा सही चेस -सज्ञा पुं॰ [सं० वेश, प्रा. वेस ] दे० 'वेश' । प्रेम के देस।-रमनिधि-(शब्द०)। वेस-वि० [फा० वेश, तुल० बंग० येश ( = अधिक)] घेसरा-सशा पुं० [देश॰] एक प्रकार का शिकारी पक्षो । उ०- १. बढ़िया। उत्तम | उ०-कृपान एक बेस देस पालको वहरी स बेमरा कुही संग। जे गहत नीर पर बहुत गग।- सुजान की । २. अधिक । ज्यादा। उ०-फबति फूदननि मैं सूदन (णन्द०)। मुकतावलि मोल बेस की।-रत्नाकर, मा० १, पृ० ६ । वेसरोकार-क्रि० वि० [फा०] विना मतलब । बिना किमी मंबंध प्रयवा लाभ के । उ०-येसगेकार जैसे किसी होटल में प्रा वेसन-संज्ञा पुं॰ [देश॰] चने की दाल का माटा। चने का प्राटा । टिके हैं।-भस्मावृत० पृ० ३५। रेहन । वेसना'-सज्ञा स्त्री० [सं० घसन या वेष्ठन; तुल० हिं० बसना वेसगेसामान-वि० [फा० ] १. जिमके पास कुछ भी मामग्री न (= थैली) ] सर्प का बेठन या थैली । केचुल । उ०-नाहिन हो। २. दरिद्र । कंगाल । कछु नम सहजहिं ऐसे । सांप बेसना को सिसु जैसें ।-नद०, बेसवा-संशा रसी० [ मं० वेश्या ] रंडी । वेश्या । कमवी । ग्रं०. पृ, १६२ । वेसवार-संज्ञा पु० [देश] वह सड़ाया हुमा मसाला जिससे शराव वेसना-क्रि०प० [सं० वेशन ] दे० 'बैठना' । उ०—मैं गुनिवंत चुपाई जाती है। जापा। भूमि पर वेसा। चरन धोइ करि पिए नरेसा ।- वेसहना-क्रि० प्र० [देश॰] 'साहना' । माधवानल०, पृ०१६६ । बेसहनी-मा रसी० [देश॰] सौदा । खरीद की वस्तु । बेसनी-वि० [ हि० बेसन+ ई (प्रत्य॰)] बेसन का बना हुमा। वेसहारा-वि० [फा०] घिना प्राश्रय या घाघारवाला । पाश्रय- बेसनी-संशा सी० १. वेसन की बनी हुई पूरी। २. कचौरी विहीन । जिसमें वेसन भरा हो। वेसहारे-कि० वि० बिना सहारा या अवलंब के । बेसबब-क्रि० वि० [फा० विना किसी सबव या कारण के। चेसहूर-वि० [फा० वेशऊर ] दे० 'वेशऊर'। उ०-दो दिन का प्रकारण। जग मे जीवना करता है क्यों गुमान । ऐ वैमहूर गीची टुक बेसबरा-वि० [फा० वै+4. सब+पा (प्रत्य॰)] जिसे सन या राम को पिधान। -चरण बानी, पृ० ११ । संतोष न होता हो । जो संतोष न रख सके । अघोर । वेसा' संज्ञा स्त्री० [सं० वेश्या] रंडी। वारांगना । कस्त्री । उ०- घेसवरी-संज्ञा स्त्री० [फा०] बेसन होने का प्रधैर्य। पुनि सिंगारहार धनि देसा। कइ सिंगार तह वहठी वेसा ।- असंतोष। जायसी (शब्द०)। बेसबात-वि० [फा०] [संज्ञा वेसयाती ] विनश्वर । विनशनशील । वेसार-सज्ञा पुं० [हिं० भेष ] दे० 'भेष' । उ०—जनि ढरपह मुनि क्षणभंगुर (को०] । सिद्ध सुरेसा । तुमहि लागि धरिहउँ नर बेमा । -तुलसी बेसन-वि० [फा० बेसन] दे० 'वेसवरा' । उ०-बंदा बिल्कुल वेसन (शब्द०)। हुआ जाता है। -प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ०५८ । वेसाना@-क्रि० स० [सं० वेशन ] दे० 'बैठाना,' 'सारना' । बेसमझ-वि० [फा० वे+हिं• समझ ] मूर्ख । निर्बुद्धि । नासमझ । उ०-दीया खरोदक पदहरण । राजा कुंवर वेसाणी प्राणी।-बी० रासो, पृ० १११ । बेसमझी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बेसमझ+ ई (प्रत्य॰)] बेसमझ होने फा भाव ! नासमझी । मूर्खता । वेसामान-वि० [फा०] चिना साज सामान का। बिना उपकरण घेसम्हार-वि० [फा० वे+हिं० सँभाल, सँभार ] दे० 'वेसभर'। का । साधनहीन । उ०-दुरजन दार भजि भजि वेसम्हार चढी, उत्तर पहार' वेसामानी-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] साधनविहीनता । प्रभाव को दशा । डरि सिवजी नरिंद ते ।-भूषण० प्र०, पृ०७३ । मुफलिसी । उ०-ऐसी बेसामानी के साथ ईश्वर पर भरोसा घेसर-संज्ञा पुं० [सं० बेसर ] खच्चर । वेसर । उ०-वेसर ऊँठ कर बादशाह बदहशा प्रांव और काबुल की ओर चले - वृषभ बहु जाती। चले वस्तु भरि प्रगनित भाती ।-मानस, हुमायू, पृ० ४। १।३०। वेसारा-वि० [हिं० वेठाना, गुज० वेसागा ] १. बैठानेवाला । २. वेसर-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] १. स्त्रियों का नाक में पहनने का एक रखने या जमानेवाला। उ०-मातु भूमि पितु बीज चेसारा। आभूषण | उ०-वेसर बनी बुद्धि की सजनी, मोती वचन काल निसान जीव तृण भारा ।-विश्राम (शब्द०)। सुधार हो । -कवीर श०, मा० पृ० १३४ । १२ वेसवा। वेसास--संज्ञा पुं० [सं० विश्वास, प्रा. वेसास ] दे० 'विश्वास' । भाव।