पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३०९

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बेगुनी बेजोड़ वेगुनी-संज्ञा स्त्री॰ [ देण० ] एक प्रकार की सुराही। न हो । जो वोलकर अपने मन के भाव प्रभाट न कर सकता वेगैरत-वि० [फा० + १० गैरत ] सम्मानहीन | प्रतिष्ठारहित । हो । गूगा । मुक । जैसे,-वेजवान जानवरो की रक्षा करनी उ०-(क) उसका लड़का इतना वेशर्म और वेगैरत हो। चाहिए। २. जो अपनी दीनता या नव्रता के कारण किसी -गवन, पृ० १०८ । (ख) ऐसे वेगैरत लड़के से क्या होगा। प्रकार का विरोध न करे । दीन । गरीब । -वो दुनियां, पृ० ४५। वेजर-वि० [फा० वे+चर ] संपत्रिहीन । निर्धन । उ०-अगर वेघर-वि० [हिं० ] गृहहीन । जिसे घर न हो। मुज जानते वदा हूं वेजर । चलो मुड घर कतै तशरीफ वेचका -सज्ञा पु० [हिं० घेचना ] बेचनेवाला। विक्री करनेवाला । लेकर ।-दक्खिनी०, पृ० १६० । उ.-द्विज श्रुति वेचक भूप प्रजासन । कोउ नहिं मान निगम वेजवाल-2 [फा० वे+जवाल ] अविनश्वर | जो न घटे बढ़े अनुसासन ।-मानस, ७।९८ । या न छोजे । उ० -काम न पाता दिसे ये मुल्को माल । देव बेचना-कि० स० [ स० विक्रय ] मूल्य लेकर कोई पदार्थ देना । मुझे या रव तू मिल्छ वेजवाल |-दपिसनी०, पृ० १०५ । चीज देना और उसके बदले में दाम लेना । विक्रय करना । वेजवाला-वि० [फा० वे + जवान (झझट) ] जो बिना झंझट फा संयो॰ क्रि०-डालना ।—देना । हो । बिना बसेड़े का। मुहा०-बेच खाना-खो देना। गा देना । उ०—(क) सनु बेजा-वि० [फा० ये+जा (स्थान) ]. १. जो अपने उचित मैया याकी टेव लरन की सकुच बेंचि सी खाई।-तुलसी स्थान पर न हो। वेठिकाने । वेमोके । २. अनुचित । नाम- (शब्द०)। (ख) पूरुष केरी सबै सोहै कूवरी के काज । नासिब । ३. खराय। बुरा। सूर प्रभु की कहा कहिए बॅच खाई लाज ।—सूर (शब्द॰) । वेजान-वि० [फा०] १. जिसमें जान न हो। मुरदा । मृतक । वेचवाना-क्रि० स० [हिं० चेचना का प्रे०रूप ] दे० 'विकयाना' । २. जिसमे जीवन शक्ति बहुत ही थोड़ी हो। जिसमे कुछ वेचवाल-संज्ञा पुं० [हिं० ] बेचनेवाला व्यक्ति । भी दम न हो। ३. मुरझाया हूधा। पुम्हलाया हुआ। वेचानाg+-क्रि० स० [हिं० वेचना ] दे० 'विकवाना' । ४. निबंल । कमजोर। वेचारगी-संज्ञा स्त्री० [फा०] विवशता । लाचारी । उ०-उसकी वेजान्ता-वि० [फा० दे+थ० जाब्ता] जो जाब्ते के अनुसार न वेचारगी पर हमारा मन प्राकुलता से भर उठता है- हो। कानून या नियम प्रादि के विरुद्ध । जैसे,-जाने की सुनीता, पृ० १३ । काररवाई न करके भाप बेजाता काम क्यो करने गए। बेचारा-वि० [फा० बेचारह ] [ स्त्री० बेचारी ] जो दीन और वेजार-वि० [फ़ा॰ वेज्ञार ] १. जो किसी बात से बहुत तंग प्रा निस्सहाय हो। जिसका कोई साथी या प्रवलंब न हो। गया हो। जिसका चित्त किसी बात 8 बहुत दुखी हो। गरीब । दीन । जैसे,-पाप तो दिन पर दिन अपनी जिंदगी से बेजार हुए वेचिराग-वि० [फा० बे+० चिराग ] जहाँ दीया तक न जलता जाते हैं। २ नाराज | प्रप्रसन्न । उ०--यह अापके वेजार होने का इजहार (-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० २४ । ।३. हो । उजड़ा हुआ। बीमार । रोगग्रस्त । वेचो-सज्ञा स्त्री० [हिं० वेचना ] विक्रय । खरीद फरोख्त । वेचू चुरा-क्रि० वि० [फा० बे+चूँ व चरा ] विना विवाद या वेजारी-संशा स्त्री॰ [फा० बेज़ार] १. परेशानी । २. नाराजी। घिना इतराज । विना उन फे। उ०-जो वेचू चुरा नाम- वेजू--मंशा पुं० [ पं० पेजर ] डेढ़ दो हाथ लंबा एक प्रकार का नामी हुप्रा । वह सब जिया में गिरामी हुआ।-कबीर जंगली जानवर जो प्राय: सभी गरम देशों में पाया जाता है। मं०, पृ० ३८५। विशेष-इसके शरीर का रंग भूरा और पैर छोटा होता है। वेचू-संज्ञा पु० [ हिं० ] दे० 'बेचबाल' । इसकी दुम बहुत छोटी पोर पंजे लंबे तथा दृढ़ होते है जिनसे बेचैन-वि० [फा०] जिसे किसी प्रकार चैन न पड़ता हो। यह अपने रहने के लिये बिल सोदता है । इसका मांस खाया व्याकुल । विफल । वेकल । जाता है और इसकी दुम के बालों से चित्रो प्रादि मे रंग वेचैनी -संज्ञा स्त्री० [फा०] वेचैन होने का भाव । बिकलता। भरने या दाढ़ी में साबुन लगाने के बुरुश बनाए जाते हैं । व्याकुलता । बेकली। घबराहट । प्रायः शिकारी लोग इसे बिलो से जबरदस्ती निकालकर वेजड़-वि० [फा० बे+हिं० जड़ ] जिसकी कोई जड़ या बुनियाद कुत्तो से इसका शिकार कराते हैं। न हो । जिसके मूल में कोई तत्व या सार न हो । जो यो वेजूना-क्रि० वि० [ फा० वे + हिं० जून (समय) ] अनवसर । ही मन से गढ़ा या बना लिया गया हो । निर्मूल । जैसे, असमय । बेमौके। आप तो रोज यो ही बेजह की बातें उड़ाया करते हैं । बेजोड़-वि० [फा० वे+हिं० जोड़] १. जिसमें जोड़ न हो । जो एक वेजबान-वि० [फा० बेजबान ] जिसमें वातचीत करने की शक्ति ही टुकड़े का बना हो । पखंड । २. जिसके जोड़ का और ।