पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३०४

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बृहद् वृहद-वि० [स०] दे० 'वृहत्' । के वर्णन से बहुत कुछ मिलता जुलता है। वा. 'सदसस्पति'शी इनके नाम है। कई स्मृतियाँ बृहद-संज्ञा पुं० एक अग्नि का नाम । मत के ग्रंथ इन्ही के बनाए हुए माने जाते हैं । २. बृहद्ग्रह-संज्ञा पुं० [सं०] करुष नामक प्राचीन देश । इनकी स्त्री तारा को सोम (चद्रमा) उठा ले गया बृहदंतो-संज्ञा स्री० [सं० वृहद्दन्तिन् ] एक प्रकार की दंती जिसके कारण सोम से इनका घोर युद्ध हुआ था। अंत में पत्ते एरंट के पत्तों के समान होते हैं । दे० 'दंती' । वृहस्पति को तारा दिलवा दी। पर तारा को सो बृहद्दल-संज्ञा पुं० [सं०] १. सफेद लोध । २. सप्तपर्ण नामक वृक्ष । रह चुका था जिसके कारण उसे एक पुत्र हुप्रा । बृहदली-संशा खी० [सं०] लजान्नू । लज्जावंती। नाम वुध रखा गया था। विशेष-३० बुध । बृहद्बला-संश पुं० [स०] १. महाबला । २. सफेद लोध । ३. के उपरात इनकी गणना नवग्रहो मे होने लगी। लजालू । लज्जावंती। पर्या०-सुराचार्य । गीस्पति । धिषण। जीव । वृहयोज-संज्ञा पुं० [१०] अमड़ा । वाचस्पति । चा। द्वादशरश्मि । गिरीश । वृहद्भडो - संज्ञा स्त्री० [सं० वृहद्भण्डी ] प्रायमाणा लता । वाक्पति । वचसापति । वागीश । द्वादशकर । तर वृहद्भट्टारिका-संशा सी० [सं०] दुर्गा का एक नाम । २. सौर जगत् का पांचवां ग्रह जो सूर्य से ४४, ३०, वृहद्भानु -संज्ञा पुं० [स०] १. अग्नि । २. चित्रक । चीता वृक्ष । मील की दूरी पर है और जिसका परिभ्रमण का ३. सूर्य । ४. भागवत के अनुसार सत्यभामा के पुत्र का नाम । ४३३३ दिन है । इसका व्यास ६३००० मील है। वृहद्रथ-संज्ञा पुं० [सं०] १. इद्र । २. सामवेद का एक अंश | ३. विशेप-यह सबसे बड़ा ग्रह है और इसका व्यास पृथ्व यज्ञयात्र । ४. शतधन्वा के पुत्र का नाम । ५. देवराज के से ११ गुना बड़ा है । यह बहुत चमकीला भी है पुत्र का नाम । ६. मगध देश के राजा जरासंघ पिता छोड़कर और कोई ग्रह चमक में इससे बढ़कर नहीं फा नाम। अक्ष पर यह लगभग १० घटे मे घूमता है। दूर बृहद्वर्ण-संज्ञा पुं० [सं०] सोना मक्खी । स्वर्णमाक्षिक । से इसके पृष्ठ पर कुछ समानांतर रेखाएं खिची देती हैं । अनुमान किया जाता है कि यह ग्रह वृहद्वल्लो-संज्ञा स्त्री० [सं०] फरेला । मेखलाओं से घिरा हुआ है। यह सभी बालक ग्रह बृहदारुणी-संशा रखी० [सं०] महेद्रवारुणी नामक लता। है, अर्थात् इसका निर्माण हुए अभी बहुन समय वृहन्नल-संज्ञा पुं० [सं०] १. अर्जुन का एक नाम । २. बाहु । बाह । है । अभी इसकी अवस्था सूर्य की अवस्था से कुछ वृहन्नला-संज्ञा सी० [सं०] अर्जुन का उस समय का नाम जिस समय जुलती है और पृथ्वी की अवस्था तक इसे "हुँ वे अज्ञातवास में स्त्री के वेश में रहकर राजा विराट की बहुत समय लगेगा। यह अभी स्वयं प्रकाशमा कन्या को नाच गाना सिखाते थे। और केवल सूर्य के प्रकाश से ही चमकता है । बृहन्नारायण-सझा पु० [सं०] एक उपनिषद् का नाम जिसे याज्ञिकी भी अभी पृथ्वी तल के समान ठोस नहीं है। यह उपनिपद् भी कहते है। अनेक प्रकार के वाष्पों के मंडल से घिरा हुमा साथ कम से कम पांच उपग्रह या चंद्रमा हैं जिन वृहन्निब-सज्ञा पुं० [सं० बृहन्नम्ब ] महानिव । उपग्रह हमारे चंद्रमा से बडे हैं और दो छोटे । बृहस्पति--संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रसिद्ध वैदिक देवता जो अंगिरस के पुत्र और देवताओं के गुरु माने जाते हैं । बृहस्पतिचक्र- संञ्चा पुं० [सं० ] ६० संवत्सरों का समूह । विशेप-इनकी माता का नाम श्रद्धा और स्त्री का नाम तारा -संज्ञा पु० बृहस्पतिपुरोहित सं०] इंद्र [को०] । था । ये सभी विषयों के पूर्ण पढित थे और शुक्राचार्य के साथ वृहस्पतिवार-संज्ञा पुं॰ [ स०] गुरुवार ! बीफे को०] । इनकी स्पर्धा रहती थी। ऋग्वेद के ११ सूको में इनकी स्तुति बृहस्पतिस्मृति-संज्ञा स्त्री० [सं०] अगिरा के पुत्र बृहस्प: भरी हुई है। उनमे कहा गया है कि इनके सात मुह, एक स्मृति । सुदर जीभ, पैने सीग, और सौ पंख हैं और इनके हाथ मे पंच-संशा त्री० [ पं०] १. लकड़ी, लोहे या पत्थर धनुष, बाण पोर सोने का परश रहता है। एक स्थान मे यह बनी हुई एक प्रकार की चौकी जो चौडी कम भी कहा गया है कि ये अंतरिक्ष के महातेज से उत्पन्न हुए थे । अधिक होती है। इसपर बरावर कई प्रादमी इन्होने सारा अंधकार नष्ट कर दिया था। यह भी कहा सकते हैं। कभी कभी इसमें पीछे की योर से गया है कि ये देवताओं के पुरोहित हैं और इनके बिना यश भी कर दी जाती है जिससे वैठने वाले की पीठ का कोई कृत्य पूर्ण नहीं होता। ये बुद्धि और वक्तृत्व के भी मिल सके । २. सरकारी न्यायालय के न्य। देवता तथा इंद्र के मित्र और सहायक माने गए हैं । ऋग्वेद वह प्रासन जिसपर न्यायकर्ता बैठता है। न्य की अनेक ऋचामो में इनका जो वर्णन दिया है, वह अग्नि भ्यायालय । अदालत।